60 rivers of Bihar dried up in Baishakh itself Turned into sand rivers also encroached upon बैशाख में ही सूख गईं बिहार की 60 नदियां; रेत में हुईं तब्दील, नदियों पर भी हो गया अतिक्रमण, Bihar Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar News60 rivers of Bihar dried up in Baishakh itself Turned into sand rivers also encroached upon

बैशाख में ही सूख गईं बिहार की 60 नदियां; रेत में हुईं तब्दील, नदियों पर भी हो गया अतिक्रमण

बिहार की पांच दर्जन से ज्यादा नदियों पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। बैशाख महीने में ही नदियां रेत में तब्दील हो गई है। और कई नदियों पर अतिक्रमण हो गया है। लेकिन चुनावी मौसम में ये मुद्दा गायब है।

Sandeep हिन्दुस्तान टीम, पटनाFri, 3 May 2024 06:39 AM
share Share
Follow Us on
बैशाख में ही सूख गईं बिहार की 60 नदियां; रेत में हुईं तब्दील, नदियों पर भी हो गया अतिक्रमण

इस बार बैशाख में ही बिहार की नदियां सूखने लगी हैं। इनमें पानी की जगह दूर-दूर तक रेत नजर आ रहे हैं। घास झाड़ी उग आये हैं। यह पहली बार है जब अप्रैल में ही नदियों में पानी नहीं है। आलम यह है कि अबतक पांच दर्जन से अधिक नदियां सूख चुकी हैं। पिछले पांच-छह वर्षों से राज्य में गर्मियों के दस्तक देने के साथ ही नदियों के सूखने का सिलसिला आरंभ हो जाता है। इस साल यह समस्या और विकराल बनकर सामने खड़ी है। ये नदियां बिहार की जीवन रेखा हैं। इस कृषि प्रधान राज्य में खेती- किसानी और पशुपालन नदियों और जलस्रोतों पर निर्भर हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहा गंभीर संकट देश के आम चुनाव में इस बार भी मुद्दा नहीं है। किसी भी पक्ष से न तो इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया जा रहा और न इन्हें बचानेकी पहल का कोई ठोस वायदा किया जा रहा है।

यह है कारण जीवन दायिनी नदियां कई कारणों से सूख रही हैं। सबसे बड़ा कारण नदियों की पेट गाद से भर जाना है। इससे नदियों की काया लगातार दुबली होती जा रही है। पानी को अपनी पेट में जमा करने की इनकी क्षमता कमतर होती गई है। साथ ही नदियों के बड़े भूभाग पर अतिक्रमण भी पानी के सूखने का कारण है। कई इलाकों में नदियों व जलस्रोतों का किनारा भरकर लोग घर बना रहे हैं। आबादी बढ़ने के कारण नदियों के किनारे बसे शहरों में खासतौर से यह समस्या भयावह बन गई है। अतिक्रमण से नदियों के पाट सिकुड़ गये हैं। कई जगहों पर प्रवाह बंद हो गया है। नदियों का इस्तेमाल डंपिंग जोन के रूप में भी हो रहा है।

जहां नदियों का पानी कल-कल कर बहता था, वहां कूड़ा निस्तारण क्षेत्र बना दिया गया है। अंधाधुंध बोरिंग का इस्तेमाल भी नदियों के सूखने की वजह है। नदियां भोजन, पानी, बिजली, परिवहन, स्वच्छता, मनोरंजन व अन्य स्रोतों के रूप में हमें उपकृत करती हैं। पर नदियों के सूखने के कारण इन सभी पर संकट उत्पन्न होने लगा है। नदियों के मामले में समृद्ध बिहार में इनका सूखना कई समस्याएं लेकर आया है।

नदियों के सूखने से कई दुष्प्रभाव सामने आए हैं। भू-जल स्तर अप्रत्याशित रूप से नीचे गिर रहा है। कहीं-कहीं तो 50 फीट नीचे चला गया है। इससे पेयजल संकट पैदा हो गया है। कुआं, तालाब, आहर-पईन के सूखने का सिलसिला आरंभ है। नहरों में पानी नहीं है। इन जल स्रोतों में पानी पहुंचने के रास्ते अतिक्रमण कर अवरुद्ध कर दिए गए हैं। इस कारण इनमें पानी का भंडार नहीं हो पा रहा है। सिंचाई के अभाव में खेती किसानी पर बुरा असर पड़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि खेतों की नमी कम हो रही है। माल-मवेशी और पशु-पक्षियों के लिए भी पानी का संकट गहरा गया है। लोगों के स्वास्थ्य तथा उसकी दिनचर्या पर भी नदियों के सूखने का असर गंभीर असर पड़ा है। कई इलाकों में जलस्तर नीचे चले जाने से चापाकल बंद हो जाते हैं। जलापूर्ति की योजना बाधित हो जाती है। गंभीर पेयजल संकट से लोगों को जूझना पड़ता है। कैमूर-गोपालगंज के कई इलाकों में पशुपालकों को मवेशी के साथ दूसरी जगह पलायन करना पड़ रहा है।

