बोले हजारीबाग : इंटर्नशिप और सत्र की उलझन सुलझे तो छात्रों को मिले सुकून
झारखंड के राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय हजारीबाग में प्रशिक्षुओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जैसे कि इंटर्नशिप के लिए दूर भेजना, नामांकन प्रक्रिया में विलंब और विषयों में असमानता।...
झील रोड पर स्थित राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय हजारीबाग पूरे झारखंड में एक जाना-पहचाना नाम है। इसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी। तब से लेकर आज तक यहां से निकले प्रशिक्षु विभिन्न विद्यालयों में या अन्य सरकारी सेवा में योगदान दे रहे हैं। यहां के प्रशिक्षुओं को हजारीबाग से 50 किलोमीटर दूर इंटरर्नशिप के लिए भेजा जाता है। इससे खासकर छात्राओं को परेशानी उठानी पड़ती है। वहीं सत्र विलंब होने के कारण भी काफी दिक्कत होती है। प्रशिक्षुओं ने बोले हजारीबाग की टीम के साथ अपनी समस्याएं साझा की। हजारीबाग। राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय हजारीबाग में प्रतियोगिता परीक्षा के कारण नामांकन होता है।
इससे किसी विषय में जो पहले कोटा निर्धारित था, वह अब खत्म हो गया है। इसके कारण बहुत बार एक ही विषय के बहुत सारे एक ही तरह के विषय वाले विद्यार्थी आ जाते हैं। जबकि पहले यह होता था कि प्रत्येक विषय के 10-10 प्रशिक्षु लिए जाते थे। इस कारण हम लोग हर विषय के प्रशिक्षु यहां तैयार करते थे और उन्हें विभिन्न विद्यालयों में इंटर्न के रूप में भेजते थे। परंतु अब जब एक ही विषय के प्रशिक्षु ज्यादा चयनित हो जाते हैं, तो दूसरे विषय के बच्चों को नहीं भेज पाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर विज्ञान की सीट में अधिकतर गणित के विद्यार्थी चयनित हो जाते हैं, तो हम किसी विद्यालय में इंटर्नशिप के लिए जीवविज्ञान या रसायन विज्ञान के शिक्षक नहीं भेज पाएंगे, क्योंकि विज्ञान की सीट पर गणित के विद्यार्थी ही अधिक आ गए हैं। हर विषय का अपना एक निश्चित कोटा होने से यह होता था कि प्रत्येक विषय में निश्चित संख्या में प्रशिक्षुओं का दाखिला होता था। अभी अगर कला में 40 सीट हैं, तो पता चलता है कि 40 में से 25 या 30 प्रशिक्षु केवल भूगोल के आ गए। उस स्थिति में अर्थशास्त्र या नागरिक शास्त्र के लिए प्रशिक्षुओं की संख्या नहीं मिल पाती है। सत्र देर से आरंभ होता है और नियमित नहीं हो पाता है। यह समस्या प्रथम सेमेस्टर के प्रशिक्षुओं को ज्यादा झेलनी पड़ती है। उन्हें साल भर पढ़ने का मौका न मिलकर केवल सात या आठ महीने ही मिलते हैं, क्योंकि फॉर्म लेट से निकलता है और नामांकन की प्रक्रिया, प्रवेश परीक्षा आदि में दो-तीन महीने का समय बर्बाद हो जाता है। अंतिम साल तक जाते-जाते स्थिति ठीक हो जाती है, परंतु पहले सत्र के प्रशिक्षुओं को ज्यादा कठिनाई होती है। आधारभूत संरचना की कोई विशेष कमी नहीं है, परंतु कुछ विषयों के शिक्षकों की कमी है, जिन्हें जल्द ही भर लिया जाएगा। नई नीति के तहत 16 शिक्षक पद डबल यूनिट के आधार पर स्वीकृत हैं। चूंकि यह सरकारी शिक्षण संस्थान है और इस तरह के केवल चार संस्थान ही झारखंड में