चीन ने डलवाई मस्क-ट्रंप के बीच फूट? टैरिफ की मार झेल नहीं पा रहे टेस्ला के मालिक
ट्रंप और मस्क के बीच की तनातनी सिर्फ एक विधेयक तक सीमित नहीं है। यह चीन के रेयर अर्थ मैटेरियल्स पर नियंत्रण, ट्रंप के ट्रेड वॉर, और मस्क के बिजनेस हितों के टकराव की कहानी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और टेस्ला के मालिक एलन मस्क, दो ऐसी हस्तियां हैं जो अपनी बेबाक राय और बड़े फैसलों के लिए जानी जाती हैं। ट्रंप के चुनावी अभियान से लेकर पिछले कुछ दिनों तक मस्क उनके जिगरी यार थे। लेकिन अब दोनों के बीच तनाव खुलकर सामने आ गया है। खबरों के मुताबिक, मस्क-ट्रंप के बीच तनातनी का कारण एक विधेयक बताया जा रहा है, लेकिन असल कहानी कहीं गहरी और जटिल है। इसके पीछे छिपा है अमेरिका-चीन के बीच चल रहा ट्रेड वॉर, चिप बैन, और सबसे अहम, रेयर अर्थ मैटेरियल्स का संकट, जो मस्क की कंपनियों के लिए मुसीबत बन गया है। आइए, इस पूरी कहानी को विस्तार से समझते हैं।
ट्रंप-मस्क तनातनी: क्या है असल वजह?
ऊपर से देखने में ट्रंप और मस्क के बीच की तकरार का कारण एक विधेयक या नीतिगत मतभेद लगता है। लेकिन गहराई में जाएं तो असली जड़ है चीन की रणनीति और ट्रंप की आक्रामक व्यापार नीतियां। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही चीन, कनाडा, और मैक्सिको जैसे देशों पर भारी टैरिफ लगाने की नीति अपनाई। खास तौर पर चीन पर 10% से लेकर 145% तक के टैरिफ लगाए गए, जिसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी सामानों पर जवाबी टैरिफ और प्रतिबंध लगाए।
इस ट्रेड वॉर का सबसे बड़ा हथियार बना है रेयर अर्थ मैटेरियल्स। ये ऐसे खनिज हैं, जिनका इस्तेमाल आधुनिक तकनीक- जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, रॉकेट, रोबोट, और माइक्रोचिप्स में होता है। चीन इन मैटेरियल्स का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और आपूर्तिकर्ता है, और उसने हाल ही में इनके निर्यात पर सख्ती शुरू कर दी है। अब चीन केवल उन कंपनियों को ये मैटेरियल्स दे रहा है, जो यह साबित करें कि उनका अमेरिकी सेना से कोई संबंध नहीं है।
क्यों चीन ने कर दी नाक में दम?
चीन द्वारा रेयर अर्थ मिनरल्स और उनसे जुड़ी मैग्नेट्स के निर्यात पर नए लाइसेंसिंग नियम लागू किए दो महीने हो चुके हैं, लेकिन अब इसके गंभीर असर पश्चिमी देशों की औद्योगिक इकाइयों में महसूस किए जा रहे हैं। स्मार्टफोन से लेकर लड़ाकू विमानों तक में जरूरी इन सात तत्वों (डिस्प्रोसियम, गैडोलिनियम, लुटेशियम, समेरियम, स्कैन्डियम, टरबियम और इट्रियम) की आपूर्ति में आई रुकावटों से ऑटोमोबाइल सेक्टर में हलचल मच गई है। रेयर अर्थ तत्व वास्तव में दुर्लभ नहीं होते, लेकिन इनका खनन और प्रोसेसिंग अत्यंत जटिल होती है। दुनिया में कुल 17 रेयर अर्थ तत्व हैं, जिनमें 15 लैन्थेनाइड्स और दो अन्य- स्कैन्डियम और इट्रियम शामिल हैं। ये आधुनिक जीवन की धुरी बन चुके हैं- चाहे वो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स हों, विंड टर्बाइन हों या रक्षा प्रणाली। चीन इस क्षेत्र में केवल खनन ही नहीं, बल्कि 90% प्रोसेसिंग क्षमता भी रखता है। अमेरिका, म्यांमार जैसे देश भी खनन करते हैं, लेकिन अंतिम प्रोसेसिंग अधिकतर चीन में ही होती है। यही कारण है कि बीजिंग को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारी दबदबा हासिल है।
