Teachers in Munger University Face Financial Crisis Amid Government Negligence बोले मुंगेर : नौ साल से नहीं मिला अनुदान, घर-परिवार चलाना मुश्किल, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsBhagalpur NewsTeachers in Munger University Face Financial Crisis Amid Government Negligence

बोले मुंगेर : नौ साल से नहीं मिला अनुदान, घर-परिवार चलाना मुश्किल

मुंगेर विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों के शिक्षक आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। 2016 से 250 करोड़ रुपये का अनुदान लंबित है। शिक्षकों ने सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की उदासीनता पर चिंता जताई है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरTue, 15 April 2025 11:39 PM
share Share
Follow Us on
बोले मुंगेर : नौ साल से नहीं मिला अनुदान, घर-परिवार चलाना मुश्किल

बिहार राज्य के शैक्षणिक परिदृश्य में अहम भूमिका निभाने वाले मुंगेर विश्वविद्यालय से संबद्ध डिग्री कॉलेजों के शिक्षक-शिक्षिका आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं। यह विडंबना ही है कि जो शिक्षक दूसरों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाने का कार्य करते हैं, वे स्वयं आज सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की उदासीनता का शिकार होकर वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं। हिन्दुस्तान के बोले मुंगेर अभियान के तहत आरडी एंड डीजे कॉलेज मुंगेर के प्रांगण में संवाद के दौरान विभिन्न संबद्ध कॉलेजों से आए शिक्षक-शिक्षिकाओं ने अपनी पीड़ा साझा की।

17 है मुंगेर विश्वविद्यालय के अंतर्गत संबद्ध डिग्री कॉलेजों की कुल संख्या

05 सौ 50 है मुंगेर विवि से संबद्ध कॉलेजों में कार्यरत शिक्षकों की संख्या

02 सौ 50 करोड़ रुपये अनुदान राशि बकाया है वर्ष 2016 से शिक्षकों का

मुंगेर विश्वविद्यालय के अंतर्गत कुल 17 संबद्ध डिग्री कॉलेज हैं, जिनमें लगभग 550 शिक्षक-शिक्षिकाएं कार्यरत हैं। इन शिक्षकों ने वर्षों से अपने जीवन का सर्वस्व शिक्षण कार्य को समर्पित कर दिया है, परंतु उनकी आर्थिक स्थिति आज अत्यंत दयनीय है। समय पर वेतन न मिलना, सेवानिवृत्ति के बाद भी बकाया भुगतान न होना और सरकार की मनमानी नीतियों के कारण वे न केवल मानसिक तनाव में जी रहे हैं, बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा एवं परिवार की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति भी करने में असमर्थ हो चुके हैं। शिक्षकों का कहना था कि, जब राज्य में कॉलेजों की संख्या अत्यंत सीमित थी, तब उन्होंने निजी स्तर पर संबद्ध कॉलेजों की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया। इन कॉलेजों के माध्यम से हजारों छात्रों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान की गई। किंतु, आज, जब ये संस्थान आधारभूत संरचनाओं के साथ पूरी तरह सक्षम हैं, सरकार द्वारा इनके सरकारीकरण की कोई पहल नहीं की जा रही है।

अनुदान की विसंगतियां :

शिक्षकों की सबसे बड़ी चिंता अनुदान की कमी है। वर्ष 2016 से अब तक लगभग 250 करोड़ रुपये का बकाया अनुदान लंबित है। सरकार ने अनुदान की सीमा मात्र 1.5 करोड़ रुपये तय कर दी है, जबकि छात्र संख्या के आधार पर यह राशि अपर्याप्त है। शिक्षकों की मांग है कि अनुदान की सीमा को समाप्त कर परीक्षा परिणाम और छात्र संख्या के अनुपात में अनुदान प्रदान किया जाए। इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा एससी/एसटी और सामान्य वर्ग की छात्राओं से फीस नहीं लेने के निर्देश दिए गए हैं, जिसकी भरपाई भी सरकार को करनी थी, लेकिन वह राशि आज तक कॉलेजों को प्राप्त नहीं हुई है, जिससे संस्थानों की वित्तीय हालत और भी गंभीर हो गई है।

विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता:

सिर्फ सरकार ही नहीं, विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता भी शिक्षकों की पीड़ा को और गहरा कर रही है। शिक्षकों का कहना है कि विश्वविद्यालय में उनका कोई चयनित प्रतिनिधि नहीं है, जिससे उनकी समस्याओं की कोई सुनवाई नहीं होती। सीनेट और सिंडीकेट चुनाव वर्षों से लंबित हैं। वहीं, प्रयोगात्मक उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन और परीक्षाओं के वीक्षण से जुड़ी बकाया राशि का भी भुगतान अब तक नहीं किया गया है। शिक्षकों की मांग है कि संबंधित कॉलेजों में सेवा सामंजस्य हेतु एक समिति बनाई जाए और इस कार्य को शीघ्र पूरा किया जाए।

