बोले रुद्रपुर: जर्जर मकानों में रह रहे कुष्ठ रोगी, पेयजल तक की व्यवस्था नहीं
रुद्रपुर के कुष्ठ रोगी आश्रम में 22 परिवारों के 60 सदस्य बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। छतों से पानी टपकता है, दीवारों में सीलन है, और सरकार की ओर से दी जाने वाली 1500 रुपये की पेंशन से जीवन यापन...
रुद्रपुर के कुष्ठ रोगी आश्रम में रह रहे 22 परिवारों के 60 सदस्य आज भी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं। इनका दर्द छत से टपकते पानी व दीवारों की सीलन से शुरू होकर हर बरसात में घरों में घुसते नाले और सड़क के पानी तक पहुंचता है। यहां कुष्ठ रोगियों के लिए करीब 50 साल पहले मकान बनाए गए थे, लेकिन इनमें से ज्यादातर अब जर्जर हो गए हैं। कुष्ठ रोगियों ने बताया कि जब भी भारी वाहन सड़क से गुजरते हैं तो मकानों की दीवारें हिलने लगती हैं। सड़क से मकान काफी नीचे हैं। अगर सड़क का चौड़ीकरण हुआ तो मकान और नीचे हो जाएंगे।
यहां सुरक्षा दीवार नहीं है, जिससे हर समय नशेड़ियों व चोरी का डर बना रहता है। मंदिर में भंडारे के लिए धर्मशाला के बाहर बैठने तक की जगह नहीं है। यहां स्नानघर हैं, लेकिन उससे दरवाजे नदारद हैं, जिससे महिलाओं को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। नलों से पानी नहीं आता और हैडपंप से गंदा पानी निकलता है, जो पीने योग्य नहीं होता है। लोगों ने इसका इस्तेमाल करना तक बंद कर दिया है। कुष्ठ रोगियों के लिए दो वक्त की रोटी और मासिक खर्च पहाड़ जैसी चुनौती बन गई है। कुष्ठ रोगियों के रहने के लिए किच्छा रोड पर एक आश्रम का निर्माण किया गया है। वर्तमान में यहां रहने वाले 22 परिवारों को सरकार की ओर से हर महीने मात्र 1500-1500 रुपये की पेंशन मिलती है। कुष्ठ रोगियों का कहना है कि महंगाई आसमान छू रही है, इतने कम रुपये में गुजारा कर पाना लगभग असंभव है।
बच्चों की पढ़ाई, दवाइयां, इलाज और घर का खर्च पेंशन की राशि से पूरे नहीं होते हैं। उनकी मांग है कि उन्हें 3000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जाए, जिससे वह आत्मसम्मान से जी सकें। साथ ही उन्हें केवल 35 किलो राशन दिया जाता है, जो एक परिवार के लिए बेहद कम है। कहा कि 4 से 6 सदस्यों वाले परिवार में इतने राशन से महीने का गुजारा नहीं हो पाता है। जब वह इस संबंध में अधिकारियों से कहते हैं तो उन्हें केवल आश्वासन दिए जाते हैं, कोई समाधान नहीं होता है। इन आर्थिक तकलीफों के बीच आवास की स्थिति और भी गंभीर है। पानी के लिए लगे सरकारी नल सालों से खराब पड़े हैं। यहां हैडपंप हैं, लेकिन वह भी गंदा पानी दे रहा है। गर्मी में ठंडे पानी की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे बच्चे व बुजुर्ग बेहद परेशान हैं। मच्छरों की भरमार है और फॉगिंग महीनों से नहीं हुई है। रात में चैन की नींद मुमकिन नहीं है। चारों तरफ कोई बाउंड्रीवॉल नहीं है, जिससे नशेड़ियों का डर हर रात सताता रहता है।
महिलाओं के लिए स्नानघर है, लेकिन उस पर भी दरवाजा नहीं होने के कारण उनका सम्मान खतरे में है। कहा कि कई संस्थाएं आती हैं, फोटो खिंचवाती हैं, भाषण देती हैं और वादे करके लौट जाती हैं, लेकिन धरातल पर आज तक कुछ नहीं बदला है। आज भी इस उम्मीद में बैठे हैं कि कोई उनकी आवाज सुने और उन्हें इंसान समझकर उनका दर्द बांट सके। उनके पास खोने को कुछ नहीं बचा है, लेकिन जीने की उम्मीद अब भी बाकी है। बरसात का मतलब घर में बाढ़, सड़क से नीचे धंसे आवास कुष्ठ रोगी आश्रम में लगभग 50 साल पहले बने मकान अब जर्जर हो चुके हैं। बरसात के समय छतें टपकती हैं, दीवारों से पानी रिसता है और नालियों का गंदा पानी घरों में घुस आता है। सड़क का स्तर इन मकानों से ऊपर है, जिससे बरसात के मौसम में सड़क का पानी सीधे घरों की ओर बहता है। अगर कभी नदी में बाढ़ आती है तो हालात और भी भयानक हो जाते हैं। हर साल परिवारों को अपने बच्चों और सामान को संभालकर बारिश के मौसम में जीना पड़ता है। कहना है कि जब भी कोई भारी वाहन सड़क से गुजरता है, उनके घर हिलने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें हर वक्त डर सताता रहता है कि कहीं मकान गिर न जाए।
