Parents Frustrated by Private School Fees and Unregulated Practices in Purnia बोले पूर्णिया : निजी प्रकाशन की पुस्तकों की बाध्यता व रीएडमिशन हो बंद, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
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बोले पूर्णिया : निजी प्रकाशन की पुस्तकों की बाध्यता व रीएडमिशन हो बंद

पूर्णिया जिले में लगभग 3000 प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें से केवल 300 रजिस्टर्ड हैं। अभिभावकों को किताबों, यूनिफॉर्म और ट्यूशन चार्ज के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। निजी स्कूलों में मनमानी और फीस...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरMon, 28 April 2025 11:49 PM
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बोले पूर्णिया : निजी प्रकाशन की पुस्तकों की बाध्यता व रीएडमिशन हो बंद

जिले में तीन हजार के करीब प्राइवेट स्कूल हैं। इनमें तीन सौ स्कूल भी शिक्षा विभाग में रजिस्टर्ड नहीं है। रजिस्टर्ड स्कूलों पर अधिकारियों का कुछ ही मामले में नियंत्रण है। जिससे खासकर किताब एवं स्टेशनरी, स्कूल यूनिफार्म, नामांकन आदि प्राइवेट विद्यालयों की अपनी मनमानी है। इससे अभिभावक परेशान हैं। जिले में करीब 2 लाख बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे हैं। इन बच्चों से ट्यूशन चार्ज, किताब एवं स्टेशनरी, यूनिफार्म एवं अन्यान्य मदों में मोटी रकम वसूल की जाती है। दरअसल पूर्णिया में प्राइवेट स्कूलों की परिकल्पना एक जमाने में निजी पाठशाला से शुरू हुई थी। बाद में यह निजी पाठशाला ही प्राइवेट स्कूल के रूप में बदल गई। जब से सरकारी स्कूलों की शैक्षणिक व्यवस्था कमजोर हुई तो प्राइवेट स्कूल की चांदी कटने लगी। इससे अभिभावकों को काफी परेशानी हो रही है। निजी स्कूलों में री-एडमिशन, हर साल नई किताबें, नए यूनिफॉर्म और अन्य फरमानों ने इन्हें आर्थिक रूप से परेशान कर दिया है। हिन्दुस्तान के साथ संवाद के दौरान जिले के निजी स्कूलों के अभिभावकों ने अपनी परेशानी बताई।

03 हजार के करीब हैं पूरे जिले में प्राइवेट स्कूल

03 सौ से भी कम निजी प्राइवेट स्कूल हैं रजिस्टर्ड

02 लाख के करीब बच्चे पढ़ते हैं प्राइवेट स्कूल में

प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना आजकल हर अभिभावक का स्टेटस सिंबल बन गया है। बच्चों के जन्म के साथ ही अभिभावक अपने बच्चों की बेहतर पढ़ाई के लिए प्राइवेट स्कूल का चयन करने लगते हैं। प्राइवेट स्कूल के साथ ही अब तो शहर में प्ले स्कूल भी फलने-फूलने लगा है। जिन अभिभावकों की जितनी क्षमता होती है उसी हिसाब से वे लोग प्राइवेट स्कूल का चयन करते हैं। हालांकि प्राइवेट स्कूलों के प्राइवेट पब्लिकेशन की किताब की कीमत और री-एडमिशन अधिकांश अभिभावकों को पच नहीं रहा है। जिले में तीन हजार के करीब निजी विद्यालय हैं। जहां दो लाख के करीब बच्चे पढ़ते हैं। इनमें ढाई सौ के आसपास स्कूल रजिस्टर्ड हैं। कुछ मामलों को छोड़ इन पर विभागीय अधिकारियों का सीधा नियंत्रण नहीं है। जिससे निजी विद्यालयों की मनमानी चरम पर है। पढ़ाई के नाम पर हो रहे व्यवसायीकरण से अभिभावक हलकान हैं।

किताबों का एक सेट 15 हजार रुपये तक :

