शहादत के 30 साल बाद सैनिक को सम्मान, बांग्लादेशी तस्करों का पीछा करते हुए BSF के लांस नायक प्रेम सिंह हुए थे शहीद
प्रेम 23 अगस्त 1994 को बंगाल के जंगलों में तस्करों का पीछा करते समय पद्मा नदी में डूब जाते हैं। लंबे सर्च ऑपरेशन के बाद भी वे नहीं मिले। तीन महीने बाद गुड्डी को सूचना दी जाती है कि उनके पति लापता हैं।

पद्मा नदी की लहरें शायद उस दिन की गवाही अब भी देती होंगी, जब लांस नायक प्रेम सिंह देश की रक्षा करते हुए उसमें समा गए थे। लेकिन उनकी शहादत को देश ने मान्यता देने में तीन दशक लगा दिए। 30 साल के लंबे इंताजर के बाद आखिकार बीएसएफ ने लांस नायक सिंह को शहीद मान लिया।
अगस्त 1994 में बांग्लादेशी तस्करों का पीछा करते हुए लापता हुए प्रेम सिंह को यह सम्मान दिलाने के लिए उनकी पत्नी गुड्डी देवी और भाई धनसिंह ने 30 साल तक ऐसी लड़ाई लड़ी, जिसमें न वर्दी थी और न ही हथियार। सिर्फ हौसला और उम्मीद थी। आखिरकार सीमा सुरक्षा बल ने प्रेम सिंह को शहीद का दर्जा देने की घोषणा की, तो परिवार की आंखें छलक उठीं।
प्रेम 23 अगस्त 1994 को बंगाल के जंगलों में तस्करों का पीछा करते समय पद्मा नदी में डूब जाते हैं। लंबे सर्च ऑपरेशन के बाद भी वे नहीं मिले। तीन महीने बाद गुड्डी को सूचना दी जाती है कि उनके पति लापता हैं। गुड्डी को सदमे से उबरने में महीना भर लग जाता है। इसके बाद शुरू होती है प्रेम को सम्मान दिलाने की लड़ाई, जिसमें वो सफल हुईं।
अटल सरकार की घोषणा के बाद छेड़ी थी मुहिम
धन सिंह बताते हैं कि सरकार ने भाई को तय समय बाद मृत तो घोषित कर दिया लेकिन शहीद का दर्जा नहीं दिया। इसकी बड़ी टीस उनके मन में थी। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने अर्धसैनिक बल के जांबाजों को भी शहीद के बराबर दर्जा देने की घोषणा की तो उन्होंने मुहिम शुरू की थी।
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