11,000 रुपये की पूंजी से शुरू हुआ पारंपरिक कारीगरी का कारोबार 1.10 करोड़ तक पहुंचा
महिला स्व-सहायता समूह महासंघ के बिपनी शोरूम में राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट), दिल्ली के युवा डिज़ाइनर्स ने 'नो लोकल विलेज क्राफ्ट पर्सन्स' कार्यक्रम के तहत गांवों के पारंपरिक कारीगरों...
कला मंदिर द्वारा संचालित महिला स्व-सहायता समूह महासंघ द्वारा संचालित बिपनी शोरूम में देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (निफ्ट), दिल्ली से आए कई युवा डिज़ाइनर्स ने अपने "नो लोकल विलेज क्राफ्ट पर्सन्स " कार्यक्रम के तहत बिपनी का दौरा किया और यहां की जमीनी हकीकत को करीब से समझा।यह सत्र इन नवोदित डिज़ाइनर्स के लिए ख़ास रहा। यहां उन्होंने देखा कि कैसे जनुमदिह, आमडूबि, खरसावां, इचागढ़, बेंध, कुईलिसुटा, जसकांदीह, सरजमदा, असनबोनी और धर्मटोला जैसे गांवों के पारंपरिक कारीगर वर्ष 2008 से कला मंदिर की पहल पर एकजुट हुए।कार्यक्रम के दौरान बताया गया कि कला मंदिर की यह यात्रा 1997 में शुरू हुई थी, जब घोड़ाबेगी के गुंथा लायक, जनुमदिह की सरला सरदार, खूंटी के लगनु माल्होर, और सरायकेला के कन्हैया लाल महाराणा जैसे कारीगरों के साथ एक छोटे से प्रयास की शुरुआत हुई थी।
मात्र ₹11,000 की पूंजी से शुरू हुआ यह प्रयास आज ₹80 लाख से अधिक की पूंजी और ₹1.10 करोड़ (मार्च 2024) के टर्नओवर तक पहुंच गया है।
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