Water Corporation Employees in Varanasi Struggle with Six-Month Salary Delay बोले काशी - कहने को सरकारी कर्मचारी, छह माह से वेतन न पेंशन, Varanasi Hindi News - Hindustan
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बोले काशी - कहने को सरकारी कर्मचारी, छह माह से वेतन न पेंशन

Varanasi News - वाराणसी में जल निगम के सैकड़ों कर्मचारियों और अधिकारियों को छह महीने से वेतन नहीं मिला है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति गंभीर हो गई है। कई कर्मचारी कर्ज में डूब गए हैं और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीSun, 15 June 2025 02:44 AM
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बोले काशी - कहने को सरकारी कर्मचारी, छह माह से वेतन न पेंशन

वाराणसी। सोचिए जरा, किसी सरकारी विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को छह-छह माह से वेतन नहीं मिला हो, सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन के लाले पड़ गए हों तो उन पर क्या गुजर रही होगी? जलनिगम (नगरीय) के सैकड़ो कर्मचारियों और अधिकारियों को भी छह माह से वेतन नहीं मिला है। विभाग के पेंशनर भी तभी से पेंशन की आस लगाए हुए हैं। सभी दैनिक जरूरतों के लिए कर्जदार बन गए हैं। बीमारियों का इलाज कराने का पैसा नहीं है। एक कर्मचारी ने तो अपने एक्सईएन से ऑटो चलाने की अनुमति मांगी है। शासन ने कामों में सुगमता एवं उन्हें प्रभावी बनाने के लिए जून-2023 में जल निगम को नगरीय एवं ग्रामीण-दो खंडों में विभक्त कर दिया।

नगरीय खंड के अधिकारी और कर्मचारी, पूर्व कर्मचारी ही वेतन-पेंशन की दिक्कत झेल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के स्टाफ को कोई दिक्कत नहीं है। इसका एक असर यह पड़ा है कि वेतन संकट से जूझ रहे कर्मचारियों की ताकत कमजोर हो गई है। जल निगम (नगरीय) के भगवानपुर स्थित दफ्तर में ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में अभियंताओं और कर्मचारियों ने अपना दर्द बयां किया। बताया कि छह माह हो गए, परिचारक से लेकर मुख्य अभियंता तक को वेतन नहीं मिला है। इसी कैटेगरी के पूर्व कार्मिक पेंशन के लिए परेशान हैं। उल्लेखनीय यह कि वेतन का संकट पहले भी गंभीर रूप में सामने आ चुका है। न सिर्फ बनारस में बल्कि प्रदेश के कई जिलों में। बार-बार एक ही समस्या से परेशान कर्मचारियों-अभियंताओं ने उत्तर प्रदेश जल निगम संघर्ष समिति का गठन किया। उसी के बैनर तले अपनी आवाज उठाते हैं। संघर्ष समिति के मंडल के अध्यक्ष अनिल कुमार ने बताया, जलनिगम इस शर्त पर बना था कि जो सुविधाएं दूसरे विभागों के कर्मचारियों को दी जा रही हैं, वही यहां भी दी जाएंगी। लेकिन, ऐसा नहीं हो रहा है। कहा कि सरकार जल निगम को एक विभाग बना दे तो सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। उन्होंने बताया कि कि छठे वेतनमान के तहत एक जनवरी 2006 से 11 मार्च 2010 तक कुछ कर्मचारियों को एचआरए और नगर प्रतिकर भत्ता नहीं मिला है। जल निगम के कर्मचारियों को पॉवर कॉरपोरेशन की तरह वेतन और पेंशन के भुगतान पर जोर दिया। समिति के सह संयोजक प्रेमदास ने बताया कि वेतन आदि की दिक्कतों से उत्तर प्रदेश जल निगम कर्मचारी महासंघ, डिप्लोमा इंजीनियरिंग संघ, पेंशनर संघ, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ, वाहन चालक संघ के सदस्य जूझ रहे हैं। प्रयागराज जोन में ऐसे 2555 अधिकारी और कर्मचारी हैं। प्रयागराज