जनपक्षीय चित्रकला के इतिहास की समझ वाले थे चित्रकार राकेश
-‘कला का सामाजिक दायित्व और राकेश दिवाकर का कला-चिंतन विषय पर विमर्श, उनके लेख चित्रकला

-‘कला का सामाजिक दायित्व और राकेश दिवाकर का कला-चिंतन विषय पर विमर्श -स्मृति दिवस पर उनके लेख ‘चित्रकला: एक चिंगारी राख में दबी हुई का पाठ किया गया आरा, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। राकेश दिवाकर चित्रकला के क्षेत्र में एक अच्छे संगठक और कला के गहरे अध्येता थे। वे केवल यथार्थ के नहीं, बल्कि संभावित यथार्थ के कलाकार थे। उन्होंने उन्हें चित्रकला को समझना सिखाया। शहर के पकड़ी स्थित जनमित्र कार्यालयमें चित्रकार व कला-साहित्य समीक्षक राकेश दिवाकर के तीसरे स्मृति दिवस पर जन संस्कृति मंच की ओर से आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जसम के राज्य अध्यक्ष कवि-कथाकार जितेंद्र कुमार ने ये बातें कहीं।
मौके पर ‘कला का सामाजिक दायित्व और राकेश दिवाकर का कला-चिंतन विषय पर विचार-विमर्श हुआ। पहले राकेश के कलाकर्म के शुरुआती दौर में लिखे गए उनके लेख ‘चित्रकला : एक चिंगारी राख में दबी हुई का पाठ किया गया। इसके बाद विषय प्रवर्तन करते हुए सुधीर सुमन ने कहा कि राकेश एक सचेत वैचारिक चित्रकार थे। उनका जीवन और कलाकर्म इसकी बानगी है कि किसी भी कलाकार की सामाजिक-राजनैतिक और सांस्कृतिक भूमिका कैसी होनी चाहिए? सुधीर सुमन ने यह भी अपील की कि राकेश दिवाकर का परिवार भयानक आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। राज्य सरकार उनके पुत्र को अनुकंपा के आधार पर नौकरी नौकरी दे। समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर ने कहा कि यह देखना चाहिए कि चित्रकला अपनी उंचाई पर कब पहुंची या कब वह जनकला बनी। कहानीकार और कवि सिद्धनाथ सागर ने कहा कि प्रायः कलाकारों का ध्यान अपनी कला पर केंद्रित रहता है, पर राकेश का ध्यान कलाकारों को संगठित करने पर था। चित्रकार कमलेश कुंदन ने कहा कि राकेश दिवाकर के काम में विविधता थी। चित्रकार रौशन राय ने कहा कि राकेश ने मानव जीवन की बेहतरी के लिए चित्रकला को माध्यम बनाया। चित्रकार कौशलेश ने बताया कि वे जो कला-समीक्षाएं लिख रहे थे, उसने विनोद भारद्वाज, अशोक भौमिक और प्रयाग शुक्ल जैसे कला-समीक्षकों का भी ध्यान आकर्षित किया। कवि अरुण शीतांश ने कहा कि राकेश एक ईमानदार और सीरियस कलाकार थे। आईलाज के अमित कुमार बंटी ने कहा कि आजीविका के लिए उन्होंने कई नौकरियां की, पर उसमें उनका मन नहीं लगता था। वे चित्रकला में ही रमे रहना चाहते थे। कवि सुमन कुमार सिंह ने कहा कि राकेश सामान्य जीवन में जितने अव्यवस्थित थे, कला में उतने ही व्यवस्थित थे। कवि ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि वे संघर्षरत जीवन के जीवंत चित्रकार थे। कवि सुनील चौधरी ने एक कुशल रंगकर्मी और नाट्य-निर्देशक के रूप में राकेश की भूमिका से जुड़े संस्मरण सुनाये। चित्रकार विजय मेहता ने कहा कि वे सामाजिक कुरीतियों और विकृतियों से संघर्ष करते हुए कलाकार थे। कार्यक्रम में संपादक और शायर रामयश अविकल, ज्ञानपीठ पब्लिक स्कूल के संचालक नीलेश कुमार गोलू, युवानीति के रंगकर्मी धनंजय ने भी अपने विचार रखे। मौके पर माले नेता राजू यादव, पूर्व विधायक मनोज मंजिल, दिलराज प्रीतम, नगर सचिव सुधीर कुमार, जितेंद्र विद्रोही, युवानीति के अमित मेहता, पत्रकार शमशाद प्रेम, कवि रविशंकर सिंह, विक्रांत, मधु कुमारी और नीता कुमारी भी मौजूद थे। अंत में हाल ही में दिवंगत हुए भोजपुरी के वरिष्ठ कथाकार तैयब हुसैन पीड़ित को एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।
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