बोले पटना : अपार्टमेंट की सुरक्षा में सेंध लगा रहा चोरों का गिरोह
पटना में अपार्टमेंट में रहने का चलन बढ़ रहा है, लेकिन चोरी की घटनाओं ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। गोला रोड पर सुरक्षा व्यवस्था कमजोर है, जिससे लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
महानगरों की तर्ज पर पटना में भी अपार्टमेंट में रहने का चलन बढ़ा है। जमीन की बढ़ती कीमत और पटना का योजनाबद्ध क्षेत्र विस्तार न होने की वजह से राजधानी और इसके आसपास के छोटे कस्बों तक में बड़ी संख्या में अपार्टमेंट का निर्माण हुआ है। सुरक्षा और सुविधा के ख्याल से लोग फ्लैट में रहना पसंद करते हैं। लेकिन बीते कुछ महीनों में अपार्टमेंट में चोरी की घटनाओं ने इनकी सुरक्षा व्यवस्था और पुलिस की गश्ती पर सवाल खड़े किये हैं। चोरी की कई घटनाएं तो दिन में भी घटित हुईं। ऐसी घटनाओं से अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों की चिंता बढ़ी है।
उनका कहना है कि पुलिस की गश्ती बढ़ायी जानी चाहिए। साथ ही सोसाइटी को भी सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करनी चाहिए। एक अदद सुरक्षित आशियाना की तलाश हर व्यक्ति को होती है। यही वजह है कि लोग फ्लैट या मकान की तलाश करते समय सुविधा के साथ सुरक्षा को भी देखते हैं। यदि घर या फ्लैट में रहते हुए हर समय असुरक्षा की भावना मन में हो तो जिंदगी दुश्वार लगती है। ऐसी ही स्थिति पटना के दानापुर नगर परिषद क्षेत्र के गोला रोड की है। पिछले एक से डेढ़ दशक में यहां बड़ी संख्या में अपार्टमेंट का निर्माण हुआ है। शहर की भीड़-भाड़ और शोरगुल से दूर, ऊंची-ऊंची इमारतों में बने आरामदायक अपार्टमेंट के फ्लैट्स को लोगों ने सुरक्षित और शांत माना थै। लेकिन, इन अपार्टमेंट्स में रहने वाले लोग अब चोरों और अपराधियों के आतंक से त्रस्त हैं। गोला रोड के सुनसान रास्तों पर झपटमारी आम बात हो चुकी है। यहां की कई महिलाएं बताती हैं कि अब वे आभूषण पहनकर बाहर निकलने से डरती हैं। फ्लैट को बंद कर जाना भी मुश्किल बीते आठ वर्षों से गोला रोड के सोनू मार्केट के करीब एक अपार्टमेंट में रहने वाले बीरेन्द्र कुमार तिवारी बेहद मायूसी के साथ यहां के हालात बयान करते हैं। कहते हैं कि अपार्टमेंट में ये सोचकर रहने आए थे कि यहां सुरक्षित रहेंगे, लेकिन नतीजा इसके उलट हो गया। यहां किसी भी अपार्टमेंट में कभी भी चोरी की घटना हो जाती है। हालात ये है कि कहीं आने-जाने में सोचना पड़ता है। फ्लैट को किसी भी कीमत पर खाली नहीं छोड़ा जा सकता है। सबसे अफसोस और चिंता की बात ये है कि पुलिस इन घटनाओं पर संज्ञान ही नहीं लेती है। सूचना देने के बाद भी पुलिसकर्मी यहां नहीं आते हैं। चोरी की वारदातों से चिंता बढ़ी बीते दो दशक से अधिक समय से यहां रहने वाले सीपी सिंह बताते हैं कि गोला रोड इलाके में घर और अपार्टमेंट में रहने वाले लोग सुरक्षित नहीं हैं। पता नहीं कब कहां चोरी हो जाए। घंटे दो घंटे के लिए भी यहां घरों को खाली छोड़ना खतरे से खाली नहीं रहता है। यदि घर में कोई नहीं है तो सुबह की सैर पर जाने में भी डर लगता है। इस समय भी चोरी की कई घटनाएं हो चुकी हैं। अभी पत्नी और बेटे के साथ रहते हैं। आगे बेटे की नौकरी लग जाएगी तो वह भी चला जाएगा। ऐसे में चिंता यही है कि पति और पत्नी में से किसी एक को हर