ठनका के खतरे से बचाएगा 'नीतीश पेंडेंट', आईआईटी पटना में तैयार इस यंत्र की खासियत जानें
- आईआईटी पटना ने नीतीश पेंडेंट तैयार कर लिया है। हालांकि आकार और वजन में ज्यादा होने के चलते इसमें सुधार करने को कहा गया है। नीतीश पेंडेंट को मजदूर या किसान गले में पहन सकते हैं। मौसम खराब रहने के दौरान यह यंत्र धारक को खतरे की चेतावनी देगा।

बिहार में वज्रपात से मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। अप्रैल के दो दिनों में ही वज्रपात से मौतों का आंकड़ा 44 पहुंच गया है। इसकी भयावहता कम करने के कोई उपाय कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। इंद्रवज्र, दामिनी जैसे एप किसानों-मजदूरों से दूर हैं तो हूटर और सायरन की आवाज दूर तक नहीं जाती है। ऐसे में मौसम खराब रहने के दौरान खेतों में काम कर रहे किसान-मजदूर और रास्ते में सफर कर रहे लोग इसके शिकार हो रहे हैं। अब प्राधिकरण की ओर से आईआईटी पटना की मदद से विकसित किया जा रहा नीतीश पेंडेंट से आस बढ़ी है।
आईआईटी पटना ने नीतीश पेंडेंट तैयार कर लिया है। हालांकि आकार और वजन में ज्यादा होने के चलते इसमें सुधार करने को कहा गया है। नीतीश पेंडेंट को मजदूर या किसान गले में पहन सकते हैं। मौसम खराब रहने के दौरान यह यंत्र धारक को खतरे की चेतावनी देगा। सिग्नल मिलने पर किसान-मजदूर सुरक्षित स्थानों पर जाकर अपने जान की रक्षा कर सकते हैं।
बिहार राज्य आपदा प्राधिकरण आईआईटी पटना के अलावा टीसीएस से भी मिलकर इसका समाधान निकालने में जुटा है। बिहार ने वर्ष 2009 में ही वज्रपात को प्राकृतिक आपदा घोषित किया था। वज्रपात से मौतों का ग्राफ थामने के प्रयास हो रहे हैं। पिछले नौ वर्षों में राज्य में 2415 लोग इसके शिकार हो चुके हैं। वज्रपात की सूचना देने के लिए विकसित किया गया एप इंद्रवज्र और दामिनी को एंड्रायड मोबाइल में डाउनलोड करना पड़ता है। खेतों में काम करने वाले मजदूर-किसान साथ में मोबाइल नहीं रखते हैं। इस कारण एप पर सूचना देने का भी फायदा इन तबकों को नहीं मिल पाता है।
वज्रपात रोकने को तीन जिलों में लगाए गए थे हूटर
दक्षिण बिहार के जिलों में वज्रपात की घटनाएं ज्यादा होती हैं। इस कारण प्राधिकरण ने प्रयोग के तौर पर तीन जिलों गया, औरंगाबाद और पटना में हूटर लगाने का निर्णय लिया। यह किसी ऊंचे स्थान पर लगाया जाना था। इसका मकसद यह था कि वज्रपात के अलर्ट के बाद हूटर बजने पर किसान-मजदूर सुरक्षित स्थान पर चले जाएंगे। हालांकि इसकी आवाज भी दूर तक नहीं जाने के चलते यह कारगर साबित नहीं हुआ।