तहव्वुर राणा तो सौंप दिया, लेकिन डेविड हेडली पर क्यों मौन अमेरिका? अभी बाकी है मुंबई के जख्मों का हिसाब
- अमेरिका ने राणा को भारत प्रत्यर्पित कर दिया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि डेविड हेडली, जिसे इस हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है, अभी भी अमेरिका की जेल में क्यों है?

26 नवंबर 2008 की वह भयावह रात आज भी भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। मुंबई में हुए आतंकी हमले ने न केवल भारत को, बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। चार दिनों तक चले इस हमले में 166 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए। इस हमले की साजिश के दो प्रमुख नाम आज भी चर्चा में हैं- तहव्वुर हुसैन राणा और डेविड कोलमैन हेडली। अब, अमेरिका ने तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित कर दिया है, जो आज भारत पहुंचेगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि डेविड हेडली, जिसे इस हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है, अभी भी अमेरिका की जेल में क्यों है? उसे भारत क्यों नहीं सौंपा गया? आइए, इस पूरे घटनाक्रम को शुरू से आखिर तक तथ्यों के साथ समझते हैं।
मुंबई हमला: एक सुनियोजित साजिश की शुरुआत
26/11 मुंबई हमला कोई अचानक हुई घटना नहीं थी। यह पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की एक सुनियोजित साजिश थी, जिसमें ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) की भूमिका भी मानी जाती है। दस आतंकियों ने समुद्र के रास्ते मुंबई में प्रवेश किया और ताजमहल होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, नरीमन हाउस और अन्य स्थानों पर हमला बोला। हमले में शामिल नौ आतंकी मारे गए, जबकि एकमात्र जिंदा पकड़ा गया आतंकी अजमल कसाब था, जिसे 2012 में फांसी दे दी गई। लेकिन इस हमले के पीछे की साजिश को अंजाम देने वाले
असली मास्टरमाइंड अभी भी सजा से दूर थे। इस साजिश में दो नाम प्रमुखता से उभरे- डेविड कोलमैन हेडली और तहव्वुर हुसैन राणा। दोनों बचपन के दोस्त थे और दोनों का संबंध लश्कर-ए-तैयबा से था। हेडली ने हमले से पहले मुंबई की रेकी की थी, जबकि राणा ने उसे लॉजिस्टिक सपोर्ट और फंडिंग मुहैया कराई थी।
डेविड हेडली: साजिश का मास्टरमाइंड
डेविड कोलमैन हेडली का असली नाम दाऊद सईद गिलानी था। वह एक पाकिस्तानी-अमेरिकी नागरिक है, जिसका जन्म वाशिंगटन डीसी में एक पाकिस्तानी पिता और अमेरिकी मां के घर हुआ था। हेडली ने 2006 से 2008 के बीच कई बार भारत की यात्रा की और मुंबई के उन सभी स्थानों की रेकी की, जहां हमला होना था। उसने ताज होटल, नरीमन हाउस और अन्य जगहों की वीडियो बनाई, तस्वीरें खींचीं और लश्कर-ए-तैयबा को यह जानकारी दी। हेडली ने अपनी पहचान छिपाने के लिए तहव्वुर राणा की शिकागो स्थित कंपनी "फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज" का इस्तेमाल किया और खुद को एक बिजनेसमैन के रूप में पेश किया।
एक डील से बच गया हेडली
हेडली को अक्टूबर 2009 में शिकागो हवाई अड्डे पर उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वह डेनमार्क के एक अखबार पर हमले की साजिश रचने के लिए जा रहा था। पूछताछ में उसने मुंबई हमले में अपनी भूमिका कबूल की और तहव्वुर राणा का नाम लिया। लेकिन हेडली ने अमेरिकी जांच एजेंसियों के साथ एक डील कर ली- उसने लश्कर-ए-तैयबा और ISI के बारे में जानकारी देने के बदले में भारत को प्रत्यर्पित न करने की शर्त रखी। इस समझौते के तहत, 2010 में उसने सभी 12 आरोपों को स्वीकार किया, जिसमें मुंबई हमले की साजिश, हत्या और आतंकवाद को समर्थन देना शामिल था। जनवरी 2013 में उसे 35 साल की सजा सुनाई गई। वह अभी अमेरिका की एक अज्ञात जेल में सजा काट रहा है।
तहव्वुर राणा: हेडली का सहयोगी
तहव्वुर हुसैन राणा एक पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है। उसका जन्म पाकिस्तान में हुआ और उसने वहां की सेना में करीब 10 साल तक डॉक्टर के रूप में काम किया। बाद में वह कनाडा चला गया और नागरिकता हासिल कर ली। शिकागो में उसने एक इमिग्रेशन कंपनी शुरू की, जिसके जरिए उसने हेडली को भारत में रेकी के लिए वीजा और अन्य सुविधाएं मुहैया कराईं। राणा ने न केवल हेडली को लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया, बल्कि ISI और लश्कर के बीच संपर्क का जरिया भी बना। जांच में यह भी पता चला कि वह नवंबर 2008 में हमले से ठीक पहले मुंबई आया था और ताज होटल में ठहरा था।
राणा को भी अक्टूबर 2009 में अमेरिका में गिरफ्तार किया गया। 2011 में शिकागो की एक अदालत ने उसे लश्कर-ए-तैयबा को समर्थन देने और डेनमार्क में हमले की साजिश रचने का दोषी ठहराया, लेकिन मुंबई हमले में सीधी संलिप्तता के आरोप से बरी कर दिया। उसे 14 साल की सजा सुनाई गई, जो उसने 2020 में पूरी कर ली। कोविड-19 के कारण उसकी सजा जल्दी खत्म हुई और जून 2020 में उसे लॉस एंजिल्स में फिर से गिरफ्तार किया गया, क्योंकि भारत ने उसके प्रत्यर्पण की मांग की थी।
प्रत्यर्पण की लंबी लड़ाई
भारत ने 2011 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के जरिए राणा और हेडली के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इसमें आतंकवाद, हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप शामिल थे। भारत ने अमेरिका से दोनों के प्रत्यर्पण की मांग की, जो 1997 की भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि पर आधारित थी। लेकिन हेडली की डील के कारण उसका प्रत्यर्पण नामुमकिन हो गया। दूसरी ओर, राणा के प्रत्यर्पण के लिए भारत ने लगातार प्रयास जारी रखे।
मई 2023 में कैलिफोर्निया की एक अदालत ने राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी। कोर्ट ने माना कि भारत ने पर्याप्त सबूत पेश किए हैं, जो "संभावित कारण" स्थापित करते हैं कि राणा ने मुंबई हमले में अपराध किया। राणा ने इसके खिलाफ कई अपीलें दायर कीं, जिसमें उसने दावा किया कि भारत में उसे यातना का खतरा है और अमेरिका में पहले ही सजा काट चुके मामले में दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। लेकिन जनवरी 2025 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अंतिम अपील खारिज कर दी। फरवरी 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में राणा के प्रत्यर्पण की घोषणा की। आज, 10 अप्रैल 2025 को वह भारत पहुंच रहा है।
हेडली को क्यों नहीं सौंपा गया?
