विश्लेषण : संवाद की कमी और कलह से ‘आप’ में बढ़ रही निराशा, 4 महीने में तीसरा झटका
दिल्ली में पहले विधानसभा और फिर नगर निगम में सत्ता गंवाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) में कलह बढ़ती ही जा रही है। संगठन विस्तार से लेकर पंजाब चुनाव की तैयारियों में जुटी ‘आप’ के लिए एक साथ 15 पार्षदों का इस्तीफा एक बड़ा राजनीतिक झटका है।

दिल्ली में पहले विधानसभा और फिर नगर निगम में सत्ता गंवाने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) में कलह बढ़ती ही जा रही है। संगठन विस्तार से लेकर पंजाब चुनाव की तैयारियों में जुटी ‘आप’ के लिए एक साथ 15 पार्षदों का इस्तीफा एक बड़ा राजनीतिक झटका है। यह न सिर्फ संगठनात्मक तौर पर पार्टी को कमजोर दिखा रहा है, बल्कि पंजाब चुनाव में जुटे शीर्ष नेतृत्व पर भी सवाल खड़ा कर रहा है। ऐसे में राजनीतिक जानकार मानते हैं कि इस तरह नेताओं के जाने के बाद आप को अपनी कार्यशैली पर विचार करने की जरूरत है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद ‘आप’ ने देशभर में संगठन के स्तर पर कई बड़े बदलाव किए। दिल्ली के प्रदेश संयोजक को बदला। गुजरात, गोवा, छत्तीसगढ़ से लेकर पंजाब तक के प्रभारियों में फेरबदल किया। इतना ही नहीं, पंजाब में दोबारा सत्ता पर काबिज होने के लिए ‘आप’ का पूरा शीर्ष नेतृत्व दिल्ली को छोड़कर वहां की तैयारियों में लगा है, लेकिन जिस दिल्ली ने आप को खड़ा किया, वहां पार्टी को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है।
कार्यशैली पर सवाल उठाए : पार्षदों के जाने से ज्यादा उनके लगाए गए आरोपों ने एक बार फिर आम आदमी पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। ‘आप’ पार्षद मुकेश गोयल ने कहा कि वह नेता सदन थे, लेकिन एमसीडी में क्या होना है, उन्हें ही पता ही नहीं होता था। यह दर्शाता है कि शीर्ष नेतृत्व के साथ पार्टी नेताओं में संवाद की कमी है। ‘आप’ नेतृत्व पर यह आरोप पहली बार नहीं लगे हैं। विधानसभा चुनाव में भी जब कई ‘आप’ विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ा तो उन्होंने भी यही आरोप लगाया था। हालांकि, आम आदमी पार्टी इसे भाजपा की साजिश करार दे रही है। ‘आप’ का कहना है कि भाजपा के इशारे पर यह सबकुछ हो रहा है, जबकि खुद पार्टी छोड़ चुके पार्षदों ने ‘आप’ की कार्यशैली और निगम से जुड़े कामकाज को लेकर भी कई सवाल खड़े किए हैं।
मजबूत संगठन खड़ा करना चुनौती
दिल्ली में बीते चार महीने में ‘आप’ को तीसरा झटका लगा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव हार गए। एमसीडी की सत्ता हाथ से चली गई। अब 15 पार्षद एक साथ पार्टी छोड़ गए। ऐसे में लगातार हार के बाद शीर्ष नेतृत्व के सामने मजबूत संगठन को खड़ा करने की चुनौती थी। उसके उलट पार्षदों का जाना यह बताता है कि पार्टी में समन्वय व संवाद दोनों की कमी है। अब जबकि ‘आप’ पंजाब और अन्य राज्यों में विस्तार करने की कोशिश कर रही है, दिल्ली में ऐसे घटनाक्रम से संगठन के स्तर पर मजबूत ढांचे के बिना राष्ट्रीय राजनीति में पैर जमाना कठिन हो सकता है।