Political Battle Over NEP in Parliament Is BJP Caught in DMK Trap Tamil vs Hindi हिंदी के बहाने तमिल भावनाओं को भुनाने की कोशिश? कैसे डीएमके की चाल में उलझी बीजेपी, India Hindi News - Hindustan
Hindi Newsदेश न्यूज़Political Battle Over NEP in Parliament Is BJP Caught in DMK Trap Tamil vs Hindi

हिंदी के बहाने तमिल भावनाओं को भुनाने की कोशिश? कैसे डीएमके की चाल में उलझी बीजेपी

  • इस पूरे मुद्दे ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भीतर भी कुछ नेताओं में यह चिंता पैदा कर दी कि कहीं यह डीएमके के लिए एक सुनहरा मौका न बन जाए।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 11 March 2025 08:04 AM
share Share
Follow Us on
हिंदी के बहाने तमिल भावनाओं को भुनाने की कोशिश? कैसे डीएमके की चाल में उलझी बीजेपी

संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण सोमवार को शुरू हुआ। इस दौरान राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 और इसके तीन-भाषा फॉर्मूले को लेकर केंद्र और तमिलनाडु की द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) सरकार के बीच नोकझोंक ने सियासी माहौल को गर्मा दिया। लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और डीएमके सांसदों के बीच हुई तीखी बहस से लोकसभा में व्यवधान पैदा हो गया। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को तमिलनाडु के सांसदों के विरोध के बाद अपने बयान से एक शब्द वापस लेना पड़ा। इस पूरे मुद्दे ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के भीतर भी कुछ नेताओं में यह चिंता पैदा कर दी कि कहीं यह डीएमके के लिए एक सुनहरा मौका न बन जाए।

संसद में हंगामा और डीएमके का विरोध

सोमवार को लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान डीएमके सांसद टी. सुमति ने एक सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि एनईपी का विरोध करने के कारण तमिलनाडु को करीब 2,000 करोड़ रुपये की शिक्षा निधि से वंचित किया गया है। जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने डीएमके सरकार पर "बेईमानी" और "छात्रों के भविष्य के साथ राजनीति" करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने शुरू में पीएम-श्री स्कूल योजना के लिए सहमति जताई थी, लेकिन बाद में यू-टर्न ले लिया। प्रधान ने यह भी कहा कि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश जैसे गैर-बीजेपी शासित राज्य एनईपी को स्वीकार कर चुके हैं, लेकिन तमिलनाडु राजनीतिक कारणों से इसका विरोध कर रहा है।

इसके जवाब में डीएमके सांसदों ने सदन के बीच में आकर नारेबाजी शुरू कर दी और प्रधान के बयानों को "झूठा" करार दिया। डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा, "शिक्षा मंत्री ने हमें और तमिलनाडु के लोगों को 'असभ्य' और 'अलोकतांत्रिक' कहा, जो बेहद आपत्तिजनक है। हमने कई बार केंद्र को स्पष्ट किया है कि हम एनईपी और तीन-भाषा नीति को स्वीकार नहीं कर सकते।" इस हंगामे के बाद लोकसभा को आधे घंटे के लिए स्थगित करना पड़ा।

बीजेपी में असहजता: डीएमके को फायदा?

एनईपी पर यह टकराव जहां डीएमके के लिए तमिल अस्मिता और भाषाई गौरव का मुद्दा बन गया है, वहीं बीजेपी के कुछ नेताओं को लगता है कि यह विवाद उनकी पार्टी के लिए उलटा पड़ सकता है। तमिलनाडु में पिछले लोकसभा चुनावों में कुछ सफलता हासिल करने वाली बीजेपी के लिए यह राज्य रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। लेकिन डीएमके ने इसे "हिंदी थोपने" का मुद्दा बनाकर तमिल भावनाओं को भुनाने की कोशिश शुरू कर दी है, जो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