समय घर में रहना पड़ेगा। दोनों साथ में कहीं आना-जाना नहीं कर सकेंगे। विमल किशोर सिंह कहते हैं कि यहां रोजाना चोरी की वारदात होती है। इलाके में पुलिस की गश्ती शून्य है। नशेड़ियों का भी जमावड़ा रहता है। स्थानीय थाने में शिकायत करने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं होती है। बुजुर्ग महिला मंजू शर्मा कहती हैं कि अपार्टमेंट को लोग सुरक्षित मानते हैं। हमने भी यही सोचकर फ्लैट खरीदा लेकिन परेशानी बढ़ गई। यदि अपार्टमेंट भी सुरक्षित नहीं रहेंगे तो लोग कहां जाएंगे। आभूषण पहनकर बाहर निकलने में लगता है डर गोला रोड में चोरों के साथ-साथ इलाके में झपटमारी की घटनाएं भी बढ़ी हैं। 2015 से एक बड़े अपार्टमेंट में रहने वाली महिला प्रीति तिवारी कहती हैं कि सुनसान रास्तों पर अकेली महिला के साथ अक्सर झपटमारी की वारदात हो जाती है। हालात ये है कि हमलोगों ने सोने के आभूषण पहनकर यहां निकलना छोड़ दिया है। पुलिस की गश्ती नहीं होने के कारण दिनदहाड़े बेखौफ झपटमार वारदात को अंजाम देकर आराम से निकल जाते हैं। यहां महिलाएं हर समय डरी सहमी रहती हैं। दर्द-ए-दास्तां शिकायत करने पर पुलिस कुत्ते रखने की देती है सलाह साल 2018 से गोला रोड में एक मशहूर अपार्टमेंट में रहने वाले सुरेन्द्र कुमार कहते हैं कि यहां रहने वाले लोगों की सुरक्षा भगवान भरोसे है। पुलिस इलाके में नियमित रूप से गश्त नहीं करती है। चोरी आदि की घटनाओं के बाद शिकायत करने पर कुत्ता रखने की सलाह दी जाती है। पुलिसकर्मी सीधे कहते हैं कि अपार्टमेंट की रखवाली के लिए दो-तीन कुत्ता पाल लीजिए। सुरेन्द्र कहते हैं कि दिनदहाड़े चोरी और झपटमारी की वारदात होती रहती है। खुद उनके अपार्टमेंट की एक बुजुर्ग महिला के गले से झपटमारों ने सोने की चेन उड़ा दी। इनमें अधिकतर नशेड़ी होते हैं। अपार्टमेंट में लगे सीसीटीवी कैमरे इतने सक्षम नहीं हैं कि उनमें साफ तस्वीरे कैद हो सकें। सरकारी स्तर पर यहां उच्च गुणवत्ता वाला सीसीटीवी कैमरा लगाए जाने की जरूरत है। शिकायतें 1. पटना के अपार्टमेंट में चोरी की घटनाएं बढ़ने से लोगों में खौफ 2. अपार्टमेंट के आसपास पुलिस की नियमित गश्ती नहीं होती है 3. अधिकतर अपार्टमेंट में सुरक्षा व्यवस्था ढीली है 4. सड़कों पर अकेली महिलाओं के साथ झपटमारी की घटनाएं बढ़ी हैं 5. अपार्टमेंट में लगे सीसीटीवी कैमरों से पूरी निगरानी नहीं होती है सुझाव 1. अपार्टमेंट में चोरी की घटनाओं को लेकर पुलिस को चौकस होने की जरूरत 2. चोर-झपटमार पर लगाम के लिए नियमित पुलिस गश्ती की हो व्यवस्था 3. सोसाइटी की कमेटी पुलिस के साथ समन्वय कर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करे 4. अपार्टमेंट वाले क्षेत्रों मे सरकारी स्तर पर लगे उच्च गुणवत्ता वाले सीसीटीवी कैमरे 5. सुनसान जगहों पर नशेड़ियों के जमावड़े पर अंकुश लगाए स्थानीय थाना पुलिस पटना की आबादी बढ़ने और जमीन की किल्लत से अपार्टमेंट की मांग बढ़ी पटना देश के उन चुनिंदा प्राचीन शहरों में से एक है, जो नदी किनारे बसा है। हालांकि दूसरे शहरों की तुलना में पटना का विकास थोड़ा धीरे-धीरे और देर से हुआ। अपार्टमेंट का निर्माण और इसमें रहने की संसकृति भी यहां थोड़ा देर से हुई। हालांकि अब पटना शहर क्या, इसके आसपास के छोटे कस्बों- दानापुर, फुलवारीशरीफ, नौबतपुर, बिहटा, परसा, गौरीचक में भी अपार्टमेंट बन रहे हैं या बन चुके हैं। पटना में अपार्टमेंट का तेजी से निर्माण के पीछे मुख्य वजह पटना का क्षेत्र विस्तार न होना भी रहा है। 