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ग्रामीण चिकित्सक : प्रशिक्षण तो मिला पर नौकरी और पहचान नहीं

ग्रामीण चिकित्सक दूर-दराज के गांवों में गरीब मरीजों का प्राथमिक इलाज करते हैं, लेकिन उन्हें उचित सम्मान और सरकारी सहायता नहीं मिलती। उनकी मांग है कि सरकार उन्हें स्वास्थ्य मित्र के रूप में नियुक्त करे...

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाSat, 15 Feb 2025 08:57 PM
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ग्रामीण चिकित्सक : प्रशिक्षण तो मिला पर नौकरी और पहचान नहीं

ग्रामीण चिकित्सक उन सुदूर गांवों और इलाकों में गरीब मरीजों का प्राथमिक इलाज करते हैं, जहां तक सरकारी स्वास्थ्य सेवा की पहुंच नहीं है। इसके लिए मरीजों के घर तक पहुंचना होता है। इसीलिए इन्हें ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ भी कहा जाता है। जब कभी किसी के घर में इमरजेंसी हो तो टोले-मोहल्ले के ग्रामीण चिकित्सक ही हैं, जो तुरंत वहां पहुंचते हैं। इस लिहाज से समाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। ग्रामीण चिकित्सक स्थायी रोजगार और अपनी पहचान की आस में हैं। उनकी मांग है कि सरकार उन्हें स्वास्थ्य मित्र के रूप में नियुक्त करे और क्लीनिक खोलने की अनुमति दे। सुदूर गांवों में जब अचानक से किसी की तबीयत खराब हो या किसी के घर में कोई इमरजेंसी जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाये तो टोले-कस्बे के ग्रामीण चिकित्सक की याद आती है। मरीज उनके घर तक पहुंचने की स्थिति में हो तो ठीक वरना वे खुद मरीज के घर तक बैग लेकर पहुंच जाते हैं। राज्य सकार ने हाल के वर्षों में सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की पहुंच गांवों तक बढ़ायी है। लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे गांव हैं, जहां ग्रामीण चिकित्सक ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस लिहाज से वे ग्रामीण चिकित्सा व्यवस्था की रीढ़ हैं। लेकिन विडंबना यह है कि समाज में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल पाता है। ‘झोला छाप डॉक्टर के रूप में संबोधित करना उन्हें खलता है।

ग्रामीण चिकित्सक नवीन कुमार बताते हैं कि, हमलोग दूर दराज में जाकर मरीजों की सेवा और मदद करते हैं। हमारी उपलब्धता 24 घंटे और सातों दिन रहती है। हमारे ज्यादातर मरीज गरीब तबके होते हैं। हम प्राथमिक उपचार कर लोगों की जान बचाते हैं। लेकिन, इसके बदले हमें सरकार की ओर कोई सहायता राशि और संसाधन नहीं मिलता। इस वजह से ग्रामीण चिकित्सकों की स्थिति बदतर है। सरकार को चाहिए कि हमें हमारे अनुभवों को देखते हुए स्वास्थकर्मी के रूप में नियुक्त करे। इससे समाज को भी लाभ होगा। राज्य में बड़ी संख्या में ग्रामीण चिकित्सकों ने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) से जन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम का सर्टिफिकेट भी हासिल कर रखा है। एनआईओएस ने इसके लिए दसवीं तक की योग्यता रखी है। पहले बैच में वर्ष 2015 में ग्रामीण चिकित्सकों ने प्रखंड स्तर पर चयनित 200 स्वास्थ केंद्रों में प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद के बैच में 325 पीएचसी और अन्य अस्पतालों में उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान उन्होंने प्रिवेंसन ऑफ चाइल्ड केयर का प्रशिक्षण अस्पतालों में लिया। ग्रामीण चिकित्सक कह रहे कि उन्हें स्वास्थ्य मित्र के रूप में नियुक्ति का भरोसा दिया गया था। लेकिन, आज तक उनकी नियुक्ति नहीं हो पाई है।

