शंभुआड़ में तीन जलमीनार, फिर भी घरों तक नहीं पहुंच रहा पीने का पानी
भुआड़ कैटोला में नल-जल योजना के तहत तीन जलमीनार बनाये गए हैं, लेकिन आज तक लोगों को एक बूंद पानी नहीं मिला। स्थानीय लोग तालाब, कूप और दूसरों के घरों पर निर्भर हैं। विभागीय लापरवाही और योजनाओं की कमी के...

भुआड़ कैटोला में नल-जल योजना के तहत तीन जलमीनार बनायी गयी है लेकिन आज तक लोगों को एक बूंद पानी नसीब नहीं हो सका। अब इसकी उपयोगिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आज भी यहां के अधिकतर लोग पानी के लिए तालाब, कूप और दूसरे घरों पर निर्भर हैं। रामप्रवेश, गुलाब ठाकुर, महादेव ठाकुर बताते हैं कि यहां कोई व्यवस्थित पाइपलाइन बिछाई ही नहीं गई, जिससे जलमीनार से जलापूर्ति असंभव हो गई। पहले पंचायत क्षेत्र में होने के कारण जो भी योजनाएं बनीं, उनमें से राशि निकासी के बावजूद धरातल पर काम नहीं हुआ। बाद में जब यह क्षेत्र नगर निगम में शामिल हुआ, तब से अब तक न तो हस्तांतरित योजनाओं की फाइलें मिलीं और न ही कोई नई पहल शुरू हो सकी।
नगर निगम द्वारा न तो कोई मरम्मत कार्य किया गया, न ही कोई वैकल्पिक जलस्रोत स्थापित किया गया। चापाकल मरम्मत पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया, क्योंकि निगम और पीएचडी विभाग दोनों जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल रहे हैं। विभागीय प्रावधानों के कारण इस क्षेत्र में नया सबमर्सेबल भी नहीं लगाया जा सकता। पुराने चापाकल खराब हैं और तालाब का पानी दूषित हो चुका है। इसके बावजूद लोग उसी गंदे पानी से नहाना, कपड़ा धोना और यहां तक कि पीना के लिए भी मजबूर हैं। गरीबों के लिए आफत: इस जल संकट से खासकर गरीब और वंचित तबका बुरी तरह प्रभावित है। रोजाना पानी की तलाश में लोग समय और पैसा दोनों गंवा रहे हैं। महिलाएं दूर-दूर से पानी ढोती हैं और कई बच्चों की पढ़ाई भी इससे प्रभावित हो रही है। गर्मियों में यह स्थिति और भी भयावह हो जाती है। सवाल यह है कि जब सरकार की योजना और फंड दोनों उपलब्ध हैं, तो फिर इस हालात के लिए जिम्मेदार कौन है? स्थानीय लोगों का कहना है कि योजना के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति हुई है। अधूरी योजनाएं और टाल-मटोल का रवैया: जल संकट के मूल में विभागीय ढिलाई और योजनागत विसंगति है। जिन दो सड़कों की योजना वर्षों पहले टेंडर के जरिये पारित हुई, वे आजतक शुरू ही नहीं हो सकीं। इसी तरह जलमीनार निर्माण के बाद पाइपलाइन का काम अधूरा छोड़ दिया गया। पुराने चापाकलों की मरम्मत की जिम्मेदारी किसी को नहीं दी गयी। पीएचईडी की मानें तो नगर निगम क्षेत्र में चापाकल लगाने या लगाये गये खराब चापाकल की मरम्मत का कोई प्रावधान नहीं है। अधिकारियों ने बताया कि शहरी क्षेत्र में मरम्मत का कोई निर्देश उन्हें नहीं मिला है। ऐसी स्थिति में योजनाएं सिर्फ फाइलों तक सीमित रह जाती हैं और जमीनी हकीकत बद से बदतर हो रही है। यह सब तब हो रहा है जब जिला प्रशासन की ओर से आयोजित होने वाली सभी विभागों की समन्वय समिति की बैठक में डीएम सभी अधिकारियों को हर इलाके में पानी की व्यवस्था दुरुस्त करने की हिदायत देते हैं। साथ ही नल-जल योजना को हर हाल में बहाल करने की बात कहते है। ऐसे में इस इलाके के लोग पेयजल के लिए किससे गुहार लगाए। नियम के आलाधिकारी मौन हैं। बाकी विभाग अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। इलाकें के लोगों की मांग है कि पेयजल उन्हें जल्द से जल्द उपलब्ध कराया जाएं।
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