1990 से बाद जब शहर की आबादी बढ़ने लगी तो जमीन की किल्लत शुरू हुई। ऐसे में कई विल्डरों ने कुछ एकड़ परती जमीन पर बहुमंजिली इमारतों का निर्माण शुरू किया। शुरुआती दौर में लोग अपार्टमेंट में रहने को इच्छुक नहीं हुआ करते थे। लोगों की आदत और इच्छा अपने खुद के घर में रहने की थी। लेकिन, धीरे-धीरे दूसरे शहरों में अपार्टमेंट के बारे में लोगों ने जाना-सुना तो फ्लैट खरीदने लगे। अपार्टमेंट के फ्लैट की रजिस्ट्री भी मुश्किल होती थी, क्योंकि अपार्टमेंट एक्ट अस्तित्व में नहीं था। अपार्टमेंट एक्ट बनने के बाद इसकी रजिस्ट्री होने लगी। इसके पहले कोलकाता जाना पड़ता था। तीन-चार दशक में करोड़ी हुआ फ्लैट साल 2000 से पहले तक पटना के कुछ चुनिंदा इलाकों में ही अपार्टमेंट नजर आया करते थे। ये अपार्टमेंट भी शहर के पुराने इलाकों में बनते थे। तीन-चार मंजिला इन इमारतों में हर मंजिल पर चार-छह फ्लैट होते थे, जिनमें लोगों ने महानगरों की तर्ज पर रहना शुरू किया। बढ़ती आबादी और शहरीकरण के साथ धीरे-धीरे अपार्टमेंट में रहना लोगों की जरूरत के साथ सामाजिक प्रतिष्ठा का भी प्रतीक बनने लगा। इस मान्यता ने अपार्टमेंट कल्चर को एक व्यापक व्यवसाय में बदल दिया। बड़े-बड़े पूंजीपतियों और जमीन मालिकों को इस काम में अप्रत्याशित मुनाफा नजर आया। शहर के बाहर की सस्ती और खाली पड़ी बेकार जमीनों के दिन फिरे। कीचड़ और दलदल वाली जमीनें सोना उगलने लगीं। अपार्टमेंट की कतारे सजीं और सोसायटी के साथ टाउनशिप बसाये जाने लगे। फ्लैटों में रहने की होड़ मची और कीमतें आसमान छूने लगीं। राज्य के किसी भी जिले में रहने वाले हर दौलतमंद की ख्वाहिश पटना में अपार्टमेंट में एक फ्लैट अपने नाम लेने का सिलसिला शुरू हुआ। आज पटना में बोरिंग रोड, आशियाना, पाटलीपुत्रा, गोलारोड आदि इलाकों में फ्लैट की कीमतें करोड़ों में हैं। इसके बावजूद यहां रहने की जगह नहीं मिल रही है। चार दशक पूर्व सात हजार कट्ठा थी जमीन की कीमत गोलारोड के एक अपार्टमेंट में रहने वाले राजेन्द्र कुमार तिवारी याद करते हैं कि इस क्षेत्र में कभी रहने के लिए कोई आना नहीं चाहता था। जमीन की कीमत बेहद कम थी। बताते हैं कि साल 1986 में यहां महज सात हजार रुपए कट्ठे की कीमत पर जमीन उपलब्ध थी लेकिन कोई खरीदने वाला नहीं होता था। आज इस जगह की कीमत क्या है ये किसी से छिपा नहीं है। जमीन तो दूर यहां फ्लैट खरीदना भी आम आदमी के बस की बात नहीं। विकास के साथ बढ़ी अपार्टमेंट की मांग बीते लगभग दो दशक में पटना का तेजी से विकास हुआ तो यहां रहने के लिए लोगों को अधिक जगह की जरूरत महसूस होने लगी। सड़कों, पुलों और बुनियादी ढांचे के विकास के साथ ही अन्य जिलों से राजधानी का संपर्क आसान हो गया। आर्थिक और व्यवसायिक गतिविधि बढ़ने के कारण यहां रोजगार और कारोबार के अवसर बढ़े। लोग रियल एस्टेट में निवेश करने में सक्षम हुए तो अपार्टमेंट कल्चर को बढ़ावा मिला। निवेशकों की समस्याओं और फर्जी कंपनियों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए मई 2016 में रियल एस्टेट विनियमन और विकास (रेरा) अधिनियम लागू किया गया।
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