जोन में वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, आजमगढ़, बलिया, भदोही शामिल हैं। इनमें 496 नियमित कर्मचारी और 2059 पेंशनर हैं। बनारस में प्रभावित कर्मचारियों-अभियंताओं की संख्या 600 के आसपास है। लाखों का कर्ज, बीमारी भी मिली संतोष कुमार, नंदजी, सुरेंद्र प्रताप सिंह के मुताबिक शायद ही कोई कर्मचारी ऐसा हो जो कर्ज के बोझ तले नहीं दबा हो। लाखों रुपये का कर्ज सिर चढ़ गया है। भविष्य को लेकर सभी सशंकित हैं। अरविंद कुमार ने बताया कि आर्थिक संकट से लिपिक, वरिष्ठ लिपिक, कंप्यूटर ऑपरेटर, फील्ड स्टाफ, जेई, एई, एक्सईएन, अधीक्षण अभियंता और मुख्य अभियंता तक प्रभावित हैं। स्मिता कुमारी ने बताया कि अधिकारी, कर्मचारी इस गंभीर परिस्थिति में मानसिक रोगी बनते जा रहे हैं। उनमें तनाव और अवसाद आम बीमारी बनता जा रहा है। पसंदीदा कोर्स में नहीं हुआ प्रवेश सुरेन्द्रप्रताप सिंह ने बताया कि हम कर्मचारियों को किराना व्यवसायी अब उधार पर राशन भी नहीं दे रहे हैं। बैंक ऋण का भुगतान न होने पर रिकवरी एजेंटों ने जीना मुश्किल कर दिया है। स्कूल-कॉलेज की फीस नहीं दे पाने से कई कर्मचारियों के बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कई कर्मचारी अपने बच्चों को उनके पसंदीदा कोर्स में दाखिला नहीं दिला पा रहे हैं। बसंत लाल बोले, आमलोगों को लगता होगा कि सरकारी नौकरी में सब अच्छा होता है। लेकिन हम लोग ही जानते हैं कि जीवन कैसे बीत रहा है। जीपीएफ की राशि भी खर्च डिप्लोमा इंजीनियरिंग संघ के जिला महामंत्री गोविंद यादव ने बताया कि आर्थिक संकट से उबरने के लिए अनेक कर्मचारियों ने जीपीएफ का पैसा भी खर्च कर दिया है। न्यू पेंशन स्कीम के दायरे में आने वाले कर्मचारियों के सामने अधिक गंभीर संकट है। सदमे से चल बसा ऑपरेटर जल निगम के कर्मचारियों ने बताया कि कोनिया पंपिंग स्टेशन पर तैनात सत्येंद्र यादव की हृदयाघात से दो माह पहले मौत हो गई। वेतन न मिलने से परिवार नहीं चला पा रहे थे। वह सदमे में थे। अब उनकी पत्नी को पेंशन भी नहीं मिल रही है। परिवार पर घोर संकट में है। ऑटो चलाने की मांगी अनुमति जल निगम में वरिष्ठ सहायक कमलकिशोर राय ने परिवार न चला पाने की बात कहते हुए अधिशासी अभियंता से ऑटो रिक्शा चलाने की लिखित अनुमति मांगी है। उन्होंने बताया कि मकान का किराया नहीं भर पा रहा हूं। परिवार के अन्य जरूरी खर्चे पूरे नहीं हो पा रहे हैं। इस स्थिति में अब कोई विकल्प नहीं रह गया है। सेंटेज 22 से पहुंचा पांच प्रतिशत जल निगम 18 जून 1975 को बनाया गया था। इसका आधार 1924 में गठित लोकल सेल्फ गवर्नमेंट इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट बना। गठन के बाद जल निगम में अन्य विभागों के अभियंताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों को 20 प्रतिशत अधिक वेतन पर नियुक्ति मिली थी। उस समय 22 प्रतिशत सेंटेज मिलता था। धीरे-धीरे यह 16 प्रतिशत हुआ, फिर 12.5 प्रतिशत हो गया। अब 100 करोड़ रुपये से ऊपर के कार्य पर महज पांच प्रतिशत रह गया है। 25 करोड़ रुपये तक 10 प्रतिशत, 25 से 100 करोड़ रुपये के बीच आठ प्रतिशत है। शिकायतकर्ता से ही मांगते जवाब प्रेमदास ने बताया कि समस्याओं के समाधान के लिए संसदीय जनसंपर्क कार्यालय के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा गया। उनको संबोधित ज्ञापन जनसुनवाई करने वाले मंत्री को सौंपते हैं। लेकिन हमारे विभाग की शिकायत पर विभागीय अधिकारियों से ही रिपोर्ट मांगी जाती है। जबकि जिस अधिकारी के पास यह पत्र आता है, वह स्वयं इससे प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा कि यह आख्या एमडी कार्यालय से मांगी जानी चाहिए। सुझाव 1. विकास कार्यों पर सेंटेज फ्लैट 12.5 प्रतिशत किया जाए। इससे कर्मचारियों को आसानी से वेतन मिलेगा। कोषागार से वेतन और पेंशन जारी हो। 