कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा? बंगले में लगी आग तो घर से निकला कैश भंडार, SC ने कर दिया ट्रांसफर
- इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस यशवंत वर्मा ने श्रम और औद्योगिक कानून, कॉर्पोरेट कानून, कराधान और संबंधित क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त की थी।

दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा अचानक सुर्खियों में आ गए हैं। दिल्ली स्थित उनके बंगले में आग लगने के बाद जब फायर ब्रिगेड की टीम आग बुझाने को पहुंची तो उसे भारी मात्रा में कैश घर से मिले। जब यह घटना घटी तो जस्टिस शर्मा दिल्ली से बाहर थे। यह खबर मिलते ही सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम हरकत में आया और उन्हें उनके मूल स्थान इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की अध्यक्षता कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश की है।
कैन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा?
जस्टिस यशवंत वर्मा ने अक्टूबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्च में न्यायधीश के रूप में शपथ ली थी। इससे पहले वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई महत्वपूर्ण पदों पर थे। वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में 13 अक्टूबर 2014 को अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए थे और 1 फरवरी 2016 को स्थायी न्यायधीश के रूप में पदोन्नत हुए थे। इसके बाद उन्हें 11 अक्टूबर 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया गया था।
जस्टिस वर्मा के आवासीय बंगले में लगी आग के बाद भारी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, जब आग लगी जस्टिस वर्मा दिल्ली में नहीं थे और उनके परिवार के सदस्यों ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को सूचित किया था। आग बुझाए जाने के बाद कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली। यह संदेह हुआ कि यह पैसे अवैध तरीके से रखे गए थे।
जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बीकॉम (ऑनर्स) किया और बाद में मध्य प्रदेश के रेवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने 8 अगस्त 1992 को वकील के रूप में पंजीकरण कराया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस यशवंत वर्मा ने श्रम और औद्योगिक कानून, कॉर्पोरेट कानून, कराधान और संबंधित क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त की थी। उन्होंने 2006 से इलाहाबाद हाईकोर्ट के विशेष वकील के रूप में भी कार्य किया था। इसके अतिरिक्त जस्टिस वर्मा ने 2012 से अगस्त 2013 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य स्थायी वकील के रूप में भी कार्य किया था, इससे पहले कि उन्हें कोर्ट द्वारा वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था।