अप्रैल में चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने घोषणा की थी कि अब सात प्रकार के रेयर अर्थ तत्वों और मैग्नेट्स के निर्यात के लिए लाइसेंस जरूरी होगा, जिसमें अंतिम उपयोग का प्रमाण और डिक्लेरेशन भी देना होगा। भले ही यह नियम सभी देशों पर लागू होता है, लेकिन इसे अमेरिका के खिलाफ प्रतिशोध के तौर पर देखा जा रहा है। चीन ने इससे पहले गैलियम, जर्मेनियम और टंगस्टन जैसे अन्य अहम खनिजों पर भी निर्यात नियंत्रण लगाया था। बीजिंग का कहना है कि ये कदम अवैध खनन रोकने और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हैं। लेकिन अमेरिका समेत कई देश इसे ‘स्ट्रैटेजिक वेपनाइजेशन’ मानते हैं। भारत के पास दुनिया के 6% रेयर अर्थ भंडार हैं, लेकिन उसकी वैश्विक उत्पादन में हिस्सेदारी मात्र 0.25% है।
एलन मस्क की मुश्किलें क्यों बढ़ीं?
एलन मस्क की कंपनियां- टेस्ला, स्पेसएक्स, न्यूरालिंक, और द बोरिंग कंपनी इन रेयर अर्थ मैटेरियल्स पर बहुत हद तक निर्भर हैं। टेस्ला की इलेक्ट्रिक कारों में बैटरी और मोटर के लिए, स्पेसएक्स के रॉकेट में, और न्यूरालिंक की ब्रेन-कंप्यूटर चिप्स में इन मैटेरियल्स का इस्तेमाल होता है। लेकिन मस्क की कंपनियों का अमेरिकी सेना के साथ गहरा रिश्ता है। स्पेसएक्स, उदाहरण के लिए, अमेरिकी रक्षा विभाग और नासा के लिए सैटेलाईट और मिशन लॉन्च करता है। टेस्ला भी अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी प्रोजेक्ट्स से जुड़ी है। ऐसे में, चीन का यह नया नियम मस्क के लिए बड़ा झटका है।
चीन के इस कदम ने मस्क को दोराहे पर ला खड़ा किया है। एक तरफ, उनके बिजनेस को चलाने के लिए रेयर अर्थ मैटेरियल्स जरूरी हैं, और दूसरी तरफ, अमेरिकी सेना के साथ उनके संबंधों के कारण चीन इनकी सप्लाई रोक रहा है। वैकल्पिक स्रोतों से इन मैटेरियल्स को हासिल करना आसान नहीं है, क्योंकि वैश्विक सप्लाई का 70-80% हिस्सा चीन के नियंत्रण में है।
कैसे पड़ा ट्रंप की नीतियों का असर
ट्रंप की नीतियों ने इस संकट को और बढ़ाया है। 2025 में सत्ता संभालते ही ट्रंप ने चीन पर टैरिफ बढ़ाने और चिप डिजाइन सॉफ्टवेयर जैसी तकनीकों पर प्रतिबंध लगाने की शुरुआत की। अमेरिका ने चीन को अपनी सबसे एडवांस चिप एक्सपोर्ट करने पर भी बैन लगा दिया। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि इन एडवांस और ताकतवर चिप्स का इस्तेमाल कर चीन अपनी सेना को आधुनिक और ताकतवर बना रहा है। इसके जवाब में चीन ने न केवल अमेरिकी सामानों पर टैरिफ बढ़ाए, बल्कि रेयर अर्थ मैटेरियल्स जैसे रणनीतिक संसाधनों पर भी कड़ा रुख अपनाया। यह एक तरह से ट्रंप के ट्रेड वॉर का सीधा जवाब है, लेकिन इसका असर मस्क जैसे उद्यमियों पर पड़ रहा है।
ट्रंप की नीतियों का मकसद अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और विदेशी आयात पर निर्भरता कम करना था। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये नीतियां उलटा असर डाल रही हैं। चीनी मीडिया 'ग्लोबल टाइम्स' ने चेतावनी दी है कि ट्रंप के टैरिफ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं और वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ा सकते हैं। मस्क जैसे बिजनेसमैन ग्लोबल सप्लाई चैन पर निर्भर हैं और इसकी चपेट में सबसे पहले आ रहे हैं।
मस्क-ट्रंप की राहें अलग?