हैं, इसलिए यहां दूर-दूर से छात्र नामांकन के लिए आते हैं। यहां झारखंड के हर जिले से प्रशिक्षु आते हैं। लड़कियों के लिए यहां छात्रावास की भी व्यवस्था है। जो लड़की बाहर की है और इस छात्रावास में रहना चाहती है, उन्हें लगभग नि:शुल्क छात्रावास उपलब्ध कराया जाता है। छात्रावास में खाना लड़कियां खुद बनाती हैं, मेस या इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर लड़कियां आपसी सहमति से मेस पर प्रस्ताव देंगी, तो भविष्य में खाने के लिए मेस की व्यवस्था हो सकती है। यहां सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्रशिक्षुओं को इस पाठ्यक्रम के तहत दो साल में दो बार कुल मिलाकर पांच महीने के लिए किसी विद्यालय में प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है। परंतु लड़कियों को दूर के प्रखंड के दूरस्थ उच्च विद्यालयों में भेज दिया जाता है। यहां लड़कियां हॉस्टल में रहती हैं। जो बाहर से आती हैं, उनके लिए उस गांव तक जाना और वहां से शाम को वापस लौटना बहुत कठिन होता है। प्रखंड मुख्यालय तक तो किसी तरह पहुंचा जा सकता है, किंतु वहां से किसी गांव में स्थित उच्च विद्यालय तक जाना बहुत मुश्किल होता है। मेधा परीक्षा से होता है नामांकन राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान झारखंड का एक प्रतिष्ठित संस्थान है जिसकी स्थापना 1982 में हुई थी। यह संस्थान पूरे झारखंड में अपनी गुणवत्तापूर्ण शिक्षक-प्रशिक्षण के लिए जाना जाता है। पहले यहां नामांकन मेरिट लिस्ट के आधार पर होता था, लेकिन अब मेधा परीक्षा के माध्यम से पारदर्शी प्रवेश होता है। इससे गुणवत्तापूर्ण चयन सुनिश्चित होता है, पर कोटा व्यवस्था खत्म होने से विषयों में असमानता आ गई है कई बार एक ही विषय के अधिक छात्र चयनित हो जाते हैं, जिससे दूसरे विषयों में प्रशिक्षु नहीं मिलते। विलंब से शुरू होता है सत्र संस्थान का शैक्षणिक सत्र विलंब से शुरू होता है, जिससे प्रथम सेमेस्टर के छात्रों को पूर्ण वर्ष का अध्ययन नहीं मिल पाता। नामांकन प्रक्रिया, फार्म भरना, प्रवेश परीक्षा आदि में दो-तीन महीने का समय व्यर्थ हो जाता है। इससे छात्र सिर्फ सात-आठ महीने की पढ़ाई कर पाते हैं। अंतिम वर्ष तक यह स्थिति थोड़ी सामान्य हो जाती है, पर पहले सत्र के छात्र इससे प्रभावित होते हैं। हालांकि आधारभूत संरचना पर्याप्त है, लेकिन कुछ विषयों में शिक्षकों की कमी है, जिसे नई नीति के तहत जल्द ही भरा जाएगा। छात्राओं को होती है ज्यादा दिक्कत प्रशिक्षुओं को दो वर्षों में कुल पांच माह की इंटर्नशिप करनी होती है, लेकिन लड़कियों को दूर-दराज के भेजना कठिनाइयों भरा होता है। छात्रावास में रहने वाली लड़कियों के लिए गांवों तक पहुंचना, खासकर शाम को लौटना, बहुत कठिन होता है। प्रखंड मुख्यालय तक तो पहुंचा जा सकता है, लेकिन वहां से दूरस्थ स्कूलों तक आना-जाना मुश्किल है। गाड़ी बुक करने में अधिक खर्च होता है। केवल दो प्रशिक्षुओं को एक विद्यालय में भेजने के नियम के कारण भी वाहन साझा करना संभव नहीं होता। नजदीक के संस्थानों में इंटर्नशिप की व्यवस्था हो हजारीबाग जिले में कई शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान हैं। जिन छात्रों का संस्थान जिस प्रखंड के नजदीक हो, उन्हें उसी क्षेत्र के स्कूलों में इंटर्नशिप दी जाए। जिला मुख्यालय स्थित संस्थान के छात्रों को 50-60 किलोमीटर दूर विद्यालयों में भेजना व्यावहारिक नहीं है। अकेली लड़कियों को इतनी दूर भेजना सुरक्षित भी नहीं है। यदि प्रशिक्षुओं को समीपवर्ती विद्यालयों में भेजा जाए तो प्रशिक्षण प्रक्रिया अधिक प्रभावी और सुरक्षित हो सकती है। साथ ही, छात्रों को शिक्षा के साथ अन्य क्षेत्रों की जानकारी के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेने का अवसर मिलता है। संस्थान में पढ़नेवाली महिला प्रशिक्षुओं ने नजदीकी विद्यालयों में ही इंटर्नशिप की मांग है। योजनाओं का मिलता है लाभ संस्थान छात्रों से बहुत ही मामूली फीस लेता है मात्र ₹500 प्रतिमाह। पात्र छात्रों को छात्रवृत्ति व अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। पर्यावरण के प्रति जागरूकता के लिए हर छात्र से एक वृक्ष लगवाया जाता है। विवाह की सूचना देने पर प्रशिक्षु दंपत्ति को भी वृक्ष उपहार में दिया जाता है। यह मैती योजना जैसी पहल संस्थान की विशिष्टता को दर्शाती है। अब तक प्रशिक्षुओं द्वारा हज़ारों वृक्ष लगाए जा चुके हैं। इन विशेष पहलों और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण के कारण यह संस्थान राज्य के सबसे प्रभावशाली शिक्षक प्रशिक्षण केंद्रों में से एक बन सकता है। समस्याएं 1. प्रशिक्षुओं को जिला मुख्यालय से 50-60 दूर विद्यालय प्रशिक्षण के लिए भेज दिया जाता है। 2. प्रथम सेमेस्टर में नामांकन की प्रक्रिया लंबी चलने में पढ़ने का बहुत कम समय मिलता है। 3. हर विषय का कोटा खत्म होने से एक विषय के ही ज्यादा प्रशिक्षु का दाखिला हो जाता है। 4. महिला छात्रावास तो है पर मेस नहीं है। लड़कियां अपना खाना स्वयं बनाती है। 5. सीटों की संख्या बढने से ज्यादा प्रशिक्षुओं को कम कीमत पर ही शिक्षक प्रशिक्षण मिल जाता है सुझाव 1. महिला प्रशिक्षुओं को सदर प्रखंड या 20 किलोमीटर के अंदर के विद्यालय में भेजा जाए। 2. सत्र का समय शुरू हो ताकि हर सेमेस्टर के बच्चों को पढने का उचित समय मिल सके। 3. पहले की तरह हर विषय का कोटा नियत होना चाहिए, जिससे प्रशिक्षुओं को सुविधा हो। 4. लड़कियों के सहमती और अंशदान से मेस की जल्द शुरुआत करनी चाहिए। 5. सरकारी शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय हर जिले में एक होना चाहिए। इनकी भी सुनिए राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय से संबंधित जो भी मुद्दे हमारे ध्यानाकर्षण में आएंगे हम उनका त्वरित समाधान अपने स्तर से या वरिष्ठ अधिकारियों के अनुमति के कर देंगे। इस शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान के गुणवत्ता और श्रेष्ठता के साख को बरकरार रखा जाएगा। - प्रवीण कुमार, प्रभारी प्राचार्य सह डीइओ ,हजारीबाग पहले जेसीईआरटी रांची के माध्यम से इनटर्नशिप के लिए विद्यार्थियों के नाम भेजे जाते थे, इससे उन्हें दूरी का अंदाजा नहीं हो पाता था, लेकिन अब जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में कमेटी बनायी गयी है। इसकी