पेंगुइन के द्वीप ही नहीं, अमेरिकी सैन्य अड्डों पर भी लगाया है टैरिफ; ट्रंप की चालाकी समझिए
- ट्रंप प्रशासन ने इस बार अपनी टैरिफ नीति को वैश्विक स्तर पर लागू करने का फैसला किया है। इसमें सभी व्यापारिक साझेदार देशों पर कम से कम 10 प्रतिशत का आधारभूत टैरिफ लगाया गया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी नई टैरिफ नीति के तहत एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने दुनियाभर में हैरानी पैदा कर दी है। 2 अप्रैल को घोषित इस नीति में न केवल विदेशी देशों और उनके उत्पादों पर आयात शुल्क लगाया गया है, बल्कि इसमें कुछ ऐसे क्षेत्र भी शामिल हैं जो बेहद चौंकाने वाले हैं। ट्रंप ने अपनी इस नीति को "लिबरेशन डे" करार देते हुए इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और व्यापारिक असंतुलन को ठीक करने का दावा किया है। लेकिन इस बार उनकी टैरिफ सूची में पेंगुइन जैसे प्राणियों से भरे दूरदराज के द्वीपों से लेकर अमेरिका के अपने सैन्य अड्डों तक को शामिल किया गया है। आइए, विस्तार से ट्रंप की इस चालाकी को समझने की कोशिश करते हैं।
टैरिफ की नई सूची: पेंगुइन द्वीप से सैन्य अड्डों तक
ट्रंप प्रशासन ने इस बार अपनी टैरिफ नीति को वैश्विक स्तर पर लागू करने का फैसला किया है। इसमें सभी व्यापारिक साझेदार देशों पर कम से कम 10 प्रतिशत का आधारभूत टैरिफ लगाया गया है, जबकि कुछ देशों पर यह दर 50 प्रतिशत तक जाती है। लेकिन जो बात सबसे ज्यादा चर्चा में है, वह है इस सूची में उन क्षेत्रों का शामिल होना जहां कोई मानव आबादी नहीं है या जहां अमेरिका की अपनी सैन्य मौजूदगी है।
उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया के हर्ड एडं मैकडोनाल्ड द्वीपों को इस सूची में शामिल किया गया है। ये निर्जन द्वीप दक्षिणी गोलार्ध में स्थित हैं और पेंगुइन, सील और समुद्री पक्षियों का घर हैं। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल ये क्षेत्र पूरी तरह से निर्जन हैं और यहां कोई व्यापारिक गतिविधि नहीं होती। फिर भी, ट्रंप प्रशासन ने इन पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने इसे ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्र का हिस्सा बताते हुए इस फैसले को जायज ठहराया, लेकिन सवाल यह है कि क्या पेंगुइन और सील अमेरिका को कुछ निर्यात करते हैं?
इससे भी हैरानी की बात यह है कि टैरिफ सूची में ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (BIOT) जैसे स्थान शामिल हैं, जहां डिएगो गार्सिया द्वीप पर अमेरिका का एक प्रमुख सैन्य अड्डा स्थित है। इस अड्डे पर करीब 3,000 अमेरिकी और ब्रिटिश सैन्यकर्मी तैनात हैं, और यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अभियानों का महत्वपूर्ण केंद्र है। सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार, यहां अमेरिकी B-2 बॉम्बर विमान जैसे परमाणु-सक्षम हथियार भी मौजूद हैं। फिर भी, इस क्षेत्र से आने वाले सामानों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। इसी तरह, मार्शल द्वीप के क्वाजालीन एटोल, जहां अमेरिकी सेना की बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग सुविधा है, को भी इस सूची में शामिल किया गया है।
ट्रंप की चालाकी: राजनीति या आर्थिक रणनीति?
ट्रंप ने इस नीति को "जवाबी व्यापार" का नाम दिया है। उनका तर्क है कि अगर कोई देश या क्षेत्र अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी उसी दर से जवाबी टैरिफ लगाएगा। व्हाइट हाउस की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि कई देशों ने अमेरिकी सामानों पर ऊंचे टैरिफ लगाकर अमेरिकी उद्योगों को नुकसान पहुंचाया है, और अब समय आ गया है कि इसे ठीक किया जाए। ट्रंप ने अपने भाषण में कहा, "2 अप्रैल अमेरिका के लिए लिबरेशन डे है। यह अमेरिकी उद्योगों के पुनर्जन्म का दिन होगा।"
लेकिन इस नीति के पीछे की चालाकी को समझना जरूरी है। पहली नजर में यह एक आर्थिक रणनीति लगती है, जिसका मकसद अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें राजनीतिक मकसद भी छिपा है। ट्रंप का यह कदम उनके समर्थकों को यह संदेश देता है कि वह अमेरिका को "फिर से महान" बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। निर्जन द्वीपों और सैन्य अड्डों को टैरिफ सूची में शामिल करना एक प्रतीकात्मक कदम हो सकता है, जो यह दिखाता है कि उनकी नीति कितनी व्यापक और सख्त है।
हालांकि, आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इन टैरिफ का व्यावहारिक असर न के बराबर होगा। उदाहरण के लिए, डिएगो गार्सिया जैसे सैन्य अड्डों को टैरिफ से छूट दी गई है, और हर्ड और मैकडोनाल्ड द्वीपों से कोई आयात होता ही नहीं। सरे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. एरिक गोल्सन के अनुसार, "यह एक दिखावटी कदम है, जिसका कोई वास्तविक आर्थिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह ट्रंप की छवि को मजबूत करने का तरीका है।"
ये भी हो सकती है वजह
हालांकि यह जानकारों का मानना है किइन द्वीपों पर टैरिफ लगाने के पीछे एक और रणनीति हो सकती है। दरअसल विश्व व्यापार में शुल्क बचाने, पाबंदियों से बचने और अन्य चालबाजियों के लिए बेनामी पतों, स्थानों, जहाजों आदि का खूब इस्तेमाल होता है। इंटरनेशनल कंपनियां किसी एक जगह माल बनाती हैं और उसे किसी दूसरी जगह का बताकर बेचती हैं। ऑफशोरिंग का चलन आम है। समुद्र में ही जहाजों के झंडे और पंजीकरण देश बदल दिए जाते हैं। इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि ट्रंप प्रशासन को जानकारी मिली हो कि इन निर्जन द्वीपों के जरिए व्यापार हो रहा है। हालांकि इसकी कोई आधिकरिक पुष्टि नहीं हुई है।
ट्रंप की यह टैरिफ नीति एक बार फिर उनकी आक्रामक और अप्रत्याशित शैली को दर्शाती है। पेंगुइन द्वीपों से लेकर अपने सैन्य अड्डों तक टैरिफ लगाना शायद एक मजाक जैसा लगे, लेकिन इसके पीछे उनकी रणनीति साफ है- अमेरिका को हर हाल में पहले नंबर पर रखना। यह कदम कितना सफल होगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल यह दुनियाभर में चर्चा और विवाद का विषय बना हुआ है।
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