अगर सड़क का चौड़ीकरण हुआ तो सड़क का स्तर और ऊंचा हो जाएगा, जिससे इनके घर और नीचे हो जाएंगे। इससे खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। कुष्ठ रोगियों की मांग है कि उनके मकानों का पुनर्निर्माण किया जाए, उन्हें ऊंचाई पर सुरक्षित व मजबूत आवास मुहैया कराए जाएं, जिससे बरसात उनके लिए बर्बादी का कारण न बन जाए। वह पलायन नहीं करना चाहते हैं, केवल सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन की मांग कर रहे हैं। 35 किलो राशन में कैसे हो 6 लोगों के परिवार का गुजारा सरकार की ओर से इन परिवारों को महीने में 35 किलो राशन दिया जाता है। यह मात्रा परिवार के सदस्यों की संख्या के हिसाब से नाकाफी है। एक औसत परिवार में 5 से 6 लोग होते हैं।
इस स्थिति में 35 किलो चावल या गेहूं महज 10-15 दिन में ही खत्म हो जाता है। फिर महीने के बाकी दिनों में या तो उधारी करनी पड़ती है या भूखे रहना पड़ता है। कई कुष्ठ रोगी खुद चल-फिर नहीं सकते, काम करने की स्थिति में नहीं हैं और उनके पास आय के अन्य स्रोत भी नहीं हैं। ऐसे में सरकार की ओर से मिलने वाला राशन ही उनका मुख्य सहारा है। कुछ परिवारों में बच्चे स्कूल जाते हैं और उन्हें पौष्टिक आहार की जरूरत होती है, जो इस सीमित राशन से संभव नहीं है। कई बार राशन की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं रहती है, जिससे बीमारियों का डर रहता है। इन परिवारों की मांग है कि सरकार राशन की मात्रा परिवार के आकार के अनुसार तय करे। साथ ही, गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्न और नियमित वितरण सुनिश्चित किया जाए।
अगर राशन की मात्रा दोगुनी कर दी जाए और समय पर पहुंचाई जाए तो इनके लिए एक बड़ी राहत साबित हो सकती है। 1500 रुपये पेंशन से कैसे चले इलाज, पढ़ाई और जीवन कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति अक्सर आजीवन कमाई के साधनों से वंचित हो जाते हैं। उनकी हालत व सामाजिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वह मेहनत, मजदूरी या नौकरी कर सकें। ऐसे में उनके जीवनयापन का एकमात्र सहारा पेंशन ही होती है, जो वर्तमान में सिर्फ 1500 रुपये महीना है। इस रकम से न तो खाने-पीने की जरूरतें पूरी हो पाती हैं और न दवा, इलाज आदि का खर्च निकल पाता है। कई कुष्ठ रोगियों को नियमित दवा की जरूरत होती है और कुछ मामलों में ऑपरेशन या इलाज भी चलता है। इसके साथ ही परिवार में बच्चे हैं, तो उनकी पढ़ाई का खर्च भी उसी पेंशन से निकालना होता है।
कुष्ठ रोगियों का कहना है कि इस स्थिति में 1500 रुपये बहुत कम पड़ जाते हैं। उनकी मांग है कि पेंशन को कम से कम 3000 रुपये प्रति माह किया जाए, जिससे वह न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी कर सकें। उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार चाहती है कि वह सम्मान के साथ जीयें, तो यह पेंशन किसी राहत से कम नहीं होगी। उन्हें सरकारी योजनाओं के अंतर्गत स्वास्थ्य बीमा और मुफ्त दवाओं की भी सुविधा दी जानी चाहिए। इससे उनका इलाज समय पर और मुफ्त हो सके। न पीने लायक पानी, न कोई वैकल्पिक