शिक्षकों की प्रमुख मांगें :

सभी संबद्ध कॉलेजों का सरकारीकरण किया जाए। शिक्षकों को घाटानुदान शीघ्र प्रदान किया जाए। वर्ष 2016 से बकाया अनुदान की राशि तत्काल कॉलेजों को वितरित की जाए। अनुदान सीमा समाप्त कर छात्र संख्या के अनुसार राशि तय की जाए। सेवानिवृत्त शिक्षकों को समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जाए। सीनेट और सिंडीकेट चुनाव अविलंब कराए जाएं। सभी संबद्ध कॉलेजों में शिक्षक प्रतिनिधि का चयन सुनिश्चित किया जाए। संबद्ध महाविद्यालयों के लिए विशेष सेल की स्थापना हो, जो कॉलेजों के दस्तावेजों की निगरानी कर सके।

शिक्षा बचानी है तो शिक्षक बचाइए:

आज आवश्यकता इस बात की है कि सरकार एवं विश्वविद्यालय प्रशासन इन समस्याओं को केवल आंकड़ों और फाइलों में नहीं देखें, बल्कि शिक्षकों की वास्तविक स्थिति को समझें। यदि समाज को सशक्त बनाना है तो शिक्षकों की गरिमा और उनका आर्थिक सम्मान बहाल करना होगा। क्योंकि शिक्षक ही किसी राष्ट्र की आत्मा होते हैं। अगर वे ही असुरक्षा, अवमानना और आर्थिक तंगी से ग्रसित रहेंगे तो उच्च गुणवत्ता की शिक्षा की कल्पना बेमानी होगी। अब समय आ गया है कि, सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाए और मुंगेर विश्वविद्यालय से जुड़ी शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा दे।

शिकायत

1. शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिलता। वर्ष 2016 से अनुदान की राशि (लगभग 250 करोड़ रुपये) लंबित है।

2. जिन संबद्ध कॉलेजों में पूर्ण आधारभूत संरचना है, उन्हें अब तक सरकारी कॉलेजों का दर्जा नहीं दिया गया है।

3. सीनेट और सिंडीकेट चुनाव वर्षों से लंबित हैं, जिससे शिक्षक विश्वविद्यालय के निर्णय प्रक्रिया से वंचित हैं।

4. सरकार द्वारा एससी-एसटी और सामान्य वर्ग की छात्राओं से फीस नहीं लेने का निर्देश तो है, पर उसका भुगतान कॉलेजों को नहीं किया जाता।

5. सेवा सामंजस्य, वीक्षण और मूल्यांकन कार्य की बकाया राशि, तथा सेवानिवृत्त शिक्षकों को भुगतान में देरी जैसी समस्याएं बनी हुई हैं।

सुझाव:

1. शिक्षकों को समय पर आर्थिक सहयोग देने हेतु डीबीटी प्रणाली लागू की जाए।

2. पहले से कार्यरत और आधारभूत सुविधाओं से युक्त कॉलेजों को प्राथमिकता देते हुए उनका सरकारीकरण किया जाए।

3. विश्वविद्यालय में लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए, जिससे शिक्षकों की आवाज़ सुनी जा सके।

4. प्रति कॉलेज अनुदान की सीमा 1.5 करोड़ हटाकर, आवश्यकता के अनुसार राशि दी जाए।

5. एक विशेष इकाई गठित की जाए जो संबद्ध कॉलेजों की समस्याओं पर निगरानी रखे और समाधान सुनिश्चित करे।

सुनें हमारी बात

हमारी समस्याओं एवं मांगों की ओर ना तो सरकार एवं शिक्षा विभाग ध्यान देती है और ना ही विश्वविद्यालय देता है। हमें सरकार से ना तो समय पर अनुदान मिलता है और ना ही विश्वविद्यालय से विभिन्न कार्यों का मानदेय। हम आर्थिक विभिन्नता के शिकार हैं। सरकार को हमारी ओर ध्यान देना चाहिए।

-सत्येंद्र कुमार सिंह, एसबीएन कॉलेज, गढ़ीरामपुर

सरकार की मंशा तो उनके मंत्रियों के वक्तव्य में भी दिखाई पड़ती है। सरकार एवं विश्वविद्यालय प्रशासन हमारी मांगों को पूरा करे। समय पर अनुदान का भुगतान करे। विश्वविद्यालय में हमारा प्रतिनिधित्व हो और हमारे सभी संबद्ध कॉलेजों का सरकार अधिग्रहण करे।