सरकारी विद्यालयों में गुणवत्ता पूर्ण पढ़ाई की व्यवस्था नहीं होने से निजी विद्यालयों की ओर रूख करना अभिभावकों की मजबूरी बनी हुई है। परन्तु यहां पड़ने वाली आर्थिक मार से खासकर मध्यम वर्गीय अभिभावकों की परेशानी बढ़ी है। अमूमन निजी विद्यालय प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबें चलाते हैं। जहां बीटीबीसी एवं एनसीईआरटी की किताबों के सेट की कीमत हजार तक नहीं पहुंचती है, वहीं प्री स्कूल के लिए प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों के सेट दो हजार से ऊपर में मिल रहे हैं। पहली से लेकर दसवीं तक के सेटों की कीमत पंद्रह हजार तक होती है। किताबों एवं यूनिफार्म की व्यवस्था निजी विद्यालय या तो अपने स्तर से कर रहे हैं या फिर इसके लिए चुनिंदा दुकान चिन्हित होती है। इन जगहो पर मिलने वाले स्टेशनरी एवं यूनिफार्म के सामानों में एक पैसे की छूट नहीं है।

हर जगह कमीशन का खेल :

इसके पीछे एक खास वजह यह है कि इन सामानों के कमीशन का एक बड़ा हिस्सा स्कूल प्रबंधकों की जेब में जाता है। उसी तरह विद्यालयों में रि एडमिशन या डेवलपमेंट चार्ज के नाम पर हर साल अभिभावकों की जेबें काटी जा रही है। हर साल वसूले जा रहे इस शुल्क के एवज में सुविधा नाम मात्र की होती है। छोटे स्तर के विद्यालयों में थोड़ी बहुत राहत भी मिलती है, परन्तु बड़े विद्यालयों के नखरे उठाना अभिभावकों के लिए असह्य बना हुआ है। यहां एडमिशन के नाम पर लम्बा डोनेशन का खेल चल रहा है। इतना ही नहीं शहर के कुछ बड़े स्कूलों में बच्चों के साथ- साथ अभिभावकों को भी टेस्ट के दौर से गुजरना पड़ता है। यह व्यवस्था बच्चों के विकास के लिए कम, अभिभावकों को पढ़ाई के नाम पर ताम- झाम परोसने के लिए अधिक होती है।

मानक विहीन भवनों में चल रहे स्कूल:

कई विद्यालय मानक विहीन भवन में संचालित हो रहे हैं। इनमें कुछ विद्यालयों को बिहार सरकार की ओर से रजिस्टर्ड भी किया गया है। ऐसे विद्यालय जिला मुख्यालय से दूर ग्रामीण इलाके में अधिक है। ऐसे विद्यालय प्रायः लीज पर लिए गए भवनों में संचालित हो रहे हैं। कहीं टिन के शेड में विद्यालय संचालित हो रहे हैं तो कहीं अंधेरे और संकीर्ण जगह में बच्चे पढ़ रहे हैं। ऐसे विद्यालयों में बच्चों के खेलने की कोई व्यवस्था नहीं होती है। बिहार सरकार से आठवीं तक के लिए मान्यता लेकर चलने वाले विद्यालयों में नवम् एवं दशम् के छात्र पढ़ रहे हैं। इनका नामांकन सीबीएसई से मान्यता प्राप्त विद्यालयों में फर्जी तरीके से कर दिया गया है। जहां से ये बच्चे दसवीं की परीक्षा में शामिल हो रहे हैं। इन विद्यालयों की अधिकारियों से शिकायत भी होती है तो इस पर ध्यान देना अधिकारियों के लिए या तो नागवार गुजर रहा है, या फिर टेबुल रिपोर्ट तैयार कर शिकायतों की अनदेखी कर दी जा रही है।

बस्ते के बोझ और होम वर्क के लोड से कुम्हला रहा बचपन:

