चीन ने धोखा दिया, मिस्टर नाइस गाय बनने का क्या फायदा; भड़के ट्रंप ने दी चेतावनी
इस व्यापार युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। चीन का शेयर बाजार 2008 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था। विश्लेषकों का मानना है कि इस तनाव का फायदा भारत जैसे देशों को मिल सकता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक बार फिर अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बीच तनाव को बढ़ा दिया। ट्रंप ने चीन पर "समझौते का पूरी तरह उल्लंघन" करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अब वे "मिस्टर नाइस गाय" बनकर नहीं रहेंगे। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर एक तीखा पोस्ट करते हुए लिखा, "दो हफ्ते पहले चीन गंभीर आर्थिक संकट में था! मैंने जो बहुत ऊंचे टैरिफ लगाए, उनसे चीन के लिए अमेरिकी बाजार में व्यापार करना लगभग असंभव हो गया। हमने चीन के साथ व्यवहार में अचानक ठहराव ला दिया, और यह उनके लिए विनाशकारी साबित हुआ। कई फैक्ट्रियां बंद हो गईं और अगर हल्के शब्दों में कहूं तो वहां ‘नागरिक अशांति’ फैल गई।"
उन्होंने आगे कहा, "मैंने जो देखा, वह मुझे अच्छा नहीं लगा- उनके लिए, हमारे लिए नहीं। मैंने चीन को एक बड़ा संकट झेलने से बचाने के लिए तेजी से एक समझौता किया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो। इस सौदे के चलते चीजें जल्दी स्थिर हो गईं और चीन सामान्य व्यापार में लौट आया। सब खुश थे! यह अच्छी खबर है। लेकिन बुरी खबर यह है कि चीन ने अमेरिका के साथ अपने समझौते का पूरी तरह उल्लंघन किया है। मिस्टर नाइस गाय बनने का क्या फायदा!"
ट्रंप की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि चीन के साथ व्यापार वार्ता "थोड़ी ठप" हो गई है। वहीं, अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीयर ने भी CNBC से बातचीत में ट्रंप के आरोप की पुष्टि करते हुए कहा, "हमें चीन की कथित मनमाने ढंग पर गहरी चिंता है। अमेरिका ने तो समझौते के तहत सभी शर्तें पूरी कीं, लेकिन चीन इसे टाल-मटोल कर रहा है। यह पूरी तरह अस्वीकार्य है और इसे तुरंत ठीक किया जाना चाहिए।"
क्या है पूरा मामला?
ट्रंप कार्यकाल के दौरान अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध ने बेहद तीखा रूप ले लिया है। उन्होंने चीनी आयात पर 145% तक का टैरिफ लगाया, जिसे "लिबरेशन डे" ट्रेड पैकेज का हिस्सा कहा गया। इन टैरिफ्स के चलते चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ। चीन का क्रय प्रबंधक सूचकांक 16 महीनों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया, जिससे कारखाना गतिविधियों और निर्यात ऑर्डर्स में भारी गिरावट दर्ज की गई।
इस आर्थिक दबाव के बाद, मई में जिनेवा में एक ऐतिहासिक व्यापार समझौता हुआ। इसके तहत दोनों देशों ने टैरिफ में 115% की कटौती करने पर सहमति जताई, जबकि अतिरिक्त 10% टैरिफ बरकरार रखने का फैसला लिया गया। चीन ने अमेरिका पर लगे प्रतिशोधी टैरिफ हटाने और गैर-टैरिफ उपायों को स्थगित करने पर सहमति दी थी। ट्रंप प्रशासन ने इसे बड़ी सफलता बताया और कहा कि यह समझौता अमेरिका की व्यापार घाटा कम करने और अनुचित व्यापार नीतियों पर लगाम लगाने के लिए जरूरी था।
फिर से तनाव क्यों?
हालांकि शुरुआती स्थिरता के बाद अब अमेरिका का आरोप है कि चीन ने इस समझौते का पालन नहीं किया। ट्रंप और अमेरिकी अधिकारी खास तौर पर इस बात से नाराज हैं कि चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात प्रतिबंधों को ढील देने जैसे वादों को नहीं निभाया, जो कि उन्नत तकनीकों के लिए बेहद जरूरी हैं। इसके जवाब में अमेरिका ने फिर सख्त कदम उठाए हैं- चीनी छात्रों के वीजा रद्द किए गए हैं, चीनी कंपनियों को संवेदनशील तकनीकों की बिक्री पर रोक लगाई गई है और नई जांचें शुरू की गई हैं।
दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर असर
टैरिफ युद्ध का असर अब दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है। अमेरिका में 2025 की शुरुआत में आर्थिक मंदी दर्ज की गई है। उपभोक्ता कीमतों में तेज बढ़ोतरी, नौकरियों में कटौती और बाजार में अस्थिरता देखी जा रही है। खुदरा व्यापारियों ने बढ़ी लागत के चलते दाम बढ़ा दिए हैं और महंगाई दर में वृद्धि हुई है।
उधर चीन ने भी अमेरिका के खिलाफ राजनयिक और व्यापारिक रणनीतियां तेज कर दी हैं। चीन ने चेतावनी दी है कि वह अमेरिका की चीन विरोधी व्यापार नीतियों में सहयोग करने वाले देशों के खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्रवाई कर सकता है। वहीं, भारी सरकारी प्रोत्साहन के बावजूद चीन की GDP वृद्धि दर आधिकारिक लक्ष्यों से कम रहने की आशंका जताई जा रही है।
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