इस साल छप्परफाड़ दिया रिटर्न, अब दो टुकड़ों में बंटेगा यह शेयर
Stock Split: आपके पास अगर आज इंडिया ग्लाइकॉल्स 100 शेयर हैं, तो स्प्लिट के बाद वो 200 शेयर हो जाएंगे, लेकिन हर शेयर की कीमत आधी रह जाएगी। कंपनी ने अभी सिर्फ फैसला लिया है। शेयर स्प्लिट की रिकॉर्ड डेट बाद में बताई जाएगी।

इंडिया ग्लाइकॉल्स कंपनी ने आज एक बड़ा फैसला लिया है। उसने अपने शेयरों को स्प्लिट करने का ऐलान किया है। वह भी तब जब, कंपनी के शेयर इस साल अबतक छप्परफाड़ रिटर्न दे चुके हैं। फिलहाल कंपनी के हर एक शेयर की कीमत (फेस वैल्यू) 10 रुपये है। स्प्लिट के बाद 1 शेयर (10 रुपये वाला) 2 शेयर (हर एक 5 रुपये वाला) में बंदल जाएंगे। यानी आपके पास अगर आज 100 शेयर हैं, तो स्प्लिट के बाद वो 200 शेयर हो जाएंगे, लेकिन हर शेयर की कीमत आधी रह जाएगी। कंपनी ने अभी सिर्फ फैसला लिया है। शेयर स्प्लिट की रिकॉर्ड डेट बाद में बताई जाएगी।
इस खबर के बीच आज कंपनी का शेयर थोड़ा ऊपर (0.30%) चढ़कर लगभग 1920 रुपये पर पहुंच गया। साल 2025 की शुरुआत से अब तक तो यह शेयर लगभग 50% चढ़ चुका है। यानी इस साल निवेशकों को काफी मुनाफा हुआ है।
कंपनियां स्टॉक स्प्लिट क्यों करती हैं?
1. शेयर की "कीमत" कम करना: जब कोई शेयर बहुत महंगा हो जाता है (जैसे ₹10,000/शेयर), तो छोटे निवेशक उसे खरीद नहीं पाते। स्प्लिट से शेयर सस्ते हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए ऐसे समझें। पहले: 1 शेयर = ₹1,000
1:10 स्प्लिट के बाद: 10 शेयर × ₹100 = कुल मूल्य वही (₹1,000)
2. लिक्विडिटी बढ़ाना: सस्ते शेयर ज्यादा लोग खरीदते हैं। बाजार में खरीदने-बेचने वाले बढ़ते हैं। शेयर का कारोबार आसान होता है।
3. मनोवैज्ञानिक आकर्षण: ₹100 का शेयर ₹1,000 के शेयर से मानसिक रूप से अधिक "सस्ता" लगता है, भले ही कंपनी का मूल्य समान हो।
4. इंडेक्स/ETF में शामिल होना: कुछ इंडेक्स या म्यूचुअल फंड्स महंगे शेयरों को नहीं खरीदते। स्प्लिट से कंपनी को इनमें जगह मिलने की संभावना बढ़ती है।
निवेशकों को क्या फायदा होता है?
1. छोटी पूंजी से निवेश: एक निवेशक महीने में ₹5,000 बचाता है। ₹2,000/शेयर खरीदना उसके लिए मुश्किल था। स्प्लिट के बाद अगर ₹200/शेयर हो गया तोअब वह आसानी से 25 शेयर खरीद सकता है।
2. शेयर बेचने में आसानी: मान लीजिए आपको ₹10,000 चाहिए।
पहले ₹10,000 का 1 शेयर बेचना पड़ता। स्प्लिट के बाद ₹1,000 के 10 शेयर बेच सकते हैं । आंशिक बिक्री आसान हो जाती है।
3. मनोवैज्ञानिक सुरक्षा: नए निवेशक "कीमत" देखकर डरते हैं। सस्ते शेयरों में उन्हें जोखिम कम लगता है।