Hindustan aajkal column by Shashi Shekhar 15 June 2025 गलवान : पांच बरस बाद, Editorial Hindi News - Hindustan
Hindi Newsओपिनियन ब्लॉगHindustan aajkal column by Shashi Shekhar 15 June 2025

गलवान : पांच बरस बाद

गलवान की इस बरसी और पाकिस्तान से हुए संघर्ष की सीख क्या है? यही कि हमें पाक और चीनी सीमाओं पर एक साथ जंग लड़ने की मुकम्मल तैयारी करनी होगी। युद्ध-नीति का पुराना सिद्धांत है, जंग लड़नी हो, तो शत्रु के मुकाबले हरदम चाक-चौबंद रहना होगा…

Shashi Shekhar लाइव हिन्दुस्तानSat, 14 June 2025 08:48 PM
share Share
Follow Us on
गलवान : पांच बरस बाद

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी को 15-16 जून, 2020 की रात तक कोई नहीं जानता था। उस रात वहां कुछ ऐसा हुआ, जिसने न केवल भारत और चीन के रिश्तों पर व्यापक असर डाला, बल्कि हमें अपनी सामरिक तैयारी व सीमा की सुरक्षा के जटिल मुद्दों पर नए सिरे से विचार करने को भी प्रेरित किया।

आज गलवान हादसे की पांचवीं बरसी पर उन रक्त-रंजित लम्हों को याद करना जरूरी है।

याद करें। भारत और चीन के बीच 2013 से रह-रहकर तनाव की स्थिति बन जाती थी। 2017 में भी चीनी सैनिक विवादित क्षेत्र में घुस आए थे। भारत ने जवाबी कार्रवाई में देर नहीं लगाई थी। इस तनाव को खत्म करने के लिए दोनों पक्ष कई दौर की बातचीत के बाद पुरानी स्थिति बहाल करने पर राजी हो गए थे। इसी बीच गलवान घाटी में चीन ने एक निगरानी चौकी बना ली थी। भारतीय सेना की आपत्ति के बावजूद चीनी सैनिकों ने उसे तय समय-सीमा में खाली नहीं किया था। 16वीं बिहार रेजिमेंट के कर्नल संतोष बाबू की अगुवाई में हमारे सैनिक जब वहां कब्जा हटवाने के लिए पहुंचे, तो बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों ने उन पर हमला बोल दिया।

सन् 1996 और 2005 की संधियों के तहत दोनों पक्षों के सैनिक झड़प की स्थिति में सांघातिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इंसानी जिस्मों की सीधी टक्कर में संख्या बल का महत्व बढ़ जाता है। पहले से तैयार उन आतताइयों के पास लोहे की कीलों से जड़े हुए डंडे, स्टील के रॉड और इस तरह की तमाम सामग्री थी, जो किसी भी शख्स की जान लेने के लिए पर्याप्त हो सकती हैं। हमारे सैनिकों ने जी-जान से मुकाबला किया, लेकिन वे लड़ाई की नीयत से वहां नहीं गए थे। नतीजतन, कर्नल संतोष बाबू सहित 20 जवान इस ‘हैंड टु हैंड फाइट’ में शहीद हो गए।

भारतीय नागरिकों पर यह खबर शोक की भारी शिला की मानिंद टूटी। सवाल उठने लगे, सन् 1962 से 2020 के बीच गुजरे 58 वर्ष क्या तैयारी के लिए पर्याप्त नहीं थे? सब जानते हैं कि चीन ने सोची-समझी साजिश के तहत 1959 में तिब्बत पर कब्जा किया। उसके बाद से बीजिंग वहां की जनसंख्या में गैर-तिब्बती लोगों का दखल बढ़ाता रहा है। 1980 के दशक के बाद उसने निरंतर भारतीय सीमा से सटे इलाकों में सैनिक छावनियां, हवाई पट्टियां और हेलीपैड बनाने शुरू कर दिए थे। ऐसा नहीं है कि भारत सोया पड़ा था। हम भी तैयारी कर रहे थे, परंतु रफ्तार बहुत धीमी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता सम्हालते ही इसको जबरदस्त तवज्जो देनी शुरू की। सीमा तक चौड़ी सड़कें, सीमावर्ती इलाकों में ट्रेन नेटवर्क की स्थापना के अलावा सीमावर्ती चौकियों को मजबूत किया। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल पर भी अतिरिक्त ध्यान देना इसी दौर में शुरू हुआ। यह सच है कि तमाम तैयारियों के बावजूद हमें चीन तक पहुंचने के लिए अभी कई वर्षों की दरकार है। इसके बावजूद बीजिंग के दरबारियों में खलबली मचनी शुरू हो गई थी। गलवान से पहले डोकलाम का विवाद इसलिए जान-बूझकर खड़ा किया गया था। समझौते के बाद गलवान जैसी हरकत शायद हमें रोकने की कवायद थी।

क्या वे सफल रहे?

