Anganwadi Workers in Katihar Demand Fair Compensation Amid Rising Challenges बोले कटिहार : मानदेय में की जाए बढ़ोतरी, काम को मिले नया मोबाइल, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsBhagalpur NewsAnganwadi Workers in Katihar Demand Fair Compensation Amid Rising Challenges

बोले कटिहार : मानदेय में की जाए बढ़ोतरी, काम को मिले नया मोबाइल

कटिहार जिले की आंगनबाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं बच्चों की देखरेख में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, लेकिन उन्हें कम मानदेय और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। भवनहीन केंद्रों में काम करते...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरFri, 30 May 2025 10:27 PM
share Share
Follow Us on
बोले कटिहार : मानदेय में की जाए बढ़ोतरी, काम को मिले नया मोबाइल

कटिहार जिले की हजारों आंगनबाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं वर्षों से बच्चों के पोषण, शिक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी निभा रही हैं। भवनहीन केंद्रों और झोपड़ियों में काम करने के बावजूद वे पूरे समर्पण के साथ सेवा दे रही हैं, लेकिन बदले में उन्हें न पर्याप्त मानदेय मिल रहा है, न कोई सामाजिक सुरक्षा। विभाग की ओर से लगातार काम का बोझ बढ़ाया जा रहा है। तकनीकी जिम्मेदारियों से लेकर पोषण ट्रैकर एप तक। लेकिन संसाधन पुराने हैं और मोबाइल तक नहीं मिला। बढ़ती महंगाई और अपर्याप्त मानदेय के कारण उनका जीवन कठिन होता जा रहा है, जिससे असंतोष और पीड़ा बढ़ती जा रही है।

संवाद के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपनी परेशानी बताई। 33 सौ 99 स्वीकृत हैं जिले में आंगनबाड़ी केंद्र 22 सौ 16 आंगनबाड़ी केंद्र जिले में हैं भवनहीन 68 प्रतिशत केंद्र झोपड़ी या किराए में चल रहे जिले के तीन हजार से अधिक आंगनबाड़ी केंद्रों में सेविका-सहायिकाएं वर्षों से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रही हैं, लेकिन उनके मानदेय में लंबे समय से कोई ठोस बढ़ोतरी नहीं हुई है। परिणामस्वरूप इनके सामने परिवार चलाने से लेकर बच्चों की शिक्षा तक अनेक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। वहीं विभाग की ओर से काम का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे असंतोष भी गहराता जा रहा है। वर्ष 2024 के आंकड़ों के अनुसार कटिहार जिले में कुल 3,399 आंगनबाड़ी केंद्र स्वीकृत हैं, जिनमें से 3,263 केंद्र संचालित हो रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि इनमें से 2,216 केंद्र भवनहीन हैं, जहां सेविकाएं झोपड़ी या किराए की जगहों पर बच्चों की देखरेख और पोषण की जिम्मेदारी निभा रही हैं। सेविकाओं ने बतायी अपनी पीड़ा : सेविकाओं का कहना है कि विभाग पोषण ट्रैकर एप पर काम करने से लेकर रजिस्टर भरने तक का कार्य सौंप चुका है। कई बार एक ही जानकारी को मोबाइल एप और रजिस्टर दोनों में भरना पड़ता है। लेकिन मोबाइल फोन कई साल पहले मिले थे, जो अब खराब हो चुके हैं। उन्हें विभाग को लौटा भी दिया गया, लेकिन अब तक नया मोबाइल नहीं मिला। इस कारण ऑनलाइन काम करना बेहद मुश्किल हो गया है। सेविकाओं ने विभाग से या तो नया मोबाइल देने या कोई वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करने की मांग की है। काम के मुताबिक नहीं है मानदेय : सेविकाएं कहती हैं कि उन्हें मात्र 7,000 रुपये और सहायिकाओं को 4,000 रुपये मासिक मानदेय मिलता है, जो आज की महंगाई में ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है। विभाग द्वारा नई-नई जिम्मेदारियां तो दी जा रही