इंडियन एक्सप्रेस ने भाजपा के एक सूत्र के हवाले से लिखा है कि जनसंख्या आधारित परिसीमन अभ्यास पर स्टालिन द्वारा 5 मार्च को बुलाई गई बैठक में राज्य में सक्रिय लगभग सभी दलों ने भाग लिया था, जिसमें डीएमके की मुख्य प्रतिद्वंद्वी और भाजपा की पूर्व सहयोगी एआईएडीएमके भी शामिल थी। उन्होंने कहा, "हमारे सामने एक अजीबोगरीब स्थिति है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर हमारे नेता तमिल संस्कृति और भाषा की प्रशंसा करने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं, लेकिन इस तरह का विवाद पार्टी को अलग-थलग कर देता है। इस मुद्दे पर हम तमिलनाडु में किसी भी पार्टी से समर्थन की उम्मीद नहीं कर सकते। स्टालिन ने गेंद हमारे पाले में डाल दी और हमने इसे गलत तरीके से संभाला।" इस मुद्दे पर केंद्रीय भाजपा की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।

करीबी भी नहीं देंगे साथ?

भाजपा एआईएडीएमके के साथ फिर से गठबंधन करने के खिलाफ नहीं है, दोनों पक्ष हाल के दिनों में इसके संकेत दे रहे हैं। हालांकि, अगर हिंदी मुद्दा जारी रहता है, तो तमिलनाडु स्थित पार्टी को भाजपा के साथ जाने में मुश्किल हो सकती है। भाजपा को अभी भी राज्य के एक बड़े वर्ग द्वारा “बाहरी”, उत्तर-केंद्रित पार्टी के रूप में संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। हालांकि, पार्टी के कुछ अन्य नेताओं का मानना है कि भाषा का यह भावनात्मक मुद्दा अब उतना प्रभावी नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता था। उनका कहना है कि बीजेपी को इस बहस को शिक्षा के व्यापक लक्ष्यों और विकास के मुद्दे की ओर मोड़ना चाहिए।

तमिलनाडु का रुख और स्टालिन का जवाब

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने सोमवार को प्रधान के बयान का खंडन करते हुए कहा, "हमने कभी भी पीएम-श्री योजना को स्वीकार नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले साल अगस्त में मुझे पत्र लिखकर इसकी पुष्टि की थी कि तमिलनाडु ने एनईपी को खारिज कर दिया है।" स्टालिन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र तमिलनाडु से एकत्रित करों के पैसे को रोककर राज्य के बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है।

डीएमके का कहना है कि एनईपी की तीन-भाषा नीति तमिल भाषा और संस्कृति पर हमला है। पार्टी इसे "हिंदी थोपने" की साजिश के रूप में पेश कर रही है, जिसे तमिलनाडु की जनता लंबे समय से खारिज करती आई है। दूसरी ओर, बीजेपी और केंद्र सरकार का तर्क है कि एनईपी सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और बहुभाषिकता को प्रोत्साहित करने के लिए है, न कि हिंदी को प्राथमिकता देने के लिए।

ये भी पढ़ें:जब उत्तर भारत के छात्र एक ही भाषा सीख रहे तो तमिलनाडु में 3 क्यों सीखें? DMK MP
ये भी पढ़ें:‘अहंकारी’ हैं प्रधान, संभालें अपनी जुबान; भाषा विवाद में अब क्यों भड़के स्टालिन

आगे क्या?

इस विवाद ने एक बार फिर केंद्र और राज्यों के बीच शिक्षा जैसे समवर्ती सूची के विषय पर तनाव को उजागर किया है। डीएमके सांसद कनिमोझी ने प्रधान के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दायर किया है, जिसमें उन्होंने शिक्षा मंत्री पर "अपमानजनक और भ्रामक" टिप्पणियों का आरोप लगाया है। उधर, बीजेपी इस मुद्दे को शांत करने की कोशिश में है, ताकि तमिलनाडु में उसकी बढ़ती पैठ को नुकसान न हो।

संसद में अगले कुछ दिनों में यह मुद्दा और गर्माने की संभावना है, क्योंकि डीएमके ने अन्य दक्षिणी राज्यों के साथ गठजोड़ कर इसे संघीय ढांचे और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व से जोड़ने की योजना बनाई है। बीजेपी के सामने अब चुनौती यह है कि वह इस बहस को कैसे संभाले, ताकि वह डीएमके के "हाथों में खेलने" से बच सके।