यकीनन नहीं। नई दिल्ली की हुकूमत ने हिम्मत नहीं हारी और न ही आपा खोया। आनन-फानन में 68,000 जवान, 90 संहारक टैंक और बड़ी संख्या में दूसरे जरूरी हथियार वहां तैनात किए गए। नई दिल्ली के हुक्मरां जानते थे कि इतना पर्याप्त नहीं है। चीन के दो लाख से ज्यादा जवान ‘वेस्टर्न थियेटर कमांड’ में तैनात थे और उनका समूचा लाव-लश्कर दूर नहीं है।

हम जानते हैं कि भारत और चीन की सीमा कुल जमा 3,488 किलोमीटर लंबी है। हालांकि, चीन इसे सिर्फ 2,000 किलोमीटर बताने पर तुला रहता है, लेकिन इससे हमारे रद्दे-अमल पर जरा सा भी फर्क नहीं पड़ता। हमारे रणनीतिकार स्पष्ट थे कि इतने बड़े इलाके में अगर हम कारगर गश्त नहीं कर सकते, तो वे भी पूरे तौर पर सक्षम नहीं हैं। इस स्थिति का लाभ उठाकर हमारे सैनिकों ने थाकुंग चोटी सहित तमाम दुर्गम और बर्फीले स्थानों पर कब्जा जमा लिया। इन स्थानों का रणनीतिक लाभ तय था। हम ऊंचाई पर थे और घाटी में मौजूद चीनी सैनिक हमारे सीधे निशाने पर। चीनी भूल क्यों गए थे कि 1984 से ही हमारे पास दुर्गम स्थानों पर जमे रहने की पर्याप्त ट्रेनिंग है। इसी साल हमारी फौजों ने सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा जमाया था।

तब से अब तक पाकिस्तान इस मुद्दे पर बस दांत किटकिटाकर रह जाता है। चीन ने जब से अपना ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ शुरू किया है, तभी से उसकी बुरी नजर लद्दाख के तमाम इलाकों पर पड़नी शुरू हो गई है। वह हमसे तिजारत तो बढ़ाना चाह रहा है, पर कब्जाई जमीन से पांव पीछे नहीं खींचना चाहता। बहरहाल, गलवान हादसे पर लौटते हैं।

ऊंचे स्थानों पर भारत के कब्जे से चीन को जबरदस्त धक्का लगा था। इससे उसके वार्ताकारों का मनोबल टूटा और हमें भी बातचीत की मेज पर अपनी बात जोरदार तरीके से रखने का अवसर हासिल हुआ। चार सालों की सघन बातचीत के बाद आमने-सामने जमे सैनिक वापस लौट गए हैं, लेकिन संबंध में खटास कायम है। इस झड़प ने कूटनीति और राजनय के तरीकों पर भी असर डाला। पहले ऐसे संघर्षों को सुलझाने की जिम्मेदारी विदेश मंत्रालय की हुआ करती थी। इस बार दोनों तरफ से सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने मोर्चा संभाला। इस प्रक्रिया से निष्कर्ष तक पहुंचने में देर भले ही लगी हो, परंतु सीमाओं की सुरक्षा को लेकर सैनिकों से अधिक संवेदनशील कोई और नहीं हो सकता।

मुझे यकीन है कि भारतीय जनरल साहिबान ने सोच-समझकर ही फैसला किया होगा।

बीजिंग का सत्ता-सदन हमारे बारे में क्या सोचता है, इसकी एक झलक पिछले महीने भारत-पाक संघर्ष के दौरान पुन: दिखाई दी। इस दौरान चीन ने खुल्लमखुल्ला पाकिस्तान का साथ दिया। गलवान के बाद से उसने पाकिस्तान को न केवल घातक हथियार दिए हैं, बल्कि पाक अधिकारियों को प्रशिक्षित भी किया है। कुछ लोग मानते हैं कि लद्दाख और पूर्वोत्तर स्थित पीएलए के ‘सैनिक थिएटर्स’ में पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों की भी आमदरफ्त है।

गलवान की इस बरसी और पाकिस्तान से हुए संघर्ष की सीख क्या है?

यही कि हमें पाक और चीनी सीमाओं पर एक साथ जंग लड़ने की मुकम्मल तैयारी करनी होगी। युद्ध-नीति का पुराना सिद्धांत है, जंग लड़नी हो, तो शत्रु के मुकाबले हरदम चाक-चौबंद रहना होगा। रूस-यूक्रेन, गाजा-इजरायल व इजरायल-ईरान के संघर्षों के बीच दुनिया तेजी से बदल गई है और ऐसे में इस पर अमल करना निहायत जरूरी है। किंवदंती बन चुके चीन के महान सैन्यशास्त्री सून जू ने ठीक कहा था- ‘विजेता समर में उतरने से पहले ही जंग जीत चुके होते हैं, जबकि पराजित योद्धा युद्धक्षेत्र में लड़ाई जीतने की कोशिश करते हैं।’

@shekharkahin

@shashishekhar.journalist

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।