हैं, लेकिन उनके कल्याण की कोई बात नहीं होती। कई सेविकाएं अब सेवानिवृत्ति की दहलीज पर हैं। न पेंशन की सुविधा है, न एकमुश्त कोई प्रोत्साहन राशि। उम्र के इस पड़ाव पर उनके सामने जीवन यापन एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। सेविकाओं ने राज्य व केंद्र सरकार से मांग की है कि उनकी दशा को देखते हुए मानदेय में यथोचित वृद्धि की जाए, सेवानिवृत्ति लाभ सुनिश्चित किया जाए और बुनियादी संसाधन उपलब्ध कराए जाएं। उनका कहना है कि वे काम से पीछे नहीं हट रही हैं, लेकिन सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार उन्हें भी है। शिकायत 1. मानदेय बहुत कम है, जिससे महंगाई के दौर में परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है। 2. सालों से कोई पेंशन योजना या सेवा उपरांत लाभ नहीं दिया गया। 3. विभाग द्वारा नए-नए कार्यभार तो दिए जा रहे हैं, लेकिन संसाधनों का घोर अभाव है। 4. मोबाइल खराब होने के बाद नया मोबाइल नहीं मिला, जिससे पोषण ट्रैकर एप पर काम करना असंभव हो गया है। 5. अधिकांश केंद्र भवनहीन या अस्थायी हैं, जिससे बच्चों और महिलाओं को असुविधा होती है। सुझाव: 1. मानदेय को कम से कम ₹15,000 (सेविका) और ₹8,000 (सहायिका) किया जाए। 2. सेवानिवृत्ति लाभ जैसे पेंशन या एकमुश्त भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित हो। 3. सभी केंद्रों पर पक्के भवन, शौचालय, बिजली और पानी की व्यवस्था की जाए। 4. पोषण ट्रैकर और अन्य एप कार्यों के लिए स्मार्टफोन और डेटा सहायता दी जाए। 5. सेविका-सहायिकाओं की नियमित समीक्षा बैठक और संवाद की व्यवस्था की जाए, जिससे उनकी समस्याएं सुनी जा सकें। इनकी भी सुनें हमसे हर महीने पोषण ट्रैकर पर अपडेट की मांग होती है, लेकिन पुराने मोबाइल से काम नहीं हो पाता। मानदेय इतना कम है कि खुद की बीमारी तक नहीं दिखा सकते। –सुलताना परवीन हम दिनभर बच्चों को संभालते हैं, पोषण देखरेख से लेकर कागजी काम तक सब करते हैं, लेकिन सरकार से कोई सराहना नहीं मिलती। न मोबाइल ठीक से चलता है, न मानदेय से घर का खर्च चलता है। –ममता कुमारी जब मोबाइल से काम करवाना है तो नया मोबाइल क्यों नहीं दिया जाता? 7000 में गुजारा कैसे हो? सेवानिवृत्ति के बाद कुछ भी नहीं मिलता, यह बहुत ही दुखद है। –शिमला देवी हम अपने बच्चों की परवरिश छोड़ दूसरों के बच्चों को संभालते हैं, लेकिन हमारे लिए कोई योजना नहीं बनती। झोपड़ी में आंगनबाड़ी चला रही हूं। बरसात में फर्श तक गीला हो जाता है। –रिंकी कुमारी हर रोज नए-नए काम थमा दिए जाते हैं। कभी टीकाकरण, कभी सर्वे, कभी मीटिंग। लेकिन बदले में मिलता है सिर्फ 7000 रुपये। अब तो लगता है जैसे हम दया पर जी रहे हैं। –सुमन कुमारी पुराने मोबाइल से पोषण एप खुलता ही नहीं, ऊपर से इंटरनेट खर्च भी हमें ही उठाना पड़ता है। रजिस्टर में भी वही डेटा भरना होता है, जो मोबाइल में भरते हैं। यह दोहरा बोझ हमें मानसिक रूप से थका देता है। –मिलन कुमारी हमसे विभाग हर दिन अपडेट मांगता है, लेकिन जब हम उपकरण की मांग करते हैं तो कोई जवाब नहीं देता। सहायिकाओं को तो और भी कम मानदेय मिलता है। –जूली कुमारी मैं पिछले 15 साल से सेविका हूं, लेकिन आज भी झोपड़ी में आंगनबाड़ी चला रही हूं। भवन तक नहीं मिला, मोबाइल कब का खराब हो चुका है।सरकार हमारे मानदेय और सुविधा दोनों पर ध्यान दे। –विभा कुमारी हम सेविकाएं स्कूल की तरह बच्चों को पढ़ाती भी हैं, खिलाती भी हैं, लेकिन हमारे लिए कोई स्थायी समाधान नहीं। बच्चों की तरह हम भी योजनाओं की हकदार हैं। –अनीता कुमारी जब एक मोबाइल से दो काम कराए जाते हैं और वह भी सालों पुराना हो तो परेशानी तय है। हमारी मेहनत को सम्मान मिलना चाहिए। 