सरना आदिवासियों की परंपरा-व्यवस्था सनातनी व्यवस्था से अलग
रांची में हुए पाहन महासम्मेलन में आदिवासी समुदाय के नेताओं ने एकजुटता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि सरना और सनातन एक नहीं हैं और आदिवासियों को हिंदू कहने का विरोध किया। सम्मेलन में छह सूत्री प्रस्ताव...

रांची, वरीय संवाददाता। पाहन महासम्मेलन रविवार को दशमाईल सरना स्थल में हुआ। अध्यक्षता राम पाहन ने और संचालन अमर बाबू ने किया। पाहनों ने एक स्वर में कहा कि हम आदिवासी हैं। सरना सनातन एक नहीं है। सरना समुदाय के पुजारी पाहन होते हैं। समाज को महतो, मुंडा, पाईनभोरा, कोटवार संचालित करते हैं। हमारी धर्म-संस्कृति और परंपरा सनातनी व्यवस्था से अलग है। अतिथि के रूप में केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि जनजातीय सुरक्षा मंच आदिवासियों को हिंदू कहना बंद करे, अन्यथा मंच से जुड़े आदिवासियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। पड़हा समन्वय समिति भारत के अध्यक्ष राणा प्रताप उरांव ने कहा कि समाज के अगुवा पाईनभोरा, पाहन, मुंडा-कोटवार ही समाज के रक्षक हैं।
समाज को एकजुट करना है। बाबा भीमराव आंबेडकर का संदेश है जो समाज शिक्षित, संगठित और संघर्ष करेगा, वहीं बचा रहेगा। इसलिए हमें बाबा साहेब को याद कर सीख लेने की जरूरत है। इसी क्रम में अजीत उरांव, जुरा पाहन, जगदीश पाहन, पड़हा राजा सोमा मुंडा, पड़हा संयोजक महादेव मुंडा, डॉ परमेश्वर भगत, निकोलस एक्का, नूतन कच्छप, अमृता मुंडा, अजय तिग्गा ने भी क्रमवार संबोधित किया। इस दौरान छह सूत्री प्रस्ताव पारित किए गए। इसमें सरना-सनातन एक नहीं है, हम आदिवासी प्राकृति के पुजारी हैं, आदिवासी हिंदू नहीं है। धार्मिक सामाजिक व ग्राम की सामुदायिक भूमि पहाड़, डोंगरी, चारागाह, जंगल, पतरा-नदी, नाला को संरक्षित व सुरक्षित किया जाए।
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