Elephant Rampage in Saranda Reserve Villagers Demand Compensation and Safety Measures सारंडा के नवागांव और भनगांव में तीन घरों को दतैंल हाथी ने किया तहस-नहस, एक युवती घायल, Chaibasa Hindi News - Hindustan
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सारंडा के नवागांव और भनगांव में तीन घरों को दतैंल हाथी ने किया तहस-नहस, एक युवती घायल

सारंडा रिजर्व वन क्षेत्र के किरीबुरु रेंज में एक दतैल हाथी ने नवागांव और भनगांव में तबाही मचाई। हाथी ने तीन घरों को तोड़कर राशन और अन्य सामान बर्बाद कर दिया। एक लड़की गंभीर रूप से घायल हुई है।...

Newswrap हिन्दुस्तान, चाईबासाThu, 29 May 2025 11:25 AM
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सारंडा के नवागांव और भनगांव में तीन घरों को दतैंल हाथी  ने किया तहस-नहस, एक युवती घायल

गुवा । सारंडा रिजर्व वन क्षेत्र अन्तर्गत किरीबुरु रेंज में एक दतैल हाथी ने भारी तांडव मचाया। नवागांव और भनगांव गांवों में घुसे इस हाथी ने तीन ग्रामीणों के घरों को पूरी तरह तोड़ डाला। घर के अंदर रखे राशन, बर्तन, कपड़े और दैनिक उपयोग की तमाम वस्तुएं बर्बाद कर दीं। जब हाथी सुखराम सुरीन का घर तोड़ रहा था तब उसकी बेटी सोमवारी सुरीन घर में सोई थी, दिवाल गिरने से गंभीर रुप से घायल हो गई। इस दौरान ग्रामीण किसी तरह जान बचाकर भागने में सफल रहे, लेकिन मानसिक आघात और आर्थिक नुकसान से वे अभी तक उबर नहीं पाए हैं।

इस हमले में जिनके घर ध्वस्त हुए उनमें नवागांव निवासी रवीन्द्र मुंडा और भनगांव के सुखराम सुरीन व पाण्डू सिद्धू शामिल हैं। ये ग्रामीण पहले से ही सीमित संसाधनों में जीवन काट रहे थे, अब उनके पास सिर छिपाने को छत भी नहीं बची। ग्रामीणों ने बताया कि यह कोई पहली घटना नहीं है -यह दतैल हाथी सालभर में कई बार गांवों में घुसकर इसी तरह की तबाही मचाता है। ग्रामीणों का कहना है कि हाथियों के अलग-अलग झुंड सारंडा क्षेत्र के कई गांवों में बार-बार आकर जान-माल का नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब तक कई ग्रामीण इन हाथियों के हमले में अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। इसके बावजूद वन विभाग की ओर से स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई है। सबसे बड़ी शिकायत यह है कि जिन ग्रामीणों का घर हाथियों ने तोड़ा, उन्हें अब तक मुआवजा नहीं दिया गया है। ग्रामीणों ने बताया कि ऐसे दर्जनों परिवार हैं जो पिछले हमलों में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं लेकिन मुआवजे की रकम के लिए वे आज भी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। वन विभाग की ओर से बार-बार सिर्फ आश्वासन मिल रहा है, कार्रवाई नहीं। हाथियों के डर से ग्रामीण जंगल में वनोत्पाद लाने नहीं जा पा रहे हैं। लकड़ी, पत्ते, औषधीय जड़ी-बूटियाँ और अन्य सामग्री जो इनका जीवनयापन का साधन थीं, अब दूर की चीज़ बन गई हैं। दिन-रात भय के साये में जीना उनकी मजबूरी बन गई है। महिलाओं और बच्चों में तो भय का स्तर इतना अधिक है कि वे घर से बाहर निकलने में भी डरने लगे हैं। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि हाथियों को खदेड़कर घने व सुरक्षित वन क्षेत्रों की ओर नहीं भेजा जा रहा है। कुछ वर्षों पहले वन विभाग ने गजराज वाहन और प्रशिक्षित दल के माध्यम से ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण की कोशिश की थी, लेकिन वह व्यवस्था कब की बंद हो चुकी है। अब न तो वन कर्मी मौके पर समय से पहुंचते हैं और न ही किसी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। ग्रामीणों की मांग है कि प्रभावितों को तत्काल मुआवजा दिया जाए, दतैल हाथी को पकड़कर सुरक्षित क्षेत्र में छोड़ा जाए, वन सीमा क्षेत्रों में बिजली चालित फेंसिंग की जाए, गांवों के आस-पास वन विभाग की चौकियां बनाई जाएं,वन उत्पाद संग्रहण के लिए सुरक्षा दल तैनात किया जाए।

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