भारतीय ऑटो इंडस्ट्री में क्यों मचा हड़कंप? आखिर क्या है ये रेयर अर्थ मैगनेट? संकट के पीछे चीनी चाल? यहां समझें
भारत पर रेयर अर्थ मैगनेट नाम का संकट मंडरा रहा है। इसके कारण भारतीय ऑटो इंडस्ट्री समेत कई देशों में हड़कंप मच गया है। आइए इसे जरा विस्तार से समझते हैं।

भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री इन दिनों एक नए संकट ‘रेयर अर्थ मैगनेट’ की भारी किल्लत से जूझ रही है। इस बार वजह कोई घरेलू समस्या नहीं, बल्कि चीन की नई एक्सपोर्ट पाबंदियां हैं, जिसने दुनिया भर के ऑटो सेक्टर की नींद उड़ा दी है। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) की बढ़ती मांग के बीच यह संकट एक बड़े उद्योगिकीय झटके का संकेत है। आइए जानते हैं कि ये मैगनेट क्या हैं, क्यों जरूरी हैं और भारत के लिए इसका मतलब क्या है।
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क्या हैं रेयर अर्थ मैगनेट और क्यों हैं ये जरूरी?
रेयर अर्थ मैगनेट्स जैसे नीओडिमियम (NdFeB), डिसप्रोसियम और टेर्बियम, उन दुर्लभ धातुओं से बनते हैं, जो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, हाई-टेक मोटर्स, बैटरी सिस्टम, सेंसर और डिफेंस टेक्नोलॉजी में इस्तेमाल होते हैं। हर EV में लगभग 1.5-2 किलोग्राम रेयर अर्थ मैगनेट्स लगते हैं। दोपहिया इलेक्ट्रिक स्कूटर्स में भी ये बेहद अहम हैं।
क्या हुआ है अब?
चीन ने अप्रैल 2025 से इन महत्वपूर्ण मैगनेट्स के निर्यात पर सख्त लाइसेंस नियम लागू कर दिए हैं। भारत, जो लगभग 100% इन मैगनेट्स के लिए चीन पर निर्भर है, अचानक संकट में आ गया है। कई कंपनियों की फैक्ट्रियां जुलाई-अगस्त तक बंद हो सकती हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त स्टॉक नहीं बचा है।
क्यों मचा है ऑटो इंडस्ट्री में हड़कंप?
मारुति सुजुकी (Maruti Suzuki) जैसी बड़ी कंपनियों को अपने EV प्रोडक्शन टारगेट में भारी कटौती करनी पड़ी है। उच्च फीचर्स वाले मॉडल, जिनमें ज्यादा मैगनेट्स की जरूरत होती है, वो सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। Vayve Mobility, Bajaj Auto और अन्य कंपनियों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो EV असेंबली लाइनों पर ताले लग सकते हैं।
पिछली गलती दोहराने का डर
COVID-19 के समय जब सेमीकंडक्टर चिप्स की कमी हुई थी, तब पूरी दुनिया की ऑटो इंडस्ट्री महीनों तक जूझती रही थी। अब कुछ वैसा ही खतरा दोबारा मंडरा रहा है, बस इस बार संकट का नाम रेयर अर्थ मैग्नेट (Rare Earth Magnet) है।
भारत की स्थिति: क्यों चिंता जायज है?
चीन 90% ग्लोबल रेयर अर्थ मैगनेट उत्पादन पर काबिज है। भारत के पास पांचवें सबसे बड़े रेयर अर्थ भंडार हैं, फिर भी हम खुद उत्पादन नहीं करते हैं। देश की इकलौती कंपनी IREL (India Rare Earths Limited) इस क्षेत्र में काम कर रही है और उसकी उत्पादन क्षमता सीमित है।
समाधान क्या हो सकता है?
शॉर्ट टर्म उपाय
सरकार को डिप्लोमैटिक बातचीत के जरिए चीन से लाइसेंस मंजूर करवाने की कोशिश करनी चाहिए। वैकल्पिक मैगनेट्स जैसे फेराइट्स का अस्थायी इस्तेमाल हो सकता है। रीसाइकलिंग यानी पुराने वाहनों से मैगनेट निकालना भी एक ऑप्शन है।
लॉन्ग टर्म रणनीति
भारत को खुद का डोमेस्टिक सप्लाई चेन विकसित करना होगा। नई टेक्नोलॉजी और डीप-टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना होगा। वैल्यू चेन इनोवेशन और स्थानीय उत्पादन में निवेश करना होगा।
यह संकट एक चेतावनी
रेयर अर्थ संकट ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि पूरी तरह आयात पर निर्भरता खतरनाक है। अगर भारत अपनी EV क्रांति को सफल बनाना चाहता है, तो उसे जल्द से जल्द आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। (Credit- htauto)
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