बिहार में एक और पार्टी, शिवदीप लांडे ‘सिंघम’ ने बनाई हिंद सेना, IPS की नौकरी छोड़ दी थी
- तेजतर्रार और चर्चित आईपीएस अफसर रहे शिवदीप लांडे भी बिहार की राजनीति में खुलकर कूद पड़े हैं। शिवदीप लांडे ने मंगलवार को पटना में नई पार्टी हिंद सेना बनाने की घोषणा की जो बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेगी।

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से वीआरएस ले चुके सिंघम के नाम से चर्चित शिवदीप लांडे ने बिहार में हिंद सेना नाम से नई पार्टी बना ली है जो इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा कि बिहार की 243 सीट पर कैंडिडेट और चेहरा कोई भी हो, हर सीट पर चुनाव शिवदीप वामनराव लांडे ही लड़ेगा। उन्होंने कहा कि पार्टी का कैंडिडेट उसको ही बनाया जाएगा, जो उनकी विचारधारा का पालन करेगा। शिवदीप लांडे मूल रूप से महाराष्ट्र राज्य के रहने वाले हैं, लेकिन बिहार काडर के आईपीएस अफसर थे और वीआरएस लेने के बाद ऐलान किया था कि वो बिहार को छोड़कर नहीं जा रहे हैं। पिछले साल चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी जन सुराज पार्टी नाम से एक नई पार्टी बनाई थी।
शिवदीप लांडे ने पटना में संवाददाता में बिहार और राजनीति को लेकर लांडे अपने विचार रख रहे हैं। उन्होंने कहा कि आईपीएस की नौकरी छोड़ने के बाद उनको राज्यसभा भेजने से लेकर सीएम कैंडिडेट बनाने तक के ऑफर आए लेकिन उन्होंने उन सबको ठुकरा दिया। लांडे ने कहा कि वो युवाओं की दशा और दिशा बदलने के लिए हिंद सेना नाम से नई पार्टी बना रहे हैं। पार्टी का नाम रखने की कहानी सुनाते हुए उन्होंने पुलिस की नौकरी की याद दिलाई, जिसमें सारे लोग जय हिंद कहते हैं। उन्होंने जातीय राजनीति पर भी खूब कटाक्ष किया।
शिवदीप लांडे ने सस्पेंस बढ़ाया, बोले- ना राजनीति में जा रहा, ना किसी पार्टी से बात चल रही
अपनी पार्टी हिंद सेना की विचारधारा को सामने रखते हुए शिवदीप लांडे ने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता संवेदनशील होंगे और न्याय उनका सिद्धांत है। लांडे ने बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति को जात-जात-जात बताते हुए कहा कि यहां सामाजिक न्याय अगड़ा-पिछड़ा है। अगड़ा में भी भूमिहार का नेता, राजपूत का नेता, वैश्य का नेता। पिछड़ा में यादवों का नेता। अति पिछड़ा में कुर्मी का नेता, कुशवाहा का नेता। दलित में भी पासवान का नेता। महादलित में भी मुसहर का नेता। आईपीएस की नौकरी के दौरान बिहार के जिलों में सेवा का हवाला देते हुए लांडे ने कहा कि रोजगार और पलायन तो बड़े मुद्दे हैं लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी कई गांवों में पीने के पानी तक की सुविधा नहीं है।