-राजीव नयन, एसबीएन कॉलेज, गढ़ीरामपुर

हमें अनुदान के रूप में अत्यंत ही कम राशि मिलती है। सरकार इसे बढ़ाए। इसके साथ ही अनुदान की राशि हम शिक्षकों के खाते में डीबीटी के माध्यम से सीधे प्रदान करे।

-डॉ मंजू कुमारी, महिला कॉलेज, बढ़हिया

सरकार अप्रैल, 2007 के बाद बहाल होने वाले शिक्षक कर्मियों को अनुदान की राशि नहीं देती है। यह सरासर ऐसे शिक्षकों के साथ अन्याय है। सरकार ऐसे शिक्षकों के लिए भी अनुदान जारी करे।

-साधना कुमारी, एसके कॉलेज, लोहंडा

हमें ना तो समय पर वेतन मिलता है और ना ही सेवानिवृत्ति की राशि मिलती है। हम सरकार द्वारा दिए जाने वाले अनुदान का मुंह ताकते हैं। लेकिन, वह कभी समय पर नहीं मिलता है। सरकार एकमुश्त बकाया भुगतान जारी करे।

-श्रीमति मंजू, डीआरएस, कॉलेज, सिकंदरा

हर स्तर पर हमारे साथ मनमानी किया जाता है। हम सरकारी रवैया एवं विश्वविद्यालय के उदासीनता के कारण हमेशा आर्थिक अभाव तथा तनाव में रहती हैं। हम अपने परिवार की बुनियादी आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं कर पाते हैं।

-वंदना कुमारी, एसबीएन कॉलेज, गढ़ीरामपुर

ना तो कॉलेज में हमारा कोई चयनित प्रतिनिधि है और ना ही विश्वविद्यालय में। दोनों जगह हमारी आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। आज तक कॉलेज एवं विश्वविद्यालय हमारे प्रतिनिधियों का चुनाव नहीं हुआ है।

-डॉ सुनीता कुमारी, एसबीएन कॉलेज, गढ़ीरामपुर

सरकार ने कॉलेजों को दिए जाने वाले अनुदान की सीमा डेढ़ करोड़ कर दी है, जो उचित नहीं है। सरकार को यह सीमा समाप्त कर अनुदान की राशि छात्रों की संख्या एवं उसके परीक्षा परिणाम के अनुरूप बढ़ानी चाहिए।

-डॉ अरुण कुमार शर्मा, एसएस कॉलेज, मेहूस

सरकार की उदासीनता के कारण आज शिक्षक आर्थिक समस्या में घिरे हुए हैं। सरकार के यहां वर्ष 2016 से ही मुंगेर विश्वविद्यालय के सभी संबद्ध कॉलेजों का लगभग 250 करोड रुपए का अनुदान बाकी है।

-दीपक कुमार सिंह, एसजीएम कॉलेज, शेखपुरा

सरकार ने सभी वर्ग की छात्राओं से किसी भी प्रकार का फीस नहीं लेने का निर्देश दिया हुआ है। इसके कारण कॉलेज में आर्थिक कंगाली छाई हुई है। छात्राओं की फीस के बदले सरकार को क्षतिपूर्ति राशि देनी थी।

-पंकज कुमार, महिला कॉलेज, बड़हिया

मुंगेर विश्वविद्यालय से संबंधित 17 डिग्री कॉलेज के लगभग 550 शिक्षक-शिक्षिकाएं आज आर्थिक बदहाली झेल रहे हैं और तनाव की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। सरकार हमारे कॉलेज का अधिग्रहण करे।

-मनोज कुमार ठाकुर, एसबीएन कॉलेज, गढ़ीरामपुर

विश्वविद्यालय में विभिन्न सत्रों के प्रयोगात्मक उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन और परीक्षाओं के वीक्षण से जुड़ी राशि बकाया है। विश्वविद्यालय प्रशासन को जल्दी इसे जारी करना चाहिए।

-डॉ सुधांशु शेखर, एसएस कॉलेज, मेहुस

विश्वविद्यालय में सीनियर एवं सिंडिकेट का चुनाव वर्षों से लंबित है। ऐसे में वहां हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है और विश्वविद्यालय के निर्णय प्रक्रिया में शामिल होने से हम वंचित है।