स्वास्थ्य मित्र के रूप में नियुक्ति हो तो सुधरेगा हालात

ग्रामीण चिकित्सक किसी न किसी एमबीबीएस या एमएस डॉक्टर के अधीन काम करने की प्रक्रिया के दौरान प्रशिक्षित होते हैं। उन्हें अपनी सेवा प्रदान करने के लिए कोई पहचान पत्र नहीं मिला है, जिससे उन्हें इलाज करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार लोग इन्हें झोला छाप कह कर भी पुकारते हैं। जिसके कारण इनके मान सम्मान पर गहरी ठेस पहुंचती है। रंजीत कुमार कहते हैं कि एक तो हमे ग्रामीण चिकित्सक स्वास्थ्य मित्र के रूप में नियुक्त नहीं किया जा रहा है और दूसरी तरफ हमें क्लिनिक खोलने की भी अनुमति नहीं है। इस वजह से हमलोगों के समक्ष आर्थिक दिक्कत है। ग्रामीण चिकित्सक एसोसिएशन के अध्यक्ष अंशु तिवारी ने बताया कि बिहार के ग्रामीण चिकित्सक एनआईओएस से प्रमाणित हैं। हमारी ट्रेनिंग के बाद परीक्षा हुई थी जिसमें जो लोग उत्तीर्ण हो गए वह प्राथमिक इलाज करने के लिए योग्य बन गए। पर इस मामले में भी पारदर्शिता का अभाव है। आज ऐसे कई लोग है जिनकों सुई दवाई तक देना नहीं आता है वो ग्रामीण चिकित्सक बन कर कार्य कर रहें हैं। वहीं जो बड़े डॉक्टरों के अंदर रहकर सालों का प्रशिक्षण लिए है, उन्हें कोई नियुक्ति नहीं दी जा रही है।

समाज से सम्मान की अपेक्षा

ग्रामीण चिकित्सकों को अपने पेशे में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अपर्याप्त पैसें और सुरक्षा संसाधनों की कमी तो है हीं, कई बार मरीज की स्थिति बिगड़ने पर लोग इनके साथ हिंसक व्यवहार करते हैं। कई बार तो इनकी जान को भी खतरा हो जाता है। उनका कहना है कि समाज हमें सम्मान दे, क्योंकि हम इलाज मुहैय्या कराकर समाज सेवा करते हैं।

समस्या

1. ग्रामीण चिकित्सक सुदूर गांवों में अपनी सेवा देते हैं, लेकिन इनकी आय अनिश्चित है।

2. सरकार की अनुमति न होने से ग्रामीण चिकित्सक क्लीनिक नहीं खोल सकते हैं। घर-घर जाकर इलाज करना होता है।

3. एनआईओएस के ग्रामीण चिकित्सक कोर्स में एडमिशन लेने के बाद परीक्षा व रिजल्ट में काफी समय लगता है।

4. घर से दूर सुदूर इलाकों में जाकर काम करने पर ग्रामीण चिकित्सकों को बहुत मुश्किलें आती हैं।

सुझाव

1 सरकार स्वास्थ्य विभाग में ग्रामीण चिकित्सकों की नियुक्ति की योजना बनाए। उन्हें स्वास्थ्य मित्र के रूप में नियुक्त करे।

2. ग्रामीण चिकित्सकों को स्थायी क्लिनिक खोलने की अनुमति मिले, ताकि वे एक स्थान पर रहकर मरीजों का इलाज कर सकें।

3. ग्रामीण चिकित्सक कोर्स पूरा करने वालों को परीक्षा के बाद यथाशीघ्र प्रमाणपत्र उपलब्ध कराया जाये।

4. राज्य और केंद्र सरकार इन्हें आर्थिक सहायता और स्वास्थ्य बीमा की सुविधा दे।

दर्द-ए-दास्तां

जहां डॉक्टर नहीं जाते, हम पहुंचते हैं

ग्रामीण चिकित्सक दूर दराज इलाकों में जाकर लोगों का इलाज करते हैं। इसके लिए उन्हें सरकार से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलती है। वे आपातकालीन स्थिति में प्राथमिक उपचार करके लोगों की जान बचाते हैं। ग्रामीण चिकित्सक को गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था का रीढ़ कहा जाता है। हमलोग प्राथमिक उपचार के साथ बुनियादी देखभाल सेवाएं प्रदान करते हैं। सुदूर इलाकों में जहां डॉक्टर उपलब्ध नहीं होते, वहां ग्रामीण चिकित्सक अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। हमारे पास अनुभव होने के बावजूद भी स्वास्थ्य विभागों में सेवा करने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ है। सरकार द्वारा प्रमाणित और प्रशिक्षित होने के बाद भी हमें स्थाई रोजगार नहीं मिल पाया है, जिससे हमें अपना घर परिवार चलाने में मुश्किल होती है।

-मोहम्मद शबाब आलाम, ग्रामीण चिकित्सक

सुदूर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ हैं ग्रामीण चिकित्सक

देश में प्राचीन काल से ही गांवों में रहने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाले चिकित्सकों की एक परंपरा रही है। इन चिकित्सकों को अलग-अलग नामो से जाना जाता था, जैसे कि वैद्य, हकीम और देसी चिकित्सक। ब्रिटिशकाल में पश्चिमी चिकित्सा पद्धति आई तो चिकित्सा की हबाजाप्ता पढ़ाई शुरू हुई। लेकिन,

