सिंधु जल संधि को पुनः मूल्यांकित करने की आवश्यकता: तेज प्रताप
दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय में 'भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति: वर्तमान चुनौतियां और भविष्य की दिशा' पर पैनल परिचर्चा हुई। प्रो. तेज प्रताप सिंह ने सिंधु जल संधि के महत्व पर जोर दिया, जबकि...
दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के राजनीति अध्ययन विभाग द्वारा “भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति: वर्तमान चुनौतियां और भविष्य की दिशा” पर एक पैनल परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा की शुरुआत सोशल साइंसेज के डीन एवं प्रॉक्टर प्रो प्रणव कुमार के परिचयात्मक टिप्पणी से हुई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रो. तेज प्रताप सिंह ने भारत-पाकिस्तान संबंधों के संदर्भ में सिंधु जल संधि के मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुनः मूल्यांकित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि “सिंधु जल संधि पर भारत द्वारा पुनर्विचार एक दीर्घकालिक रणनीतिक कदम होगा, जो न केवल पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से प्रभावित करेगा, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में भी एक बड़ा बदलाव लाएगा।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के डॉ. रणविजय ने कश्मीर समस्या को केवल भू-राजनीतिक मसला मानने की बजाए उसकी पहचान, आत्म-सम्मान और ऐतिहासिक संदर्भों में समझने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “भारत को कश्मीर जैसे जटिल क्षेत्रों में केवल सैन्य समाधान नहीं, बल्कि पहचान, न्याय और ऐतिहासिक अन्याय की समझ के साथ दीर्घकालिक राजनीतिक समाधान तलाशने होंगे।” पैनल में इस बात पर भी सहमति बनी कि आतंकवाद भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए एक सतत खतरा है, और इसके खिलाफ केवल सैन्य प्रतिक्रिया पर्याप्त नहीं है। इस कार्यक्रम में प्रो. प्रवीण कुमार, डॉ. अभय कुमार, डॉ. सुमित पाठक, डॉ. पवन कुमार, डॉ. रिकील चिरमांग, डॉ. रजनीकांत ओझा, डॉ. आदित्य मोहंती ने भाग लिया।
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