कैसे ईरान में इतने ताकतवर हैं 86 साल के अयातुल्ला खामेनेई, किनके समर्थन से 44 साल से शासन
जानकारों का मानना है कि भले ही अयातुल्ला खामेनेई 86 साल के हो चुके हैं, लेकिन सत्ता की डोर को वह मजबूती से थामे हुए हैं। इसकी वजह यह है कि ईरान के ज्यादातर वर्गों में खामेनेई शासन की पकड़ मजबूत है। इसके चलते उन्हें सत्ता से हटा पाना बेहद कठिन है।
इजरायल और ईरान के बीच जारी युद्ध के दौरान अकसर ऐसी चर्चाएं भी हो रही हैं कि अयातुल्ला खामेनेई का शासन अब समाप्त हो सकता है। कहा जा रहा है कि ईरान में आंतरिक तौर पर खामेनेई के शासन से गहरी नाराजगी है और तख्तापलट हो सकता है। इजरायल और अमेरिका ने खुलकर ऐसा कुछ नहीं कहा है कि उनका लक्ष्य ईरान में सत्ता परिवर्तन कराना है, लेकिन सूत्र इस बात से इनकार नहीं करते। जानकारों का मानना है कि भले ही अयातुल्ला खामेनेई 86 साल के हो चुके हैं, लेकिन सत्ता की डोर को वह मजबूती से थामे हुए हैं। इसकी वजह यह है कि ईरान के ज्यादातर वर्गों में खामेनेई शासन की पकड़ मजबूत है।
ईरान में तख्तापलट तभी हो सकता है, जब देश की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर हो जाए- जैसा रूस में हुआ था। इसके अलावा सामाजिक संघर्ष बढ़ जाए, जैसा इराक में देखा गया था। ऐसी कई स्थितियां जब एक साथ देखी गई थी तो अरब देशों में आंदोलन शुरू हुए थे, जिसे अरब स्प्रिंग कहा गया था। फिलहाल ईरान में ऐसी कोई भी स्थिति इतनी प्रभावी नहीं है कि अयातुल्ला अली खामनेई का साधन पूरी तरह से समाप्त हो सके। अयातुल्ला खामेनेई का शासन भले ही मजहबी तानाशाही वाला है, लेकिन उनके दौर में ईरान में चुनाव बड़े ही तरीके से मैनेज किए जाते रहे हैं।
इसके अलावा सरकार के चेहरे के तौर पर राष्ट्रपति होते हैं और किसी भी आंदोलन को कुचलने का ठीकरा उन पर ही फूटता है। इस तरह खामेनेई सीधे तौर पर जनता के गुस्से से बच जाते हैं। जैसे कि 2022 में हिजाब विरोधी आंदोलन हुए थे, लेकिन उसे मैनेज कर लिया गया। इस तरह सरकार का चेहरा और असली पावर बंटी हुई है, जिससे जनता के बीच परसेप्शन मैनेजमेंट करने में आसानी रहती है। हालांकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि अयातुल्ला के शासन में विद्रोहों को नहीं दबाया जाता। महिला, अल्पसंख्यक, वकील और छात्र आंदोलन अकसर सत्ता की बर्बरता का निशाना बनते रहे हैं।
गांवों में अयातुल्ला की पकड़ ज्यादा मजबूत
यही नहीं इस्लामिक रिवॉलूशनरी गार्ड्स का गठन तो अयातुल्ला के दौर में ही हुआ और इसका मुख्य काम सत्ता को संरक्षण देने का रहा है। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि अयातुल्ला के खिलाफ उठने वाली विद्रोह की ज्यादातर आवाजें शहरी क्षेत्रों में हैं। ईरान के गांवों में वही कट्टरपंथी माहौल है और वहां अयातुल्ला के शासन को पसंद करने वालों की तादाद अधिक है। अब सवाल यह है कि रास्ता क्या है। अयातुल्ला को सत्ता से बेदखल करने का एक मात्र रास्ता बाहरी दखल है, लेकिन ऐसा करने पर क्षेत्रीय अशांति फैल सकती है। ईरान समर्थित उग्रवादी गुट कई देशों में अराजकता फैला सकते हैं।
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