विधानसभा के बजट सत्र में जीविका दीदियों का उठाया मामला
बिहार विधानसभा में विधायक डॉ. अजीत कुशवाहा ने 'जीविका' दीदियों के न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत भुगतान न मिलने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि दीदियों को पूर्णकालिक सफाईकर्मियों के रूप में काम करने...

पल्ला झाड़ा 'न्यूनतम मजदूरी अधिनियम' के तहत भुगतान नहीं किया जाता है विधायक ने कहा कि जीविका बिहार के मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट डुमरांव, हमारे प्रतिनिधि। विधानसभा के बजट सत्र के प्रश्नोत्तर काल में डुमरांव के माले विधायक डॉ. अजीत कुशवाहा ने सदर अस्पताल, बक्सर व अनुमंडल अस्पताल, डुमरांव सहित अन्य स्वास्थ्य केन्द्रों में साफ-सफाई व हाउसकीपिंग कार्य कर रही ''जीविका'' दीदियों का प्रश्न उठाया। लेकिन सरकार का जवाब संतोषजनक नहीं रहा। आम जनमानस एवं अधिकारियों को पता है कि हाउसकीपिंग का कार्य जीविका के माध्यम से ही संचालित हो रहा है। लेकिन जब जीविका दीदियों के भविष्य एवं सामाजिक सुरक्षा की बात की जाती है तो सरकार इससे पल्ला झाड़ रही है। प्रश्न उठाया गया कि जीविका दीदियों को बतौर सफाईकर्मी के रुप में बहाल किया गया है। सभी पूर्णकालिक रूप से प्रतिदिन कार्य कर रही है। परन्तु सफाईकर्मियों को 'न्यूनतम मजदूरी अधिनियम' के तहत न ही भुगतान किया जाता है और न ही ईएसआई व ईपीएफ का ही लाभ मिल रहा है। इस पर सरकार का कहना है कि अस्पतालों में जीविका के माध्यम से नहीं बल्कि 'संकुल स्तरीय संघ' के माध्यम से उनके स्वयं सहायता समूह के सदस्य कर रहे है। इतना ही नहीं पहले जो सफाईकर्मी पूर्णकालिक रूप से होने पर मजदूरों को प्राप्त सुविधाओं का लाभ ले रहे थे अब वह लाभ जीविका सफाईकर्मियों को नहीं मिलेगा । विधायक ने कहा कि जीविका बिहार के मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है। बिहार की आधी आबादी ग्रामीण गरीब महिलाओं को सशक्तिकरण करने के नाम पर मुख्यमंत्री ने सभी को मुफ्त का मजदूर बना दिया है। जीविका दीदियों एवं कैडरों को लगभग मुफ्त में दिन रात कार्य कराया जाता रहा है और अपनी पीठ थपथपाते हैं। विधायक ने कहा कि मंत्री जी जीरो टॉलरेंस की बात करतें हैं । परन्तु सच यह है कि जीविका परियोजना आज पूरी तरह भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबा हुआ है। जिसपर निचले अधिकारियों से लेकर मंत्री तक की मौन सहमति है। यह बिहार की आधी आबादी का प्रश्न है कि क्या 'संकुल स्तरीय संघ' के माध्यम से काम होने पर 'श्रम कानून' लागू नहीं होंगे। यह बिहार की महिलाओं को हकों की हकमारी है। हम लगातार इसके खिलाफ लड़ते रहेंगे ।
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