बोले सीवान : तालाबों को अतिक्रमणमुक्त करने से मछली पालन में होगी सहूलियत
गांव और शहरों में तालाबों और पोखरों की स्थिति गंभीर है। सरकारी उपेक्षा और अतिक्रमण के कारण अधिकांश तालाब सूख गए हैं। मछली पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चल रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर...
किसी ने कहा है कि गांव व शहर की सांस्कृतिक विरासत की कहानी वहां के तालाब व पोखर बयां करते हैं। तालाब व पोखर वहां की समृद्धि के द्योतक होते थे। लेकिन सामाजिक व प्रशासनिक उपेक्षा के कारण आज गांव से लेकर शहर तक पोखर व तालाब इस तरह से गायब हो रहे हैं कि वहां इसके निशान भी नहीं मिल रहे हैं। सरकारी उपेक्षा इस कदर है कि तालाब व पोखर के आंकड़े भी सही नहीं है। जिले में गैर सरकारी आंकड़ों व प्रत्येक गांव में एक -दो तालाब होने की लोगों की बातें मानें तो जिले में करीब तीन से साढ़े तीन हजार तक तालाब व पोखर होने चाहिए।
लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ और ही तस्वीर पेश कर रहे हैं। मत्स्य विभाग के आंकड़ों को देखें तो जिले में मात्र 983 तालाब ही हैं। जिसे हम राजस्व तालाब भी कह सकते हैं। लेकिन जिन तालाबों में मछली पालन नहीं होता है। इसका आंकड़ा जिले में मत्स्य विभाग के पास नहीं है। वह आंकड़ा प्रखंड में जिले के सीओ के पास हो सकता है। जिले में सरकारी व निजी तालाब व पोखर का पूरा आंकड़ा नहीं है। जो प्रशासनिक विफलता का सूचक है। सीवान जिले में तालाबों की स्थिति अच्छी नहीं है। अमूमन सभी गांव के आसपास व गांव के बीच तालाब नुमा गढ्ढे हैं। जिनमें गांव के पानियों का निकास होता रहा है, लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण अमूमन 70% तालाब व गढ्ढे व पोखरा अतिक्रमण के शिकार हो गये है। घरों के नालियों से निकलने वाले गंदे कचरे से यह भरते जा रहे हैं और लोग इस पर निर्माण कार्य कर रहा है। जिससे अब गांव में नालियों के निकास मत्स्य पालन इत्यादि की संभावना पर ग्रहण लगता जा रहा है। मछली पालन व्यवसाय के लिए चंवर क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा रहा है। केंद्र सरकार के चंवर विकास योजना के तहत सीवान जिले के चंवरों का चयन किया गया है। ताकि बेकार पड़ी जमीन में तालाब बनाकर मछली पालन को बढ़ावा दिया जा सके। सीवान जिले में चंवर भूमि व तलाब पोखरा अधिक होने के कारण इस क्षेत्र को मछली पालन के लिए विकसित किया जा रहा है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ही मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, तालाब निर्माण में अनुदान शामिल है। सरकारी योजना के तहत तालाबों में मछली पालन के लिए तालाब निर्माण पर अनुदान दिया जाता है, मगर इसका समुचित लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है। मत्स्य विभाग द्वारा मछली पालन के लिए तलाबो व पोखरा को बंदोबस्त किया जाता है। इससे जुड़े लोगों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान भी की जाती है। जिससे उन्हें बेहतर मछली पालन तकनीक के बारे में जानकारी मिले, लेकिन विभागीय उपेक्षा, उदासीनता से तलाब व पोखरा अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं।
अगर तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कर इसके विकास किया जाय तो मछली पालन व्यवसाय होगा। इससे जुड़े लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे । जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा । कुछ मामलों में पोखरों और तालाबों पर अतिक्रमण व गाद भरने के कारण मछली पालन में परेशानी हो रही है। मत्स्यपालकों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो इसके लिए इसे अतिक्रमण मुक्त करने व मिट्टी काटकर इसकी गहराई बढ़ाने की जरूरत है। कुछ मछुआरे आर्थिक रूप से कमजोर हैं और उन्हें रोजगार और लाभ के अवसरों