खाने और खेलने की उम्र बच्चे बस्ते का बोझ ढो रहे हैं। 15- 20 किलोग्राम वजन के बच्चे के शरीर पर पांच किलोग्राम तक का बोझ लादा जा रहा है। इसके अलावा स्कूलों में चार से पांच घंटे किताबों में खोने वाले इन मासूमों पर होम वर्क का लोड रहता है। यह सिलसिला प्री स्कूलिंग की कक्षा नर्सरी से शुरू हो जाता है। इन्हीं बस्तो के बोझ एवं होमवर्क के लोड से मासूमियत कुम्हला रहा है। एक्सपर्ट मानते हैं कि बच्चों पर बस्तों के लोड से रीढ़ की हड्डी में दर्द, प्रतिरोधक क्षमता में कमी के साथ होमवर्क के लोड से चिड़चिड़ापन, तनाव जैसी समस्या का खतरा बना रहता है। बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव की परवाह किए गए बिना निजी विद्यालयों में बस्ती एवं होमवर्क के बोझ बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, जिसपर किसी का ध्यान नहीं है।

शिकायत:

1. प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों से लेकर यूनिफार्म तक के लिए स्कूलों की ओर से चिह्नित जगह होती है, जहां एक पैसे की छूट नहीं मिलती है।

2. री-एडमिशन के नाम पर भारी रकम राशि हर साल वसूल की जाती है, इसके बिना बच्चों को वर्ग प्रोन्नति नहीं मिलती है।

3. बड़े निजी विद्यालयों में बच्चों के साथ अभिभावकों का लिया जाता है टेस्ट।

4. मानक विहीन भवनों में जिले के कई निजी विद्यालय संचालित हैं, जिससे बच्चों की सेहत पर खतरा बना रहता है।

5. ट्यूशन चार्ज में हर साल मनमानी वृद्धि की जाती है।

सुझाव:

1. हर निजी विद्यालय में सरकारी पब्लिकेशन यथा बीटीबीसी, एनसीईआरटी आदि की किताबों लागू करने की व्यवस्था हो।

2. हर साल री-एडमिशन पर पाबंदी लगनी चाहिए, बिना री-एडमिशन के वर्ग प्रोन्नति नहीं देने वाले विद्यालयों पर कार्रवाई हो।

3. शुल्कों के लिए शुल्क विनियामक कमिटी बनाकर विद्यालयों के शुल्कों का निर्धारण किया जाना चाहिए।

4. अधिकारियों की ओर से समय- समय पर विद्यालयों का भौतिक निरीक्षण किया जाना चाहिए।

5. छोटे- छोटे बच्चों को बस्ते एवं होमवर्क के लोड को लेकर गाइड लाइन जारी करना चाहिए, इसका अनुपालन नहीं करने वाले निजी विद्यालयों पर कार्रवाई होना चाहिए।

हमारी भी सुनें:

1. विद्यालयों में हर साल किताबें बदल दी जा रही है। जिससे चाह कर भी हम अपने बच्चे की किताब दूसरे बच्चे को नही दे सकते हैं। नयी किताबों की कीमत इतनी अधिक होती है कि अभिभावक हांफ जाते हैं।

-अरुणाभ भास्कर उर्फ गौतम वर्मा

2. जेब भरने की खातिर निजी विद्यालय की ओर से मासूमों के कंधे पर बस्ते का बोझ बढ़ाया जा रहा है। लाचारी में अभिभावक बच्चों को भारी-भरकम बस्ते का बोझ लाद रहे हैं। इसपर ध्यान देने की जरूरत है।

-रंजीत गुप्ता

3. निजी विद्यालयों में हर वर्ष 10 से 20 प्रतिशत तक फीस की बढ़ोतरी की जाती है एवं निजी प्रकाशन की किताबें दी जाती है। री-एडमिशन के नाम पर भी अभिभावकों से भारी भरकम राशि वसूल की जाती है।

-शिवशंकर तिवारी

4. एक कक्षा के लिए निजी प्रकाशन की ओर उपलब्ध किताबों की सेट की कीमत आठ हजार तक है। इतनी महंगी किताबें खरीदने में मध्यमवर्गीय अभिभावक परेशान हो जा रहे हैं।

-शिवशंकर मंडल

5. निजी विद्यालयों में अभिभावकों के हो रहे दोहन की सबको जानकारी एवं अभिभावक इससे परेशान हैं। परन्तु सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई की खराब हालत के चलते अभिभावक निजी विद्यालयों की ओर रूख कर रहे हैं।