जल विशेषज्ञ दिनेश मिश्रा व आर.के. सिन्हा के मुताबिक जलवायु परिवर्तन, अनियमित व कम बारिश, जमीन का रिचार्ज न होना, गाद भरते जाना और नदियों के मूल स्रोत से पानी नहीं मिलने से नदियां संकट में हैं। नदियों के असमय सूखने का बड़ाकारण जंगलों का बेतहाशा कटना भी है। इससे बारिश का पानी सीधे जमीन पर जा रहा, जिससे पानी और गाद दोनों नदियों में पहुंच रही है। गाद के कारण नदियों में पानी का प्रवाह प्रभावित हुआ है। इससे जमीन को रिचार्ज होने का अवसर नहीं मिलता। परिणाम नदियां सूख रही हैं। नदी का पानी शुरू में ही सूखने लगता है। अवैध बालू खनन ने भी नदियों को संकट में डाला है। नदियां नेपाल से आती हैं। नेपाल सरकार से नदियों के जलप्रबंधन पर बातचीत से हल निकाला जा सकता है। इससे दोनों देशों को फायदा होगा। नदियों के उद्गम स्थल पर हाईडैम निर्माण की सहमति बनी थी, लेकिन उसके लिए नेपाल में सर्वे का काम पूरा नहीं हुआ।

भाकपा सांसद का. भोगेन्द्र झा ने अस्सी के दशक में नेपाल में बहुउद्देशीय डैम के निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन किया और दोनों देशों की सरकारों से इस पर बातचीत करने का अनुरोध किया। उन्होंने दोनों देशों की सरकारों को पत्र भी लिखा। दोनों देशों में बातचीत हुई और सहमति भी बनी। सीएम नीतीश कुमार काठमांडू गये तो उन्होंने भी नेपाल के पीएम से हाईडैम निर्माण को लेकर सर्वे शीघ्र पूरा कराने का आग्रह किया, आश्वासन भी मिला, पर उसमें अपेक्षित तेजी नहीं आई। नदियों में गाद से गहराते संकट को लेकर बिहार सरकार ने केन्द्र के समक्ष तथ्यों के साथ पूरी तस्वीर रखी।

गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में तत्कालीन जलसंसाधन मंत्री संजय झा ने इस मुद्दे का शिद्दत से उठाया। नदियों को गादमुक्त करने को लेकर भी कई बार केन्द्र सरकार से मांग की। जलशक्ति मंत्रालय और प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा गया। तय हुआ था कि केन्द्र सरकार गाद प्रबंधन नीति लाएगी। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका। जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत जलस्त्रत्तेतों को अतिक्रमण मुक्त कराने का अभियान भी चल रहा है। लेकिन इसका लाभ तभी मिलेगा जब नदियों के गाद प्रबंधन की कोई ठोस कार्ययोजना बने। बहरहाल, नदियों के सूखने की समस्या कितनी गंभीर होगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। नदियों के जल प्रबंधन पर भारत और नेपाल दोनों देश मिलकर काम करेंगे तो बड़ा नतीजा सामने आएगा। पेयजल सुविधा, पनबिजली उत्पादन और सिंचाई के साधन भी बढ़ेंगे और नदियों के सूखने की समस्या से भी मुक्ति मिलेगी।

कैमूर
कर्मनाशा नदी बभनी से कोन बभनी तक दो किलोमीटर में कर्मनाशा नदी में मिट्टी भर झोपड़ी बना ली है। बभनी, कोन बभनी व रउता के लोग झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं।

गोपालगंज
छाड़ी नदी छाड़ी नदी गोपालगंज व सीवान होते हुए सारण जिले के नया गांव के समीप गंडक में मिलती है। दोनों तरफ से 10 से 20 फीट तक अतिक्रमण से नदी नाला बन चुकी है।

ये नदियां सूख गईं 
नूना, पुनपुन, बनास, अधवारा, खिरोई, झरही, अपर बदुआ, बरंडी, पश्चिम कनकई, चिरायन, पंडई, सिकरहना, फरियानी, परमान, दाहा, गंडकी, मरहा, पंचाने, धोबा, चिरैया, मोहाने, नोनाई, भूतही, लोकाईन, गोईठवा, चंदन, चीरगेरुआ, धर्मावती, हरोहर, मुहानी, सियारी, माही, थोमाने, अवसाने, पैमार, बरनार, अपर किउल, दरधा, कररुआ, सकरी, तिलैया, मोरहर, जमुने, नून, कारी कोसी, बटाने, किउल, बलान, लखनदेई, खलखलिया, काव, कर्मनाशा, कुदरा, सुअवरा, दुर्गावती, कमला धार, तीसभवरा, जीवछ, बाया, नून कठाने, डोर, कुंभरी, सोइबा, सांसी, धनायन, अदरी, केशहर, मदाड़, झिकरिया, सुखनर, स्याही, बलदईया, बैती, चन्द्रभागा, छोटी बागमती, खुरी, फल्गू, वाया, कंचन, ठोरा, छाड़ी, सोन, धनखड़।