शर्मिष्ठा पनोली के खिलाफ FIR दर्ज कराने वाला शख्स लापता, पिता का दावा
कोलकाता पुलिस ने शुक्रवार रात गुरुग्राम से शर्मिष्ठा पनोली को सांप्रदायिक टिप्पणियों वाला वीडियो अपलोड करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। वीडियो में कहा गया कि बॉलीवुड कलाकार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर चुप हैं।

सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी के बाद शिकायतकर्ता वजाहत खान के लापता होने की खबर है। वजाहत के पिता सआदत खान ने दावा किया कि उनके बेटे को रविवार रात से नहीं देखा गया है। उन्होंने कहा कि शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी के बाद से ही परिवार को धमकी भरे फोन कॉल्स मिल रहे हैं। आत तक से बातचीत में सआदत ने कहा, 'वजाहत को पिछले कुछ दिनों में अपमानजनक और धमकी भरे कॉल्स आए, जिसमें उसे शर्मिष्ठा का जीवन बर्बाद करने का आरोप लगाया गया। मेरा बेटा तो धर्मनिरपेक्ष है। वह हिंदू धर्म का अपमान नहीं कर सकता। संदेह है कि उसका सोशल मीडिया अकाउंट हैक हुआ होगा।
इस बीच, वजाहत खान के खिलाफ श्री राम स्वाभिमान परिषद ने कोलकाता के गार्डन रीच पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है। इसमें उस पर हिंदू समुदाय के खिलाफ अपमानजनक और भड़काऊ टिप्पणियां करने का आरोप लगाया गया है। 2 जून को लिखे पत्र में वजाहत खान पर रेपिस्ट कल्चर और यूरीन ड्रिंकर्स जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप है। हिंदू देवताओं, मंदिरों और त्योहारों का मजाक उड़ाने का भी आरोप लगा है। शिकायत में कहा गया कि खान का कंटेंट सांप्रदायिक तनाव भड़काने और धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाला है। परिषद ने पुलिस से भारतीय दंड संहिता और आईटी एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत तुरंत कार्रवाई की मांग की है।
शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी क्यों हुई
शर्मिष्ठा पनोली को कोलकाता पुलिस ने 30 मई की देर रात गुरुग्राम से गिरफ्तार किया था। इसके बाद उसे कोलकाता लाया गया और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पनोली की गिरफ्तारी एक वीडियो के आधार पर हुई, जिसमें उन्होंने मुस्लिम बॉलीवुड हस्तियों पर ऑपरेशन सिंदूर पर चुप्पी साधने को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं। इस वीडियो को बाद में हटा लिया गया और शर्मिष्ठा ने सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगी। हालांकि, उनकी गिरफ्तारी पर विवाद काफी बढ़ गया। कई भाजपा नेताओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया और उनकी रिहाई की मांग की। कोलकाता पुलिस का कहना है कि हेट स्पीच और अपमानजनक भाषा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में गलत नहीं समझा जाना चाहिए।