की आवश्यकता है। अधिकांश तलाब व पोखरा है सूखा जिले के 983 सरकारी तालाबों में अधिकांश तालाब व पोखरा सूख गये हैं। इन तालाबों में पानी नहीं होने के कारण मछली पालन व अन्य कार्य के में उपयोग नहीं हो रहा है। पिछले दो-तीन साल से वर्षा कम होने से इन तालाबों में पानी कम होते-होते सूख गया है। निजी तालाब देखरेख के अभाव में बर्बाद हो रहे हैं। जिसे देखने के लिए शासन में बैठे लोगों के पास समय नहीं है। जिसके कारण अब धीरे-धीरे तालाब व पोखर अपनी पहचान खो रहे हैं। तालाबों के जीर्णोद्धार की योजना खटाई में नये तालाब को खोदने व पुराने तालाबों के जीर्णोद्धार की योजना जिले में जमीनी स्तर पर नहीं हो पा रही है। इसकी फाइल विभागों में इस टेबल से उस टेबल घूम रही है।
मत्स्य विभाग के सूत्रों की मानें तो विभाग द्वारा तालाब व पोखर के जीर्णोद्धार के लिए प्राक्कलन तैयार किया जाता है। जिसे तालाब बंदोबस्ती कराने वालों को राशि दी जाती है, ताकि राशि बंदोबस्ती कराने वाली समिति को देना होता है। लेकिन यह योजना जमीनी स्तर पर अभी नहीं पहुंच रही है। दुसरी ओर मनरेगा योजना से निजी तालाब और पोखरे की खुदाई व जीर्णोधार की योजना चलाई जाती है लेकिन इस योजना के तहत भी पोखरे व र्तलाबों का समुचित विकास नहीं होता । लोग पोखर व तालाब की खुदाई को कमाई का जरिया मानने लगे हैं। सरकारी राशि का बंदरबाट इस योजना के तहत हो रहा है, लेकिन धरातल पर यह योजना कारगर साबित नहीं हो रही। सामाजिक स्तर पर भी हो रही उपेक्षा तालाब व पोखर की यह स्थिति सामाजिक स्तर पर उपेक्षा होने के कारण अधिक हो गयी है। पहले लोग छठ पर्व व यज्ञ हवन, दुर्गा पूजा व गंगा दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा आदि धार्मिक आयोजन में तालाब व पोखर का उपयोग करते थे। छठ तालाब के किनारे करने के कारण गांव के लोग इसके साफ -सफाई व जीर्णद्धार पर ध्यान देते थे। लेकिन अब तो घर में किसी बर्तन में पानी रख लोग छठ कर ले रहे है। किसी भी धार्मिक आयोजन में पोखर का जल उपयोग करते थे।
शादी-ब्याह में तालाब की पूजा करते थे। पूजा करने के पीछे इसके संरक्षण की अवधारना थी जो अब खत्म हो गयी है। जिसके कारण धीरे-धीरे तालाब हमारे जीवन से खत्म हो रहे है। तालाबों के सही रख-रखाव की जरूरत बारिश अच्छी होने के बावजूद साफ - सफाई नहीं होने से तालाब सूख रहे हैं। सरकारी पोखरों पर अतिक्रमण से भी तालाबों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। निजी तालाबों की भी स्थिति नाजुक ही होती जा रही है। सरकार व जिला प्रशासन समेत पंचायती राज व्यवस्था के तहत निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया है। पइन व आहर पोखर निर्माण के साथ-साथ, यदि पुराने तालाबों की उड़ाही कर दी जाती तो धार्मिक विरासत की रक्षा स्वयं होने लगेगी। इसके लिए सामूहिक रूप से जनसहयोग की जरूरत है। बावजूद, तालाब अतिक्रमित हो रहे हैं। इससे शहर ,गांव व पंचायत का जलस्तर नींचे गिरता जा रहा है। जाड़ा में पानी से भरे रहने वाले तालाब जनवरी में ही सूखे-सूखे से दिखने लगे है। इधर तालाबों के अतिक्रमण को रोकने का भी स्थानीय स्तर से कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। नतीजतन धार्मिक विरासत की रक्षा नहीं हो पा रही है।
सुझाव
1. प्रशासनिक स्तर पर पोखरा व तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कर रखरखाव होने चाहिए। 2. पोखर व तालाबों से गाद निकाली जाएगी तभी तालाब व पोखर में पानी का ठहराव हो पाएगा। 3. तालाब व पोखर में पानी का ठहराव सुनिश्चित हो जाने से मवेशियों को परेशानी नहीं होगी। 4. तालाब व गढ्ढे के अतिक्रमण मुक्त कर गांव में पानी का निकास सुनिश्चित हो। 5. प्रशासनिक पहल व सामाजिक स्तर पर तालाब व पोखर का संरक्षण होने की जरूरत।
प्रस्तुति- शैलेश कुमार सिंह, रितेश कुमार
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