-डॉ अखिलेश्वर प्रसाद सिंह, एसबीएन कॉलेज, गढ़ीरामपुर

पहले से विभिन्न प्रखंडों में स्थापित और सभी आवश्यक आधारभूत सुविधाओं से युक्त कॉलेज को प्राथमिकता देते हुए सरकार इसका अधिग्रहण करे। इसके साथ ही सरकार अनुदान की राशि भी बढ़ाए।

-मंजू कुमारी, एसएस कॉलेज, मेहूस

ना तो सरकार समय पर अनुदान देती है और ना ही क्षतिपूर्ति राशि दे रही है। ऐसे में शिकार हम शिक्षक- शिक्षिकाएं हो रहे हैं। सरकार हमारी मांगों पर विशेष ध्यान देते हुए जल्द ही हमारी समस्याओं का समाधान करे।

-कुमारी वंदना, डीआरएस कॉलेज, सिकंदरा

शिक्षा पर सरकार अत्यंत कम खर्च कर रही है। संबद्ध कॉलेज की समस्याओं की तरफ तो उसका ध्यान ही नहीं है। सरकार उसे भी आर्थिक सहायता दे और उसका विकास करे।

-अर्पणा कुमारी, डीआरएस कॉलेज, सिकंदरा

बाले जिम्मेदार

मुंगेर विश्वविद्यालय पहले से समस्याओं के अंबार पर बैठा हुआ है। सभी समस्याओं का हाल एक साथ नहीं किया जा सकता है। विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों की समस्याओं पर भी निश्चित रूप से ध्यान दिया जाएगा और उसका समाधान किया जाएगा। अभी एक-एक कर मैं समस्याओं का समाधान कर रहा हूं। उनकी समस्याओं का समाधान भी होगा और उनकी मांगें भी पूरी होंगी।

-प्रो संजय कुमार, कुलपति, मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर

बोले विधायक

विश्वविद्यालयों से संबद्ध डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों की स्थिति अच्छी नहीं है। सरकार द्वारा जो अनुदान दिया जाता है, वह काफी कम है। इसमें से भी कॉलेज प्रबंधन द्वारा शिक्षकों को अनुदान की राशि देने में कटौती की जाती है। सरकार को अनुदान की राशि कॉलेज को न देकर सीधे शिक्षकों के खाते में डीबीटी के माध्यम से देना चाहिए। अनुदान की राशि भी बढ़ाकर सम्मानजनक करना चाहिए और वह समय पर मिले। सरकार प्रखंड स्तर पर नए कॉलेज खोलने का विचार कर रही है। सरकार को पहले विभिन्न प्रखंडों में मौजूद निजी कॉलेजों का, जिसमें सभी आवश्यक आधारभूत संरचनाओं मौजूद हैं, अधिग्रहण करना चाहिए। मैंने इन मुद्दों को लेकर सदन में आवाज उठाई है। सरकार ने इस पर विचार करने का आश्वासन दिया है।

-प्रणव कुमार यादव, विधायक, मुंगेर विधानसभा, मुंगेर

बोले मुंगेर असर

दिव्यांगों की होगी जांच, मिलेंगे उपकरण

मुंगेर। हिन्दुस्तान अखबार के बाले मुंगेर अभियान के तहत शहर के 18 मार्च को दिव्यांगों के साथ संवाद किया गया था। इसमें दिव्यागों ने अपनी समस्याएं बतायी थी। सबसे प्रमुख समस्या जो संवाद के दौरान उभरकर सामने आयी थी वह था दिव्यांगों के लिए सहाय्य उपकरणों का। उनका कहना था कि अभी भी कई दिव्यांग ऐसे है जिन्हें बैट्री चलित ट्राईसाइकिल नहीं मिली हैं। इसके अलावा खराब ट्राईसाइकिलों को ठीक करने की व्यवस्था नहीं है। ऐसा इसलिए कि सरकारी स्तर पर मुंगेर में कोई रिपेयर सेंटर नहीं है। बोले मुंगेर अभियान के तहत डीएम ने संज्ञान लेने का वादा किया था। फलस्वरूप असरगंज, संग्रामपुर, तारापुर एवं खड़गपुर प्रखंड में क्रमश: आगामी 22 से 25 अप्रैल को दिव्यागों के लिए जांच शिविर का आयोजन किया है। इसमें टीम द्वारा पात्र लाभुकों का परीक्षण किया जाएगा। इस शिविर में अधिक से अधिक दिव्यांगजनों को भाग लेकर लाभ प्राप्त करने की अपील की गयी है। जांच के बाद उन्हें तय समय सीमा के अंदर ट्राईसाइकिल दे दी जाएगी। इसे लेकर दिव्यांग जनों ने हिन्दुस्तान का भी आभार व्यक्त किया है।

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।