ग्रामीण चिकित्सकों के संघ का दावा है कि बिहार में लगभग 5 लाख प्रशिक्षित व अप्रशिक्षित ग्रामीण चिकित्सक हैं। करीब 52 हजार प्रशिक्षित ग्रामीण चिकित्सक गांव और पिछड़े इलाको में काम कर रहे हैं। इन लोगों ने बड़े अस्पतालों व अनुभवी डॅाक्टरो से प्रशिक्षण लिया है। जिन ग्रामीण चिकित्सकों ने 2014 में एनआईओएस की ओर से आयोजित प्रशिक्षण में भाग लिया था, वे भी स्वास्थ्य मित्र के रूप में नियुक्ति का इंतजार कर रहे हैं।

ग्रामीण चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी निजी तौर पर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जहां सरकारी स्वास्थ्य सेवा की पहुंच नहीं होती वहां ग्रामीण चिकित्सक ही इलाज करने जाते हैं। ग्रामीण चिकित्सक राजेंद्र कुमार का कहना है कि हमलोग लंबे समय से सरकार से मान्यता और नियमित रोजगार की मांग कर रहे है। इसके लिए कई बार पटना में धरना-प्रदर्शन भी आयोजित किया गया। वे याद दिलाते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान ग्रामीण चिकित्सकों ने किस तरह सुदू्रवर्ती क्षेत्रों में अपनी जान जोखिम में डालकर इलाज किया था। लेकिन, इस सेवा की भी सुधि नहीं ली गई। ग्रामीण चिकित्सकों की मांगों में संविदा पर अस्पतालों में नियुक्ति, राष्ट्रीय उच्च पथों पर खुलने वाले ट्रामा सेंटर में नियुक्ति, आयुष्मान योजना का लाभ आदि शामिल है।

सीएचओ की नियुक्ति प्रक्रिया का था इंतजार, वह भी अटकी

ग्रामीण चिकित्सकों में से कुछ ने सामुदायिक चिकित्सा अधिकारी (सीएचओ) बनने की योग्यता हासिल कर रखी है। ऐसे लोग नियुक्ति की उम्मीद लगाये हुए थे। सीएचओ के 4500 पदों के लिए नियुक्ति प्रक्रिया भी शुरू हुई थी। इसके लिए एक और दो दिसंबर को परीक्षा का आयोजन होना था। एक दिसंबर को परीक्षा के दौरान पटना के विभिन्न सेंटर पर गड़बड़ी के मामले उजागर हुए। कई सेंटर पर छापे पड़े और 37 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। फिलहाल नियुक्ति में गड़बड़ी की ईओयू जांच कर रही है। इस वजह से नियुक्ति प्रक्रिया रोक दी गई है। गौर हो कि सीएचओ पद के लिए उम्मीदवारों को बीएससी (नर्सिंग) की डिग्री होनी चाहिए। इसके साथ ही, भारतीय नर्सिंग परिषद या राज्य नर्सिंग परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त किसी संस्थान से सामुदायिक स्वास्थ्य में प्रमाण पत्र का 6 महीने का एकीकृत पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा करना आवश्यक है।

कोरोना महामारी में जान पर खेल कई लोगों की जान बचायी

कोरोना महामारी के दौर में ग्रामीण चिकित्सकों ने पटना के ग्रामीण इलाकों में कई मरीजों की जान बचायी थी। ऐसे दौर में जब लोग एक-दूसरे को छूने से भी डरते थे, ग्रामीण चिकित्सक ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर, ब्लड प्रेशर मशीन जैसे उपकरणों के साथ मरीजों के घर पहुंचते थे। कोरोना काल की दूसरी लहर में ग्रामीण चिकित्सक एसोसिएशन ने 15 अप्रैल, 2021 को राज्य सरकार को प्रस्ताव भी दिया था कि प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा ली जाये।

इस पत्र में सुझाव दिया गया था कि इन्हें सहायक के तौर पर एंबुलेंस सेवाओं और कोरोना वैक्सीनेशन में जागरूकता फैलाने के काम में लगाया जा सकता है। एसोसिएशन के अध्यक्ष अंशु तिवारी का कहना है कि हमलोग वैसी जगहों पर भी जाकर लोगों की सेवा करते हैं, जहां कोई जाना नहीं चाहता है। चिकित्सकों को अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर असिस्टेंट के तौर पर तैनात किया जा सकता है।

रिपोर्ट-अंजली आनंद

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