इतनी अर्जियां क्यों ले आए; वक्फ पर 100 से ज्यादा याचिकाओं पर बोले CJI, क्या फैसला
- बेंच ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा 5 अर्जियों पर ही विचार किया जा सकता है। अदालत ने साफ कहा कि आखिर इतनी अर्जियों की जरूरत ही क्या थी। बेंच का कहना था कि इस मामले में 5 अर्जियां ही बहुत थीं, जिन पर आसानी से विचार हो जाता। एक ही मसले पर 100 या 120 अर्जियों पर सुनवाई का कोई तुक नहीं है।

वक्फ संशोधन ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लगातार दूसरे दिन गुरुवार को भी हुई। इस दौरान अदालत ने केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए एक सप्ताह का वक्त दिया है तो वहीं नई नियुक्तियों पर भी तब तक के लिए रोक लगा दी। अदालत ने इस दौरान वक्फ ऐक्ट के खिलाफ दायर करीब 100 अर्जियों को लेकर भी आपत्ति जताई। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हम इतनी अर्जियों पर सुनवाई नहीं कर सकते। बेंच ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा 5 अर्जियों पर ही विचार किया जा सकता है। अदालत ने साफ कहा कि आखिर इतनी अर्जियों की जरूरत ही क्या थी। बेंच का कहना था कि इस मामले में 5 अर्जियां ही बहुत थीं, जिन पर आसानी से विचार हो जाता। एक ही मसले पर 100 या 120 अर्जियों पर सुनवाई का कोई तुक नहीं है।
बेंच ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 7 मई की तारीख तय की है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगली सुनवाई तक केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि उन्हें कुछ दस्तावेजों के साथ प्रारंभिक जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाए, जिसके बाद अदालत ने उन्हें वक्त दिया। बेंच ने कहा कि मामले में इतनी सारी याचिकाओं पर विचार करना असंभव है। हम केवल 5 पर ही सुनवाई करेंगे।
याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई के दूसरे दिन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि यदि किसी वक्फ संपत्ति का पंजीकरण 1995 के अधिनियम के तहत हुआ है तो उन संपत्तियों को नहीं छेड़ा जा सकता। वहीं केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को आश्वासन दिया कि वह अगली सुनवाई तक 'वक्फ बाय डीड' और 'वक्फ बाय यूजर' को गैर-अधिसूचित नहीं करेगा। सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 5 मई की तारीख तय की।
केंद्र ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया था, जिसे दोनों सदनों में तीखी बहस के बाद संसद से पारित होने के पश्चात पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई। राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 128 और विरोध में 95 सदस्यों ने मत दिया। वहीं, लोकसभा में इसके पक्ष में 288 तथा विरोध में 232 वोट पड़े। इस तरह यह दोनों सदनों से पारित हो गया था।