गिग वर्कर्स को मिलेगी पेंशन, लेकिन कंपनियों का पैसा कहां से कटेगा? मुनाफे से या टर्नओवर से?
कंपनियां मान तो रही हैं कि वे हर महीने गिग वर्कर्स के पेंशन में पैसा देंगी, लेकिन अभी ये सवाल बना हुआ है कि ये पैसा कंपनी के मुनाफे से लिया जाएगा या फिर उसके कुल कारोबार (टर्नओवर) से।

जल्द ही गिग वर्कर्स की पेंशन के लिए कंपनियों के अंशदान का नियम तय होगा। कंपनियां मान तो रही हैं कि वे हर महीने पेंशन में पैसा देंगी, लेकिन अभी ये सवाल बना हुआ है कि ये पैसा कंपनी के मुनाफे से लिया जाएगा या फिर उसके कुल कारोबार (टर्नओवर) से। दरअसल, सामाजिक सुरक्षा कानून 2020 के मुताबिक, कंपनियों को अपने CSR फंड में 1.5% से 2% तक योगदान देना होता है। अब इसी पैसे को गिग वर्कर्स की पेंशन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
सरकारी सूत्रों की मानें तो मंत्रालय मुनाफे के आधार पर अंशदान लेने के पक्ष में नहीं है। उन्हें डर है कि अगर कंपनियों की ऑडिट रिपोर्ट या बैलेंस शीट देखकर पैसा तय किया गया, तो ये व्यवस्था ठीक से काम नहीं करेगी। इसलिए ज्यादा चांस है कि अंशदान कंपनी के टर्नओवर के हिसाब से तय होगा। जैसे ही ये नियम फाइनल होगा, प्रस्ताव कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। उसके बाद ही पेंशन योजना शुरू हो पाएगी।
गिग वर्कर्स की हालत पर चौंकाने वाले आंकड़े
नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 2020-21 में भारत में लगभग 77 लाख गिग वर्कर्स थे। 2030 तक ये संख्या बढ़कर 2.35 करोड़ (यानी ढाई करोड़) होने का अनुमान है। इनमें से 85% वर्कर्स की उम्र 30 से 50 साल के बीच है।
पहले के मुकाबले अब गिग वर्कर्स की महीने की कमाई घटी है। लोन, वाहन की मरम्मत और पेट्रोल-डीजल के खर्चे काटने के बाद उनकी औसत आय 15,000 से 20,000 रुपये रह गई है।
57% गिग वर्कर्स (जैसे ओला-उबर ड्राइवर) 2 से 5 साल से इस काम में हैं, जबकि 16% करीब 5 साल से भी ज्यादा समय से जुड़े हैं।
भारत में राज्यवार गिग वर्कर्स की अनुमानित संख्या (2020–21)
महाराष्ट्र 12 लाख
उत्तर प्रदेश 10 लाख
कर्नाटक 9 लाख
तमिलनाडु 8 लाख
दिल्ली 7 लाख
गुजरात 6 लाख
पश्चिम बंगाल 5 लाख
तेलंगाना 4 लाख
राजस्थान 3 लाख
अन्य राज्य 13 लाख
कुल 7 7 लाख
नोट: ये आंकड़े विभिन्न स्रोतों से प्राप्त अनुमानित आंकड़े हैं और वास्तविक संख्या में अंतर हो सकता है।
साफ है कि गिग वर्कर्स को स्वास्थ्य सुविधाएं, आय का भरोसा और सरकारी नियमों की कमी जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अब देखना ये है कि पेंशन योजना आने के बाद इन हालात में कितना सुधार होता है।