मातृभाषा में हो विज्ञान की पढ़ाई : प्रो. मिश्रा
दरभंगा में विज्ञान भारती बिहार द्वारा मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा पर सेमिनार आयोजित किया गया। प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा ने मातृभाषा में शिक्षा को छात्रों के लिए अधिक...
दरभंगा। शहर के भठियारीसराय में मंगलवार को विज्ञान भारती बिहार प्रांत के तत्वावधान में विकसित भारत और मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। अध्यक्षता करते हुए विज्ञान भारती के बिहार प्रांत के उपाध्यक्ष प्रो. प्रेम मोहन मिश्रा ने कहा कि यह साबित हो चुका है कि मातृभाषा के माध्यम से दी गई शिक्षा छात्रों को अधिक समझ में आती है। सोचने की शक्ति व पढ़ने की रुचि बढ़ती है। अनुसंधान के नये आयाम दिमाग़ में आते हैं। पढ़ाई बोझ नहीं लगती। मातृभाषा में मौलिक चिंतन दिमाग में आते हैं। कहा कि दुनिया में वे राष्ट्र अधिक विकसित हैं, जहां मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान की पढ़ाई होती है। विकसित भारत के लिए मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की पढ़ाई आवश्यक है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
मुख्य वक्ता पर्यावरणविद पूर्व प्रधानाचार्य प्रो. विद्या नाथ झा ने सोनाखरी में खिलने वाले फूल, मिथिला के पर्व जुड़ शीतल, चौठ चंद्र आदि, गाजर घास, सहजन, सिम्मर, डुम्मर, बांस आदि का उदाहरण देते हुए मिथिला की संस्कृति में छिपे वैज्ञानिक ज्ञान पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने पीपल के पेड़, तुलसी, कतरा घास के वैज्ञानिक महत्व को भी बताया। राजीव ठाकुर ने मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा से होने वाले लाभ की चर्चा की। ई. देव सिंह ने कहा कि मैथिली साहित्य-विज्ञान के ज्ञान से भरा है। मैथिली के शब्द भी विज्ञान में मिल जाते हैं।
आरके राही ने कहा कि नई शिक्षा नीति की तहत मातृभाषा में शिक्षा देने को प्राथमिकता दी गयी है जो बेहतर प्रयास है। विज्ञान भारती के प्रांत महासिचव प्रो. राम कुमार के संरक्षण में आयोजित कार्यक्रम में राजीव ठाकुर सहित कई शिक्षाविद, शोधार्थी व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
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