डेविड हेडली को भारत न सौंपे जाने की वजह उसकी अमेरिकी जांच एजेंसियों के साथ की गई डील है। इस समझौते में हेडली ने लश्कर-ए-तैयबा, ISI और अल-कायदा के खिलाफ महत्वपूर्ण जानकारी दी, जिसके बदले उसे प्रत्यर्पण से छूट मिली। अमेरिका के लिए हेडली एक "संपत्ति" बन गया।
क्या भारत ने डेविड हेडली के प्रत्यर्पण की मांग की?
भारत ने डेविड कोलमैन हेडली के प्रत्यर्पण की मांग कई बार की है। भारत ने 1997 की भारत-अमेरिका प्रत्यर्पण संधि के तहत हेडली के प्रत्यर्पण की मांग पहली बार 2010 में की थी, जब वह अमेरिका में गिरफ्तार हुआ और उसने अपनी संलिप्तता कबूल की। इसके बाद, भारत ने कई मौकों पर औपचारिक रूप से यह मांग दोहराई, जिसमें 2013 में उसकी सजा के बाद और 2017 में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) के जरिए ताजा अनुरोध शामिल हैं।
हेडली को जनवरी 2013 में अमेरिकी कोर्ट ने 35 साल की सजा सुनाई थी। हालांकि भारत ने तर्क दिया कि हेडली की सजा केवल छह अमेरिकी नागरिकों की हत्या के लिए थी, जबकि मुंबई हमले में 166 लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर भारतीय थे। इसलिए, भारत में उस पर अलग से मुकदमा चलाने की मांग की गई। लेकिन अमेरिका ने उसे भारत को नहीं सौंपा। हेडली के प्रत्यर्पण की संभावना अभी भी बहुत कम है। उसकी 2010 की डील के कारण अमेरिका ने बार-बार भारत के अनुरोध को खारिज किया है।
भारत-US प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 6 के तहत, अगर कोई व्यक्ति अनुरोधित देश (यहां अमेरिका) में उसी अपराध के लिए सजा पा चुका है, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। हेडली के मामले में, अमेरिका इसे "डबल जियोपार्डी" (दो बार सजा का खतरा) का आधार मानता है। हालांकि, भारत ने इस मांग को छोड़ा नहीं है। फरवरी 2025 में, जब अमेरिका ने तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की घोषणा की, तो भारत ने एक बार फिर हेडली के लिए आठ वांछित व्यक्तियों की सूची में उसका नाम शामिल किया। लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने संकेत दिया है कि हेडली की डील और उसकी खुफिया जानकारी की उपयोगिता के कारण उसका प्रत्यर्पण संभव नहीं है। वह अभी अमेरिका की एक अज्ञात जेल में अपनी 35 साल की सजा काट रहा है, जो 2048 में खत्म होगी।
आगे क्या?
राणा के भारत पहुंचने के बाद उसे NIA की हिरासत में लिया जाएगा। वह दिल्ली या मुंबई की जेल में रखा जा सकता है, जहां उस पर मुकदमा चलेगा। भारत में उस पर IPC की धारा 120B (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या) और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत केस दर्ज है। अगर दोषी पाया गया, तो उसे फांसी तक की सजा हो सकती है। वहीं, हेडली की सजा 2048 में खत्म होगी, जब वह 88 साल का होगा। उसका भारत आना अभी भी असंभव लगता है।
26/11 मुंबई हमले की साजिश में तहव्वुर राणा और डेविड हेडली की भूमिका एक कड़वी सच्चाई है। राणा का प्रत्यर्पण भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत है, लेकिन हेडली का अमेरिका में सुरक्षित रहना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में न्याय का पूरा होना है, या सिर्फ आधा सच? फिलहाल, भारत राणा के खिलाफ इंसाफ की उम्मीद कर रहा है, ताकि 26/11 के घावों पर कुछ मरहम लग सके क्योंकि मुंबई के जख्मों का हिसाब अभी भी बाकी है।