संविधान लागू होने के 75 साल बाद भी पुलिस को मौलिक अधिकार नहीं पता, HC में कुणाल कामरा
कुणाल कामरा के वकील ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल को मिल रही जान से मारने की धमकियों के बावजूद मुंबई पुलिस पूछताछ के लिए उनकी उपस्थिति पर जोर दे रही है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए ‘स्टैंड-अप कॉमेडियन’ कुणाल कामरा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने संबंधी याचिका पर बुधवार को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और कहा कि तब तक उन्हें (कामरा को) गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस सारंग कोतवाल और जस्टिस एस मोदक की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट को बुधवार को बताया गया था कि मुंबई पुलिस कुणाल कामरा को मिल रही जान से मारने की धमकियों के बावजूद शहर में उनसे शारीरिक रूप से पूछताछ करने पर जोर दे रही है। इस पर अदालत ने पुलिस से कहा कि इस मामले में आदेश पारित होने तक कामरा को गिरफ्तार न किया जाए। कामरा के वकील नवरोज सीरवई ने मुंबई पुलिस की मंशा पर भी सवाल उठाए और टाइलाइन का जिक्र किया।
प्राथमिकी में दर्ज बातों से कोई अपराध बनता ही नहीं: सीरवई
सीरवई ने कहा कि प्राथमिकी में जो बातें दर्ज की गई हैं, उससे कोई अपराध नहीं बनता। बावजूद इसके पुलिस को कामरा को गिरफ्तार करने की बहुत जल्दी मची है। सीरवई ने प्राथमिकी दर्ज करने की हड़बड़ी का भी उल्लेख किया और कहा कि 23 मार्च को रात 9.30 बजे उन्हें वीडियो क्लिप मिली और 10.45 बजे तक शिकायत दर्ज हो गई और 11.55 बजे तक उस पर FIR भी दर्ज हो गई। उन्होंने कहा कि जब खुले आम कामरा को धमकी दी जा रही है, काट डालने की धमकी दी जा रही है और पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं, तब पुलिस कामरा की शारीरिक उपस्थिति पर इतना जोर क्यों दे रही है?
75 साल बाद भी मौलिक अधिकारों से बेपरवाह है पुलिस
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सीरवई ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के मामले में हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कविता पढ़ने की वजह से उन पर भी कोई अपराध नहीं बनता था। सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में गुजरात पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी। उन्होंने कहा कि धमकियों के बावजूद शारीरिक उपस्थिति के लिए समन जारी करना, उनके बुजुर्ग माता-पिता को परेशान करना, ये कुछ ऐसी हरकते हैं, जिससे साबित होता है कि संविधान लागू होने के 75 साल बाद भी पुलिस को मौलिक अधिकारों की न तो जानकारी है और न ही उसकी परवाह है।
कामरा ने अपनी याचिका में दावा किया है कि उनके खिलाफ शिकायतें उनके भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कोई भी पेशा और व्यवसाय करने के अधिकार तथा संविधान के तहत प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं। तमिलनाडु के निवासी कामरा को पिछले महीने मद्रास उच्च न्यायालय से इस मामले में अंतरिम ट्रांजिट अग्रिम जमानत मिली थी। तीन बार समन भेजे जाने के बावजूद कामरा मुंबई पुलिस के समक्ष पूछताछ के लिए पेश नहीं हुए।
बता दें कि मुंबई के एक कॉमेडी शो के दौरान शिंदे के बारे में परोक्ष रूप से ‘गद्दार’ टिप्पणी करने के आरोप में खार थाने में कामरा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। 36 वर्षीय कामरा ने शिवसेना विधायक की शिकायत पर दर्ज प्राथमिकी के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया है। उनके खिलाफ अन्य थानों में भी शिकायतें दर्ज हैं। (एजेंसी इनपुट्स के साथ)