सहमति से ही विद्यार्थियों के नाम का आवंटन होना सुनिश्चित किया गया है। इस बार से संभवत: इस समस्या का समाधान होने की संभावना है। -डॉ मृत्युजंय प्रसाद , शिक्षा शास्त्र विभाग विभावि प्रशिक्षुओं ने कहा- संस्थान में मेस की व्यवस्था हो हमारा सत्र समय पर शुरू नहीं होता है, जिससे पहले साल की पढ़ाई काफी प्रभावित होती है। सात-आठ महीने में कोर्स पूरा करना चुनौतीपूर्ण होता है। नामांकन प्रक्रिया समय पर हो से सुविधा होगा। -ब्यूटी टोपनो इंटर्नशिप के लिए हमें बहुत दूर के विद्यालयों में भेजा जाता है, जो लड़कियों के लिए बहुत कठिन होता है। हॉस्टल में रहकर सुबह गांव के स्कूल तक पहुंचना और वापस लौटना जोखिम भरा है। -चंदा बाखला संस्थान अच्छा है लेकिन भोजन की व्यवस्था नहीं है। हॉस्टल में रहकर खुद खाना बनाना पड़ता है। यदि एक सामूहिक मेस की शुरुआत हो जाए तो हम ज्यादा समय पढ़ाई व गतिविधियों में दे सकेंगे। -सुदामा कुमारी नामांकन प्रक्रिया में प्रतियोगिता से चयन होता है, जो पारदर्शिता लाता है, लेकिन इससे विषयों में असंतुलन हो गया है। एक ही विषय के कई छात्र आ जाते हैं और दूसरे विषय में कमी हो जाती है। -प्रियंका हेमारम यहां पढ़ाई के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन भी होता है, जो हमें आत्मविश्वास और सामाजिक ज्ञान देता है। लेकिन समय की कमी के कारण कई छात्र इसमें भाग नहीं ले पाते। -नितेश कुमार प्रतियोगिता आधारित नामांकन से मेधावी छात्रं संस्थान में आ रहे हैं, जो स्वागतयोग्य है। लेकिन विषयों की असंतुलित संख्या के कारण प्रत्येक विद्यालय को विषयानुसार प्रशिक्षु नहीं भेज पाते। -डॉ प्रवीण कुमार शर्मा पहले सत्र के छात्रों को समय की सबसे ज्यादा कमी होती है। कोर्स को सीमित समय में पूरा कराना पड़ता है, जो अतिरिक्त दबाव डालता है। नामांकन प्रक्रिया को समयबद्ध करनी चाहिए। -विक्रांत कुमार संस्थान में कुछ विषयों के शिक्षक अब भी नियुक्त नहीं हुए हैं। सरकार ने 16 पद स्वीकृत किए हैं, जिन्हें जल्द भरा जाना चाहिए। स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति से शिक्षण प्रक्रिया और भावी और नियमित हो सकेगी। -संजीता कुमारी हम सब चाहते हैं कि जब हमें इंटर्नशिप पर भेजा जाए, तो एक ही विद्यालय में 2 से अधिक छात्र भेजे जाएं। कम से कम चार छात्र रहें तो हम मिलकर वाहन का खर्च बांट सकते हैं। -सूरज कुमार संस्थान में कुछ विषयों में शिक्षकों की कमी होने से उन विषयों की कक्षाएं नियमित नहीं हो पातीं। अगर हर विषय के लिए स्थायी शिक्षक हो जाएं तो पढ़ाई की गुणवत्ता और बढ़ जाएगी। -राकेश कुमार शर्मा संस्थान की पर्यावरणीय पहल बहुत प्रेरणादायक है। पौधरोपण से हमें प्रकृति से जुड़ाव होता है और यह जिम्मेदारी का भाव पैदा करता है। उपहार के रूप में पौधा देने की परंपरा भी बहुत अच्छी है। -सतीश सिंह हमारे बैच में भूगोल विषय के बहुत सारे छात्र हैं, लेकिन नागरिक शास्त्र और अर्थशास्त्र जैसे विषयों में प्रशिक्षु नहीं हैं। इससे इंटर्नशिप के समय कुछ विद्यालयों को उनके विषय के शिक्षक नहीं मिल पाते। -सौरव कुमार शर्मा
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