20 साल पहले शरीर देने लगता है डिमेंशिया के संकेत, दिखाई देते हैं ये लक्षण
हमारी दुनिया में हम से जुड़ी क्या खबरें हैं? हमारे लिए उपयोगी कौन-सी खबर है? डिमेंशिया से लेकर बाल विवाह का दर्द और ऑपरेशन सिंदूर, तक किस उपलब्धि से हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठा है और किस समस्या से निपटने की आज भी जरूरत है? ऐसी तमाम जानकारियां हर सप्ताह आपसे यहां साझा करेंगी, जयंती रंगनाथन।

विश्व भर में वृद्धावस्था में भूलने यानी डिमेंशिया की बीमारी 17 प्रतिशत की दर से हर साल बढ़ती जा रही है। डेली मेल में प्रकाशित इस खबर के अनुसार इस बीमारी की आहट शरीर में लगभग बीस साल पहले शुरू हो जाती है। यूनवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया में हुए एक ताजा अध्ययन के अनुसार मस्तिष्क के उस हिस्से में जिसका काम चीजों को याद रखना होता है, वहां कुहासा-सा पड़ने लगता है। इसका सबसे पहला लक्षण है, आप जाना-पहचाना रास्ता भूलने लगते हैं। एक या दो क्षण आपका मस्तिष्क उत्तर ना दे कर सुन्न पड़ जाता है। इसके बाद आपको याद आ जाता है कि आपको कहां जाना है। हो सकता है कि समय के साथ आपकी यह दिक्कत बढ़ने लगे। महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 14 फीसदी अधिक यह समस्या होती है। इसके बाद भाषा में या बोलने में समस्या आने लगती है। बोलते-बोलते एक शब्द याद ना रहना, चलते-चलते पैर का अटक जाना जैसे संकेत भी आगामी बीमारी को चेताते हैं। इस अध्ययन से जुड़ी न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर मारियानो गैबिटो कहती हैं, ‘अगर आपको अपने आप में यह संकेत नजर आने लगें तो आप अभी से सावधान होकर अपनी आने वाली बीमारी पर काम कर सकते हैं। इसमें मस्तिष्क को ऊर्जा देने वाला खानपान, गतिविधियां और शरीर को सेहतमंद रखना जैसे उपाय कारगर साबित होते हैं।’
नौ साल की उम्र की लड़कियों का निकाह?
आपकी घर की बड़ी-बूढ़ियों ने जब आपको अपने बचपन की कहानियां सुनाई होंगी, तो यह भी बताया होगा कि कैसे उनके जमाने में लड़कियों की शादी बहुत छोटी उम्र में ही हो जाती थी। यानी पीरियड आने से पहले ही घरों में लड़कियों की शादी की बात चलने लगती थी और बारह साल की उम्र में उनकी शादी हो जाती थी। मेरी नानी और दादी बाल विवाह की पीड़ा और त्रासदी से गुजरी थीं। लेकिन मेरी मां के समय में लड़कियों की शादी अठारह से इक्कीस साल के बीच होने लगी। हमारे देश में अब शादी का अंदाज बदलने लगा है। अब लड़कियों से उनकी पसंद पूछी जाती है। लड़कियां आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने निर्णय खुद ले रही हैं। लेकिन एक देश ऐसा भी है जो विकसित होने के बाद अब पीछे की तरफ लौट रहा है। मैं बात कर रही हूं इराक की। हाल ही में बहुत समय से लंबित वो कानून पारित हो गया है, जिसमें अठारह के बजाय नौ साल की उम्र की लड़कियों का निकाह करने का प्रावधान है। इस कानून ने औरतों से उनको पहले दिए कई अधिकार छीन लिए हैं। इराक की संसद जिसमें रूढ़िवादी शिया मुस्लिम दलों की अधिकता है, काफी अर्से से महिलाओं के अधिकारों को लेकर नया कानून पारित करने में लगी थी। पुराने कानून को लॉ 188 के नाम से भी जाना जाता है और इसे 1959 में जब पेश किया गया था, तब इसे मध्य पूर्व के सबसे प्रगतिशील कानूनों में से एक माना गया था। इराकी महिलाएं इस नए कानून का प्रतिरोध कर रही हैं। महिलाएं अपनी बेटियों को ले कर भयभीत हैं। वहां की महिलाओं को एक बार फिर से लड़ना होगा अपनी अस्मिता और अधिकारों के लिए। महिला होने के नाते हमें उनका साथ देना चाहिए।
ऑपरेशन सिंदूर
नेशनल डिफेंस अकादमी यानी एनडीए से हाल में 17 महिला कैडेट प्रशिक्षित हो कर निकली हैं, जो जल्द ही भारतीय फौज का हिस्सा होंगी। 2022 में शुरू हुए इस प्रशिक्षण में 300 पुरुष कैडेट भी हैं। भारतीय फौज में काम करने की इच्छा लिए एनडीए में आई युवतियां इस समय खूब उत्साहित हैं। एक अखबार में छपे लेख में उन युवतियों के साक्षात्कार हैं। देश के विभिन्न भागों से आई ये युवतियां एक धागे से बंधी हैं, वो धागा है देश प्रेम का। इस प्रशिक्षण को पूरा करने वाली इशिता कहती हैं, ‘यहां आने से पहले मैं अंतर्मुखी और छुई-मुई टाइप लड़की थी। लेकिन पिछले दो सालों के कठिन प्रशिक्षण के बाद अब मैं एकदम बदल गई हूं। मैंने यहां दोस्त बनाएं हैं, मुझमें गजब का आत्मविश्वास आ गया है। देश के लिए लड़ने का माद्दा ही कुछ ऐसा है कि हम सभी लड़कियां हमेशा उत्साहित रहती हैं।’ हाल ही में हम सबने ऑपरेशन सिंदूर देखा और अपने-अपने घरों से ही सही, अपने सिपाहियों का जज्बा महसूस किया। यह प्रशिक्षण इस बात को भी इंगित करता है कि ऐसा कोई काम नहीं है जो लड़कियां नहीं कर सकतीं। अगर आप भी एनडीए में प्रशिक्षण ले कर देश सेवा करना चाहती हैं, तो इस केंद्र की साइट पर जाकर तमाम जानकारियां जुटा सकती हैं।
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