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चाइल्ड पोर्न देखना और स्टोर करना अपराध, SC ने सुनाया बड़ा फैसला; POCSO पर केंद्र को दी यह सलाह

  • सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा है कि चाइल्ड पोर्नोग्रफी देखना और स्टोर करना दोनों ही पॉक्सो ऐक्ट के तहत अपराध है। कोर्ट ने इससे जुड़े शब्द को पॉक्सो ऐक्ट में बदलने की भी सलाह दी है। S

Ankit Ojha लाइव हिन्दुस्तानMon, 23 Sep 2024 11:14 AM
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चाइल्ड पोर्न देखना और स्टोर करना अपराध, SC ने सुनाया बड़ा फैसला; POCSO पर केंद्र को दी यह सलाह

मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड पोर्न को डाउनलोड करना और देखना अपराध है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि POCSO ऐक्ट में चाइल्ड पोर्नोग्राफ की जगह 'चाइल्ड सेक्शुअली अब्यूजिव एंड एक्सप्लोइटेटिव मटीरियल(CSEAM) ' लिखने को कहा है। बता दें कि मद्रास हाई कोर्ट ने एक शख्स के खिलाफ यह कहते हुए केस रद्द कर दिया था कि उसने चाइल्ड पोर्न सिर्फ डाउनलोड किया है, किसी को  भेजा नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शब्दों में बदलाव करके भी समाज और न्याय व्यवस्था का ऐसे मामलों की गंभीरता की ओर ध्यान दिलाया जा सकता है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने चाइल्ड पोर्न को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि तकनीकी वास्तविकता और बच्चों की कानूनी सुरक्षा के बीच बैलेंस बनाना जरूरी है। बेंच ने कहा कि चाइल्ड पोर्न को CSEAM कहने से लीगल फ्रेमवर्क और समज में बच्चों के शोषण के खिलाफ लड़ने का एक नया दृष्टिकोण बनेगा।

बेंच ने 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने कहा था कि डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून से जुड़े गंभीर सवालों का जवाब देना जरूरी है। जनवरी 2024 में मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने 28 साल के एक शख्स को राहत देते हुए उसके खिलाफ आपराधिक मामला रद्द कर दिया था। युवक पर चाइल्ड पोर्न देखने और डाउनलोड करने का आरोप था। जस्टिस वेंकटेश ने कहा था कि केवल चाइल्ड पोर्न को देखना पॉक्सो और आईटी ऐक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है।

उनके मुताबिक अगर बच्चों को पोर्नोग्राफी में इस्तेमाल किया जाता है तो उसपर पॉक्सो ऐक्ट के तहत केस चलाया जा सकता है। वहीं जब बिना सीधे शामिल हुए केवल कोई चाइल्ड पोर्न देखता है तो उसपर आपराधिक मुकदमा चलाना सही नहीं है। हाई कोर्ट ने आईटी ऐक्ट के सेक्शन 67 बी का हवाला देते हुए कहा था कि आरोपी ने इस तरह की सामग्री ना तो पब्लिश की है और ना ही किसी को भेजी है। जब आरोपी ने किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्न के लिए नहीं किया है तो उसके खिलाफ अपराध साबित नहीं होता है। हालांकि यह कहा जा सकता है कि युवक का नैतिक पतन हो गया है। मार्च में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाई कोर्ट के इस आदेश की आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने जज की कानूनी समझ पर भी सवाल खड़े कर दिए थे। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि एक अकेला जज इस तरह की बात कैसे कह सकते हैं? यह तो भयावह है। अप्रैल में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डिजिटल कॉन्टेंट को लेकर भी जवाबदेही जरूरी है।

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