व्यवस्था पेयजल की स्थिति भी यहां बदतर है। सरकारी नल कई सालों से खराब पड़े हैं, जो वर्तमान में पानी की एक बूंद नहीं देते हैं। सरकारी हैडपंप लगे हैं, लेकिन उनमें से कुछ से गंदा, दुर्गंध और पीने के अयोग्य पानी निकलता है। इस गंदे पानी से बच्चों को दस्त, उल्टी और पेट की बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है। गर्मी के मौसम में स्थिति और भयावह हो जाती है। यहां न तो ठंडे पानी की व्यवस्था है, न ही कोई फिल्टर या वाटर कूलर लगाया गया है। लोग घंटों तक खाली बर्तन लेकर पानी के इंतजार में खड़े रहते हैं। कुछ लोग आसपास के मोहल्लों से पानी लाकर किसी तरह काम चलाते हैं, लेकिन यह स्थाई समाधान नहीं है।
कुष्ठ रोगियों की मांग है कि यहां जल जीवन मिशन के तहत नए कनेक्शन दिए जाएं। साथ ही गर्मियों में शीतल जल की व्यवस्था, सार्वजनिक टंकी और एक सामान्य जल शुद्धिकरण संयंत्र लगाया जाए, जिससे उन्हें पीने के लिए साफ और सुरक्षित पानी मिल सके। सार्वजनिक स्नानघर में दरवाजे तक नहीं आवासीय परिसर में एक सार्वजनिक स्नानघर है, लेकिन उसमें दरवाजा नहीं लगा है। खुले दरवाजे या टूटी चटकनी व छत न होने के कारण दिक्कतों का सामना करना है। इस स्थिति के कारण महिलाएं या तो सुबह जल्दी या रात देर से नहाने की कोशिश करती हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। बरसात के मौसम में स्नानघर में पानी भर जाता है और गंदगी इतनी बढ़ जाती है कि वहां जाना तक मुश्किल हो जाता है। कई बार लोगों ने दरवाजा ठीक कराने की मांग की, लेकिन जिम्मेदारों ने इसे नजरअंदाज कर दिया। महिलाओं का कहना है कि यह सिर्फ सुविधा नहीं, उनकी गरिमा व सुरक्षा का सवाल है। मांग है कि स्नानघर का दरवाजा पक्का व मजबूत बनाया जाए। साथ ही सफाई की नियमित व्यवस्था हो और महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग-अलग स्नान गृह की व्यवस्था हो, जिससे वह बिना डर व शर्म के अपने दैनिक कार्य कर सकें।
शिकायतें
1-बरसात में छतें टपकती हैं और सड़क का पानी घरों में भर जाता है। घर इतने नीचे हैं कि हर साल जान-माल का खतरा बना रहता है, लेकिन अब तक घरों की मरम्मत नहीं करवाई गई है।
2-वर्तमान में केवल 1500 रुपये पेंशन मिलती है, जिससे बच्चों की पढ़ाई, दवा और खाना तक का खर्च नहीं निकलता है। सरकार बार-बार वादा करती है, लेकिन पेंशन नहीं बढ़ती है।
3-हर परिवार को सिर्फ 35 किलो राशन मिलता है, जो एक हफ्ते भी नहीं चलता है। कई बार चावल की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है। सदस्य संख्या ज्यादा होने पर भी अतिरिक्त राशन नहीं मिलता है।
4-सरकारी नल वर्षों से बंद हैं और हैडपंप का पानी गंदा आता है, जिससे लोगों को पीना का पानी तक नसीब नहीं हो पाता है। कई बार शिकायत करने के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ।
5-स्नानघर में दरवाजा नहीं होने से महिलाओं को नहाते समय शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। बाउंड्रीवॉल नहीं होने से रात में सामान चोरी होने की आशंका रहती है।
सुझाव
1- कुष्ठ रोगियों के आवासों का पुनर्निर्माण किया जाए, जिससे उन्हें बारिश और बाढ़ से सुरक्षा मिल सकेगी और सड़क से नीचे आवास होने की समस्या का समाधान हो सकेगा।
2-कुष्ठ रोगियों को मिलने वाली पेंशन राशि को बढ़ाकर 3000 रुपये प्रतिमाह किया जाए, जिससे उनकी इलाज, पढ़ाई और रोजमर्रा की ज़रूरतें पूरी हो सकें।
3-कुष्ठ रोगियों का कहना है कि राशन की मात्रा परिवार के सदस्यों के आधार पर दी जानी चाहिए। साथ ही राशन की गुणवत्ता में सुधार किया जाए।
