यह तो डराने वाला कदम है... अब सुप्रीम कोर्ट के वकील और ED क्यों आमने-सामने?
दातार ने ED अफसरों से कहा है कि वकीलों को उनके मुवक्किलों से जुड़ी जांच के लिए नहीं बुलाया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि वकीलों को अपने मुवक्किलों को दी गई कानूनी सलाह का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय हाल के कुछ महीनों में अपनी कार्यशैली की वजह से कई बार सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आ चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स (SCAORA) ने प्रवर्तन निदेशालय की एक कार्रवाई पर ना सिर्फ आपत्ति जताई है बल्कि एक बयान जारी कर ईडी के इस एक्शन के तहत छिपे निहितार्थ को भी उजागर किया है। दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार को हाल ही में एक समन जारी किया है। इस पर SCAORA ने आपत्ति जताते हुए एक बयान जारी किया है, जिसमें कानूनी पेशेवरों के लिए चिंता जताई गई है।
16 जून को SCAORA के मानद सचिव निखिल जैन द्वारा हस्ताक्षरित बयान में ED की कार्रवाई को अनुचित करार दिया गया है और कहा गया है कि यह कानूनी पेशे और कानून के शासन के कामकाज को प्रभावित करने वाली प्रवृत्ति है, जो "जांच के दायरे से बाहर" है। SCAORA ने ED की ऐसी प्रवृति पर गहरी चिंता जताई है।
ED की कार्रवाई कैसे अनुचित?
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बयान में कहा गया है, "दातार एक सम्मानित वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, जिनकी ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। उन्होंने पेशेवर आचरण और कानूनी नैतिकता के उच्चतम मानकों को लगातार बनाए रखा है।" SCAORA ने कहा कि ED की कार्रवाई कानूनी सलाह को आपराधिक मिलीभगत करार दे रही है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। बयान में कहा गया है कि ईडी का यह दृष्टिकोण संवैधानिक रूप से अस्थिर और कानूनी रूप से अनुचित है।
कानूनी परामर्श लेने के अधिकार पर हमला
बयान में कहा गया है कि इस तरह की कार्रवाइयों से कानूनी सलाहकारों की स्वतंत्रता और नागरिकों के बिना किसी डर के कानूनी प्रतिनिधित्व के संवैधानिक अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। एसोसिएशन ने कहा, “यह कदम बड़े पैमाने पर कानूनी समुदाय को एक भयावह संदेश भेजता है और प्रत्येक नागरिक के बिना किसी डर केा भय के स्वतंत्र कानूनी परामर्श प्राप्त करने के मूलभूत अधिकार को खतरे में डालता है।”
ED को वापस लेना पड़ा समन
लोकतांत्रिक कामकाज में कानूनी पेशे की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, SCAORA ने कहा, "न्यायपालिका की स्वतंत्रता और बार की स्वतंत्रता हमारे संवैधानिक लोकतंत्र के दो स्तंभ हैं। निर्भीक और स्वतंत्र अधिवक्ताओं के बिना अदालतों का प्रभावी संचालन असंभव है।" SCAORA ने कहा कि वह "एजेंसियों द्वारा कार्यकारी शक्ति के मनमाने प्रयोग के खिलाफ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराता है।" इस बीच, ईडी ने दातार को जारी किया समन वापस ले लिया है।
क्या है मामला?
बता दें कि ईडी ने दातार को यह समन केयर हेल्थ इंश्योरेंस द्वारा रेलिगेयर एंटरप्राइजेज की पूर्व चेयरपर्सन रश्मि सलूजा को दिए गए कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ईएसओपी) की जांच के सिलसिले में जारी किया है। दरअसल, दातार ने सलूजा को कानूनी सलाह दी थी। कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना अब ईडी और भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDA) की समानांतर जांच का विषय है। एजेंसी इस बात की जांच कर रही है कि क्या 2.27 करोड़ से अधिक ईएसओपी - जिनकी कीमत ₹250 करोड़ से अधिक है - का जारी होना विनियामक मानदंडों का उल्लंघन था या वित्तीय अनियमितता से जुड़ी एक बड़ी योजना का हिस्सा था।