14वीं सदी से वैवाहिक पंजी की व्यवस्था
प्राचीन मिथिला राज्य में राजा हरिसिंह देव ने विवाह संबंध के लिए 14 गांवों को चुना। समय के साथ, विवाह सभा की संख्या कम हो गई, और वर्तमान में केवल सौराठ में ही यह परंपरा जारी है। सौराठ और अन्य गांवों...
रहिका, निज संवाददाता। प्राचीन मिथिला राज्य काल में सात सौ साल पूर्व चौदहवीं सदी में राजा हरिसिंह देव ने 14 गांवों को वर एवं कन्या के विवाह संबंध के लिए स्थान का चयन किया था। जिसमें सौराठ, खानागड़ी, परतापुर, शिवहर, ससौला, बलुआ, फतेपुर,गोविंदपुर, सुखासन, अखड़ी, हेमनगर, समसौल, बरुआली एवं साझोल में सभा लगता था। इन गांवों में मैथिल ब्राह्मणों की सभा तथा कायस्थ समाज का भी सभा अन्य गांवों में लगता था। कालान्तर में धीरे-धीरे वैवाहिक सभा स्थल की संख्या कम हो गई। पांच दशक पूर्व सीतामढ़ी जिले के ससोला में सभा लगता था। वर्तमान में मिथिला क्षेत्र में केवल सौराठ में ही सभावास होता है तथा इस क्षेत्र में पंजी सिद्धांत व्यवस्था कायम है।
पंजीकार प्रमोद मिश्र ने बताया कि करीब एक दर्जन से अधिक पंजीकार विभिन्न जगहों पर वैवाहिक पंजी सालभर बनाते हैं। उन्होंने बताया कि सौराठ एवं पोखरौनी में विनोद नारायण झा, कन्हैया मिश्र, विश्व मोहन मिश्र, ककरौल गांव में बटुक झा, जरैल में रमण झा, बेहटा में गोविंद मिश्र, शिवनगर में कृष्णानंद झा ,ननौर में प्रो.दयानंद मिश्र, दरभंगा जिला के चकौती गांव में भवेश झा, सीतामढ़ी जिले में ढेंग स्टेशन के समीप, सझुआर गांव में तथा पड़ोसी देश नेपाल के बनौली गांव में सालों भर वैवाहिक पंजी सिद्धांत पंजीकार तार के सूखे पत्ते पर लिखते हैं। वर एवं कन्या पक्ष के लोग घर कथा व एरेंज मैरिज की बातचीत कर विवाह तय कर लेते हैं। विवाह परिणय कार्यक्रम की तिथि निर्धारित होने से पूर्व वर एवं कन्या के वैवाहिक पंजी में नाम दर्ज कर वंशावली बन जाता है। जितने भी पंजीकार साल भर में वैवाहिक पंजी सिद्धांत लिखते हैं ।
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