2. वेतन और पेंशन को नियमित करते हुए बैकलॉग समाप्त किया जाए। सरकार को तत्काल वेतन और पेंशन जारी करना चाहिए। 3. मृतक आश्रित की श्रेणी में नियुक्तियां जल्द शुरू की जाएं। इन परिवारों के लोगों का जीवन समस्याओं से उबर जाएगा। 4. आयुष्मान योजना या विभागीय तौर पर स्वास्थ्य बीमा का लाभ कर्मचारियों को दिया जाए। 5. सातवें वेतनमान के अनुसार अधिकारियों, कर्मचारियों को वेतन-पेंशन दिया जाए। सभी विभागों के स्टाफ को सरकार एक नजर से देखे और सुविधाएं दे। शिकायतें- 1. विकास कार्यों के लिए सेंटेज पूर्व की तरह फ्लैट 12.5 प्रतिशत नहीं है। अन्य विभागों, कार्यदायी संस्थाओं में यह ज्यादा है। 2. वेतन और पेंशन समय से नहीं मिलता। हर बार स्टाफ को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। पहले यह बैकलॉग दो माह का था, अब छह महीने का हो गया है। 3. मृतक आश्रित कोटे में लंबे समय से नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। इससे कई परिवारों के सामने आर्थिक संकट गहरा गया है। 4. कर्मचारियों को कैशलेस चिकित्सा या स्वास्थ्य बीमा की सुविधा नहीं मिली है। परिवार के सदस्यों के इलाज में परेशानी होती है। 5. छठे वेतनमान के आधार पर ही अभी वेतन, पेंशन दिया जाता है जबकि अन्य विभागों में सातवें वेतन आयोग के मानक के अनुसार भुगतान होता है। हालात से जंग मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है। सरकार को हजारों कर्मचारियों के हित में तत्काल फैसला लेना चाहिए। अनिल कुमार बेटे का आईआईटी खड़गपुर के पीजीडीसीए कोर्स में फीस न भर पाने के कारण दाखिला नहीं हुआ। प्रेमदास दो साल पहले 2-3 महीने का वेतन मिलता था, अब छह महीना हो गया है वेतन मिले हुए। दीपक कुमार मेरे पैर में कई दिनों से चोट है लेकिन इलाज के लिए पैसा नहीं है। सरकार को हमारी पीड़ा समझनी चाहिए। काशी स्टाफ को गंभीर संकट से गुजरना पड़ रहा है। मनाते हैं कि ऐसा दिन किसी को न देखना पड़े। दिनेश कुमार अब उधार पर राशन मिलना भी बंद हो गया है। कई कर्मचारी तनाव और अवसाद से जूझ रहे हैं। अमित कुमार सिंह कर्मचारी मानसिक रोगी हो रहे हैं। उनके पास तनाव, अवसाद की दवा खरीदने का भी पैसा नहीं है। राजेश कुमार सातवां वेतनमान भी अब तक लागू नहीं है। वेतन बढ़ाने की क्या मांग की जाए, पुराने की ही समस्या है। उमेश शर्मा लंबे समय बाद भी एकमुश्त वेतन नहीं मिलता। एक-दो माह का वेतन दिया जाता है जो पूरा नहीं पड़ता। राजेंद्र पाण्डेय घर के रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने में समस्या आ रही है। आर्थिक स्थिति बहुत विकट है। रितेश यादव सेवानिवृत्त कर्मचारी हूं। मुझे मधुमेह और पेट संबंधी समस्या है। अक्सर दवा के लिए उधार लेना पड़ता है। रामनारायण मिश्रा बोले जिम्मेदार धनाभाव के चलते है समस्या धनाभाव के कारण वेतन, पेंशन जारी करने में समस्या है। नगर विकास विभाग को इस संबंध में पत्र लिखा गया है। उम्मीद है कि जल्द ही फंड मिल जाएगा। -राजेश कुमार चौधरी, मुख्य लेखाधिकारी, जल निगम मुख्यालय

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