वन उपज से आत्मनिर्भर हो रहीं आदिवासी महिलाएं
महुआ लड्डू से लेकर करंज तेल तक के झारखंडी उत्पादों को मिला नया बाजार, हर माह 12 हजार तक की आय कर रही महिलाओं में बढ़ा आत्मविश्वास वीडीवीके सेरका की मह

गुमला, अमरनाथ कश्यप। जिले के विशुनपुर प्रखंड स्थित वन धन विकास केंद्र (वीडीवीके) सेरका आज आदिवासी समुदाय, खासकर विलुप्त प्राय आदिम जनजाति (पीभीटीजी) परिवारों के लिए आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बन चुका है। जिला प्रशासन द्वारा वर्ष 2019 में शुरू हुई यह पहल आज एक सफल मॉडल के रूप में सामने आई है। वीडीवीके सेरका का संचालन 15 स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से हो रहा है। जिनमें तीन सौ से अधिक जनजातीय सदस्य शामिल हैं। इनमें 70 फीसदी महिलाएं हैं। जो महुआ, इमली और करंज जैसे वन उत्पादों का वैज्ञानिक तरीके से संग्रहण और प्रसंस्करण कर रही हैं। इनसे महुआ लड्डू,अचार, इमली पाउच और करंज तेल जैसे उत्पाद तैयार किए जाते हैं।
जिनकी बिक्री झामकोफेड के माध्यम से होती है। इससे महिलाओं को हर माह आठ हजार से 12 हजार तक की आय हो रही है। कोरवा समुदाय की बसंती देवी इस परियोजना की प्रेरणादायक मिसाल हैं। वह पहले दिहाड़ी मजदूरी पर आश्रित थी,लेकिन बसंती आज प्रशिक्षण लेकर महुआ प्रसंस्करण में दक्ष बन चुकी हैं। और वह₹12 हजार प्रतिमाह कमा रही हैं। उसने अपने गांव की 15 महिलाओं को भी प्रेरित कर नया एसएचजी गठित कराया है। वीडीवीके से जुड़े सभी सदस्यों को सात दिनी प्रशिक्षण में संग्रहण,प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और विपणन से जुड़ी जानकारी दी गई है। टूल किट भी उपलब्ध कराए गए हैं। इस योजना के जरिए न सिर्फ आमदनी बढ़ी है,बल्कि बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और घर की स्थिति में भी सुधार आया है। अब इन उत्पादों की बिक्री गुमला के साथ-साथ रांची और अन्य जिलों में भी होने लगी है। जिससे वीडीवीके सेरका वन आधारित सतत आजीविका और महिला सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण बन चुका है।
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