4-खराब पड़े नलों की मरम्मत कराई जाए। हैडपंप की जांच करके उसे रिबोर किया जाना चाहिए, जिससे लोगों के लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था हो सके।
5-स्नानघर में मजबूत दरवाजा लगवाया जाए। साथ ही महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग-अलग स्नानघर की व्यवस्था की जाए। बाउंड्री वॉल का भी निर्माण किया जाए।
साझा किया दर्द
हमारे घर इतने पुराने हो चुके हैं कि बरसात में दीवारों में सीलन आ जाती है। हर साल डर लगता है कि कहीं यह ढह ना जाएं। बस इतना चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए सुरक्षित घर बना दे। -बुधनी
हर महीने सिर्फ 1500 रुपये पेंशन मिलती है। इससे दवा, राशन और बच्चों की पढ़ाई कुछ भी नहीं चल पाता है। सरकार हमारी मजबूरी समझे और पेंशन बढ़ाए, जिससे हम भी इज्जत से जी सकें। -खुशबू
सरकारी हैडपंप का पानी पीते ही बच्चे बीमार हो जाते हैं। नल भी खराब पड़े हैं। हमें साफ पानी चाहिए। हर बार अधिकारी आते हैं और सिर्फ तस्वीरें खिंचवा कर चले जाते हैं। -शांति देवी राशन
इतना कम मिलता है कि आधा महीना भी नहीं चल पाता है। पूरे परिवार का पेट भरना मुश्किल हो गया है। मांग की थी कि राशन बढ़ाया जाए, लेकिन आज तक कोई फर्क नहीं पड़ा है। -दूर्मिला
हमारे घर सड़क से नीचे हैं। जब भी बारिश होती है, सड़क का गंदा पानी हमारे घर में भर जाता है। कई बार शिकायत की, लेकिन कोई अधिकारी दोबारा लौटकर देखने तक नहीं आता है। -नन्ही
देवी मंदिर में जब भी भंडारा होता है तो बैठने की कोई व्यवस्था नहीं होती है। अगर टीन शेड लग जाए तो लोग धूप-बारिश में आराम से खाना खा सकेंगे। यह छोटी मांग अब तक पूरी नहीं हुई है। -पिंकी
स्नानघर में दरवाजा नहीं है, महिलाओं को नहाने में बहुत शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। यह हमारी इज्जत का सवाल है। कई बार कहने के बावजूद हमारी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। -रीना
बाउंड्रीवॉल नहीं होने से नशेड़ी और असामाजिक तत्व अक्सर रात में परिसर में घुस जाते हैं। बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा खतरे में है। प्रशासन को कितनी बार कहा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। -विष्णुप्रिया
हमारे बच्चे भी पढ़ना चाहते हैं। रुपये नहीं हैं, उन्हें स्कूल भेजने के लिए। पेंशन इतनी कम है कि पहले पेट भरें या बच्चों की फीस दें, समझ नहीं आता क्या करें। -रेनू देवी
गर्मी में पीने को ठंडा पानी तक नहीं मिलता है। बीमार बुजुर्गों को बार-बार चक्कर आते हैं। पानी की व्यवस्था कराना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन सभी हमें भूल गए हैं। -लक्ष्मी देवी
कई महीनों से फॉगिंग नहीं हुई है। मच्छरों की भरमार हो गई है। डेंगू का डर बना रहता है। बच्चों को हर दिन बुखार आता है। अधिकारी आते हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। -उमाशंकर
सड़क चौड़ी होगी, तो हमारे घर और नीचे धंस जाएंगे। अभी भी हालत खराब है, फिर और बिगड़ जाएगी। हमें डर है कि हमारा आवास कहीं एक दिन खत्म ही न हो जाए। -नारायण
कई संस्थाएं आती हैं, भाषण देती है और फिर चली जाती हैं। कोई हमारी जिंदगी की सच्चाई नहीं देखता है। हम इंसान हैं, बस इतना चाहते हैं कि हमें भी इंसान समझा जाए। - भगवन प्रधान
बोले जिला समाज कल्याण अधिकारी
कुष्ठ रोगियों की पेंशन को लेकर शासन को प्रस्ताव भेजा जाएगा। नलों व हैंडपंपों की समस्या के लिए संबंधित विभागों को पत्र लिखा जाएगा। भवनों के निर्माण के लिए कंपनियों को सीएसआर फंड के लिए लिखा जाएगा। -अमन अनिरुद्ध, जिला समाज कल्याण अधिकारी
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