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GST का पहले टैक्स दो, बाद में पैसा लो वाला नियम छोटे कारोबारियों की रगों से खींच रहा पैसा

GST Rule: जीएसटी का ये पहले टैक्स दो, बाद में पैसा लो वाला नियम छोटे कारोबारियों की रगों से पैसा खींच रहा है। सरकार को या तो टैक्स भरने की टाइमिंग बदलनी चाहिए या फिर क्रेडिट नोट के नियम आसान करने चाहिए, ताकि ये लोग दिवालिया होने से बच सकें।

Drigraj Madheshia मिंटWed, 4 June 2025 06:53 AM
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GST का पहले टैक्स दो, बाद में पैसा लो वाला नियम छोटे कारोबारियों की रगों से खींच रहा पैसा

छोटे कारोबारियों को जीएसटी की वजह से पैसे का बोझ झेलना पड़ रहा है। उन्हें हर बिल (चालान) बनाते ही जीएसटी सरकार को चुकाना होता है, लेकिन उनके ग्राहक पैसे देने में 40 से 90 दिन तक लटकाते हैं। इसका नतीजा, उनके पास कारोबार चलाने के लिए पैसे ही नहीं बचते। कई बार तो जरूरी काम के लिए कर्ज लेना पड़ता है या अपनी जमा पूंजी निकालनी पड़ती है।

दिक्कत की जड़ यहां है

जीएसटी का नियम कहता है, "जब बिल बने या पैसा मिले (दोनों में से जो पहले हो), तब टैक्स दो"। मगर हकीकत ये है कि बिल तो आज बनता है, पैसा महीनों बाद मिलता है। ऐसे में कारोबारी को अपनी जेब से जीएसटी भरनी पड़ती है।

उदाहरण से समझिए (कंपनी XYZ का मामला)

मई महीने में कंपनी ने ₹5 लाख का सामान बेचा।

बिल बना: ₹5 लाख + 18% जीएसटी (₹90,000) = कुल ₹5.9 लाख।

स्टेप-1 (11 जून तक): कंपनी ने GST पोर्टल (GSTR-1) पर इस बिक्री की जानकारी दी।

स्टेप-2 (20 जून तक): कंपनी को GST चुकाना होगा (₹90,000), चाहे ग्राहक ने पैसा दिया हो या नहीं।

(ध्यान दें: खरीदारी पर मिले टैक्स क्रेडिट/ITC को घटाकर भी ये भुगतान करना होता है, लेकिन छोटे कारोबारों में ITC कम मिलता है)

मुश्किलें और भी हैं

1. पैसा आने से पहले टैक्स देना: ग्राहक पैसा देने में 2-3 महीने लगाता है, लेकिन टैक्स 20 दिन में ही चुकाना पड़ता है।

2. ग्राहक पैसा न दे तो? तब भी कारोबारी को दिया हुआ जीएसटी सरकार वापस नहीं करती।

3. 180 दिन बाद नया झंझट: अगर ग्राहक 6 महीने तक पैसा न दे, तो विक्रेता को खुद ही जीएसटी का कुछ हिस्सा वापस करना पड़ता है। मतलब, डूबे हुए पैसे पर भी सरकार टैक्स वसूलती है!

क्या कहते हैं कारोबारी?

बेंगलुरू की एडटेक कंपनी की संस्थापिका दीपाली भगत कहती हैं कि 60 दिन या उससे ज्यादा का लंबा भुगतान चक्र मुख्य खर्च कर्मचारी से संबंधित हैं, इसलिए दावा करने के लिए सीमित इनपुट टैक्स क्रेडिट, जो ऐसी आय जो प्राप्त नहीं हुई है, उसपर जीएसटी के रूप में कुल आय का तीन प्रतिशत भुगतान करना पड़ता है।

क्या बदलाव होना चाहिए?

एक निश्चित राजस्व सीमा से नीचे की कंपनियों के लिए भुगतान की वास्तविक प्राप्ति पर ही जीएसटी की अनुमति दी जानी चाहिए।

विशाल जासानी, सूरत, विज्ञापन कंपनी के सह-संस्थापक कहते हैं कि नकदी प्रवाह में व्यवधानों से बचने के साल में 3-4 बार पैसा उधार लेना होता है या अतिरिक्त पूंजी लगानी होती है। बिना व्यवसाय को जोखिम में डाले प्रतिस्पर्धी बाजार में बिलिंग संरचना को संशोधित नहीं किया जा सकता। इसलिए जीएसटी भरने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

ये भी पढ़ें:रिकॉर्ड जीएसटी कलेक्शन में किस राज्य का कितना रहा योगदान, बंगाल से पिछड़ा गुजरात

सुझाव

यदि कोई क्लाइंट कई फॉलो-अप के बाद भी भुगतान नहीं करता है, तो क्रेडिट नोट तंत्र का पालन किए बिना सबूत प्रस्तुत करने के बाद जीएसटी को बदलने की अनुमति दी जानी चाहिए।

क्या "क्रेडिट नोट" समाधान है?

सिद्धांत में हां: अगर ग्राहक पैसा न दे, तो कारोबारी "क्रेडिट नोट" जारी कर सकता है। इससे बकाया रकम का जीएसटी वापस मिल सकता है।

हकीकत में नहीं: क्रेडिट नोट सिर्फ खराब सामान या सर्विस में कमी होने पर ही जारी हो सकता है। "पैसा न देना" इसकी वजह नहीं मानी जाती।

क्रेडिट नोट जारी करते ही मूल चालान रद्द माना जाता है। फिर ग्राहक से पैसा वसूलने के लिए कानूनी रास्ता भी बंद हो जाता है।

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