मस्क और ट्रंप के बीच तनाव की एक और वजह हो सकती है उनकी अलग-अलग प्राथमिकताएं। ट्रंप जहां 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति पर चल रहे हैं, वहीं मस्क का बिजनेस मॉडल वैश्विक है। टेस्ला की बड़ी फैक्ट्री शंघाई में है, और मस्क ने हमेशा चीन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश की है। लेकिन ट्रंप के टैरिफ और प्रतिबंधों ने मस्क के लिए चीन के साथ कारोबार करना मुश्किल कर दिया है। जानकार मानते हैं कि मस्क ट्रंप की नीतियों से खुश नहीं हैं, क्योंकि ये उनके बिजनेस हितों को नुकसान पहुंचा रही हैं। लेकिन मस्क खुलकर इसका विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि उनकी कंपनियां अमेरिकी सरकार के समर्थन पर भी निर्भर हैं। यह एक नाजुक संतुलन है, और मस्क इस जाल में फंसते नजर आ रहे हैं।
एक दिन पहले ट्रंप ने अपने पूर्व समर्थक और सलाहकार एलन मस्क के रुख को लेकर अपनी 'निराशा' जाहिर की। दिग्गज कंपनी टेस्ला एवं सोशल मीडिया मंच एक्स के प्रमुख मस्क ने ट्रंप के हस्ताक्षर वाले एक विधेयक की आलोचना की है। मस्क ने सोशल मीडिया पर ट्रंप के 'बिग ब्यूटीफुल' विधेयक की वजह से संघीय घाटा बढ़ने की आशंका जताई है। ट्रंप ने मस्क के इस आलोचनात्मक रुख पर कहा कि दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति मस्क को अब भी व्हाइट हाउस की याद सता रही है। उन्होंने मस्क को 'ट्रंप डिरेंजमेंट सिंड्रोम' हो जाने का जिक्र भी किया। इस बयान के जरिये वह मस्क की मनोस्थिति पर सवाल उठा रहे थे। ट्रंप ने व्हाइट हाउस स्थित अपने कार्यालय 'ओवल ऑफिस' में संवाददाताओं की मौजूदगी में मस्क के साथ अपने मतभेद पर चर्चा की। इस घटनाक्रम से ट्रंप और मस्क के बीच संबंधों में खटास बढ़ने का अंदेशा है। कुछ दिन पहले तक ट्रंप के प्रबल समर्थक और उनके प्रशासन में सलाहकार रह चुके मस्क अब सार्वजनिक रूप से उनकी नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं। मस्क को ट्रंप ने अपने दूसरे राष्ट्रपति कार्यकाल में सरकारी खर्चों में कटौती के लिए गठित विभाग में नियुक्त किया था। लेकिन मस्क ने अपने कदमों को लेकर विवाद बढ़ने के बाद हाल ही में पद छोड़ दिया।
क्या भारत को मिलेगा मौका?
इस ट्रेड वॉर का एक दिलचस्प पहलू यह है कि यह भारत के लिए अवसर पैदा कर सकता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका-चीन के बीच बढ़ती दूरी का फायदा भारत को मिल सकता है। उदाहरण के लिए, चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर भारी टैरिफ के कारण चीनी कंपनियां भारतीय निर्यातकों से संपर्क साध रही हैं। भारत टेक्सटाइल, सेमीकंडक्टर, और अन्य क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। हालांकि, भारत को अभी अपनी बुनियादी ढांचा में सुधार की जरूरत है। ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने ट्रेड वॉर का फायदा उठाने की कोशिश तो की, लेकिन वियतनाम और ताइवान जैसे देशों ने ज्यादा सफलता हासिल की। फिर भी, अगर भारत सही नीतियां अपनाए, तो वह रेयर अर्थ मैटेरियल्स और अन्य क्षेत्रों में वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता बन सकता है।
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