7000 रुपये में क्या होता है आज के जमाने में? –राजमणि यादव सरकार डिजिटल भारत की बात करती है, लेकिन सेविकाओं के पास डिजिटल साधन नहीं हैं। पोषण ट्रैकर और अन्य कार्य हम जैसे-तैसे कर लेते हैं, लेकिन विभाग की बेरुखी दुख देती है। –प्रतिभा सिन्हा हर महीने मीटिंग, हर दिन एप अपडेट, हर समय नई जिम्मेदारियां, लेकिन उसी पुराने मोबाइल से, और उसी 7,000 रुपये में। सरकार हमारी मुश्किलों को समझे, तभी असली विकास होगा। –गीता कुमारी कई बार लगा कि काम छोड़ दूं, लेकिन बच्चों की सेवा की भावना रोक लेती है। न तो सुविधा है, न सम्मान। हम अपने अधिकार के लिए आवाज उठा रहे हैं, सरकार को सुननी चाहिए। –रीता देवी 15 वर्षों से सेविका हूं, लेकिन न कोई स्थायी सुरक्षा मिली, न पेंशन की बात हुई। उम्र बढ़ रही है, जिम्मेदारियां भी। सेवानिवृत्ति के बाद क्या करेंगे, सरकार को समझना चाहिए। –गीता कुमारी जब पोषण और शिक्षा की बात आती है तो हमसे ज्यादा जिम्मेदारी किसी की नहीं होती, लेकिन जब सुविधा की बात आती है, हम सबसे नीचे होते हैं। क्या यह न्याय है? –कंचन भारती हमने कोविड जैसे संकट में भी बच्चों और गर्भवती महिलाओं की सेवा की, लेकिन बदले में क्या मिला? वही पुराना मोबाइल, कम मानदेय और हर महीने नया काम। –चंदा कुमारी बोलीं जिम्मेदार सेविका-सहायिकाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनकी मांगों को विभाग के उच्चाधिकारियों तक समय-समय पर भेजा गया है। मानदेय वृद्धि, मोबाइल उपलब्धता और भवन निर्माण जैसी समस्याओं को लेकर विभाग गंभीर है। कई केंद्रों में भवन निर्माण की प्रक्रिया चल रही है और जल्द ही मोबाइल उपलब्ध कराने पर भी निर्णय लिया जाएगा। पोषण ट्रैकर जैसे डिजिटल कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोग दिया जा रहा है। विभाग सेविकाओं की समस्याओं को समाधान की दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहा है। मनिषा कुमारी, प्रभारी डीपीओ, आईसीडीएस, कटिहार बोले कटिहार असर अब कटिहार के हर स्कूल में गूंजेंगे सुर-ताल कटिहार, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि। कटिहार जिले के स्कूलों में संगीत शिक्षा की दुर्दशा पर 23 मई को हिन्दुस्तान अखबार के बोले कटिहार पेज पर प्रकाशित प्रमुख खबर ने प्रशासन को जागरूक कर दिया है। “जब साज भी हो और सुर भी, तभी पूरे होंगे बच्चों के सपने” शीर्षक से छपी इस खबर का गहरा असर हुआ है। जिलाधिकारी मनेश कुमार मीणा ने खबर पर संज्ञान लेते हुए त्वरित कार्रवाई का निर्देश दिया। उनके निर्देश पर जिला शिक्षा पदाधिकारी अमित कुमार ने नीति आयोग के आकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत जिले के सभी 260 हाई स्कूलों में वाद्य यंत्रों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर अनुमोदित किया और उसे नीति आयोग को भेज दिया है। प्रस्ताव के अनुसार, अब हर हाई स्कूल में ड्रम सेट, नाल, हारमोनियम, साउंड सिस्टम, तबला, कैसियो और टैमेरिंन जैसे वाद्य यंत्र उपलब्ध कराए जाएंगे। इससे उन हजारों बच्चों को लाभ मिलेगा जो संगीत में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं लेकिन संसाधनों के अभाव में पिछड़ रहे थे। यह कदम न सिर्फ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को जमीन पर उतारने की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि ग्रामीण और कस्बाई प्रतिभाओं को मंच देने की दिशा में भी एक सार्थक पहल है। अब जल्द ही जिले के स्कूलों में सुर और ताल की गूंज सुनाई देगी। हिन्दुस्तान की पत्रकारिता ने एक बार फिर यह साबित किया है कि जब मुद्दे की बात उठती है, तो असर जरूर होता है।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।