-दिलीप श्रीवास्तव

6. सभी स्कूली का विभाग द्वारा मासिक जांच होनी चाहिए। स्कूलो में बच्चो को किताबों से नहीं लादा जाय। बच्चे के बौद्धिक विकास और पढाई पर अभिरुचि बढने पर जोर हो। अभिभावक भी बच्चे को पढ़ाई पर डांटे नहीं खुलकर बात करें।

-राजीव रंजन

7. निजी विद्यालयों में शुल्क के लिए शुल्क विनियामक कमिटी बनना चाहिए। कमिटी विद्यालयों में उपलब्ध संसाधनों का भौतिक निरीक्षण कर शुल्क निर्धारित करे। कमिटी की ओर से निर्धारित शुल्क को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए।

-रिजवान आलम

8. कुछ निजी विद्यालय प्रबंधक की ओर से सेट में से एक या दो किताबों को बदल दिया जाता है। जब बदली किताब की मांग की जाती है तो सेट का हवाला दिया जाता है। इसके अलावा बच्चों की टाई, बेल्ट एवं अन्य स्टेशनरी सामानों पर मनमाना शुल्क लिया जाता है।

-सूरज गुप्ता

9. निजी विद्यालयों पर शासन और प्रशासन की ओर से शिकंजा कसा जा सकता है, परन्तु अभिभावकों के दुख- दर्द से किसी को कोई वास्ता नहीं है। यही वजह है कि निजी विद्यालय शिक्षण संस्थान कम, व्यावसायिक प्रतिष्ठान अधिक बन गए हैं।

-आयुष कुमार मिश्र

10. कई निजी विद्यालय मानक विहीन भवनों में संचालित हो रहे हैं। कहीं टिन के शेड में विद्यालय चलाए जा रहे हैं तो कहीं विद्यालयों में समुचित रोशनी एवं यूरिनल की समुचित व्यवस्था नहीं है। आधिकारिक स्तर पर जांच नहीं होने से भेड़िया- धसान व्यवस्था के बीच निजी विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है।

-रविन्द्र कुमार यादव

बोले जिम्मेदार:

अभी कहीं से कोई लिखित शिकायत नहीं है। संबंधित विद्यालयों की लिखित शिकायत अभिभावक करें तो कार्रवाई होगी। शुल्क विनियामक कमिटी की पूर्णिया में क्या स्थिति है, इसके बारे में पता करवाया जा रहा है।

-प्रफुल्ल कुमार मिश्र, जिला शिक्षा पदाधिकारी, पूर्णिया।

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बस अड्डा की डीपीआर को मंजूरी का इंतजार

पूर्णिया। पूर्णिया बस अड्डे के निर्माण पर लगा ग्रहण छटने का नाम नहीं ले रहा है। बस अड्डा की डीपीआर को मंजूरी का इंतजार है। हालांकि, इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर लगातार जतन हो रहे हैं। जिला परिषद पूर्णिया की अध्यक्ष वाहिदा सरवर के मुताबिक जल्द ही बस स्टैंड का कायाकल्प होगा। लगभग 40 करोड़ की लागत से बस स्टैंड हाईटेक होगा। इधर, बस अड्डा के कायाकल्प की उम्मीद के बीच यात्री बेहाल हैं। बस स्टैंड परिसर में नाला के टूटे स्लैब वाहनों की आवाजाही के लिए खतरनाक साबित हो रही है। लोगों के खुले नाले में गिरने की संभावना रहती है। खासकर निकास द्वार पर बिना ढक्कन का नाला यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। बस स्टैंड में लोग आपाधापी के साथ बस पकड़ने में तेजी करते हैं। हड़बड़ी में बस पकड़ने वाले लोगों के गिरने की संभावना बनी रहती है। कभी-कभी तो लोग नाला में गिर भी जाते हैं। नाला में गंदगी का अंबार है। दुर्गंध से लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस दौरान हाटलों में खाने-पीने वाले यात्रियों को भी दिक्कत होती है। बरसात में नाला के पानी के साथ बरसाती पानी के मिलने के बाद तो बस स्टैंड में रुकना भी मुश्किल हो जाता है। हालांकि कई यात्री सड़क पर से ही बस पकड़ने को मुनासिब समझते हैं।

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