पचरासी में सप्ताह के दो दिन बहती है दुध की नदियां
चौसा के पचरासी में बाबा विशु राउत की समाधी पर सोमवार और शुक्रवार को दूध की नदियां बहती हैं। पशुपालक अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दूधाभिषेक करते हैं। बाबा विशु राउत को पशुपालकों का देवता माना जाता है,...

चौसा, निज संवाददाता अंग भारत व कोशी के मुहाने पर अवस्थित लोक देवता बाबा विशु राउत पचरासी स्थान में सप्ताह के दो दिन सोमवार और शुक्रवार को दुध की नदियां बहती है। चौसा प्रखंड क्षेत्र के लौआलगान के पचरासी में स्थापित बाबा विशु राउत की समाधी स्थल पर मांगे पूरी होने पर पशुपालक सप्ताह में दो दिन सोमवार और शुक्रवार को दूधाभिषेक करते है। पशुपालको के देवता कहे जाने वाली बाबा विशु राउत की सबसे प्रिय चढ़ौता दूध और गांजा है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि बाबा की समाधि पर पवित्र बर्तन में नियम निष्ठा के साथ दूर से भी लाया गया दूध फटता नही है। इतना ही नही चढ़ाये गये दूध पर एक भी मक्खी नही बैठती है। यहां आने वाले श्रद्धालुओ का मनोकामना पूर्ण होने पर दूध, गांजा, झांप, लाठी, खराऊॅ, दूध से बनी खाद्य सामग्री और दही चुडा चीनी का प्रसाद आस्था व श्रृद्धा के साथ वितरण करते है। उनके दरवार से आज तक कोई भी फरियादी वापस नही गया है। लोगो का आस्था है कि बाबा विशु राउत की कृपा से पशु संतानवत होती है और अधिक दूध देती है। यही कारण है कि 90 फीसदी भक्तजन गाय व भैंस के बच्चा जन्म के 22 दिनो के बाद दूधाभिषेक करने यहां आते है। जो मानव बाबा विशु राउत की पूजा-अर्चना करते या उनकी भाषा को श्रवन करता है वे गौ-लोकधाम को प्राप्त करते है। मान्यता है कि बाबा विशु राउत एक (चरवाहा) पशुपालक थे। उनका प्रिय भोजन दूध व सत्तू हुआ करता था। इसलिए आंचलिक जन जीवन में बाबा विशु राउत को सत्तू, दूध और शक्कर चढ़ाने की परंपरा आज भी अक्षुण्ण रूप से चली आ रही है। यू तो श्रद्धालु प्रत्येक दिन पूजा-अर्चना करने यहां आते है लेकिन सोमवार और शुक्रवार को बाबा वैरागन रहने के कारण दूधाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओ की अधिक भीड़ होती है।
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