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डायलिसिस के लिए मरीजों को खाने पड़ रहे धक्के

कोरोना संक्रमण बेकाबू होने पर पहले से दूसरी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों...

Newswrap हिन्दुस्तान, गुड़गांवThu, 29 April 2021 11:40 PM
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डायलिसिस के लिए मरीजों को खाने पड़ रहे धक्के

कोरोना संक्रमण बेकाबू होने पर पहले से दूसरी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की मुश्किलें काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत डायलिसिस वाले मरीजों को हो रही है। संक्रमित होने के कारण उन्हें डायलिसिस कराने के लिए एक अस्पताल से दूसरे में चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इसके अलावा नॉन कोविड मरीज भी डायलिसिस के लिए भटक रहे हैं। हिन्दुस्तान ने गुरुवार को मरीजों की परेशानी को लेकर घंटी बजाई। मेरी 60 वर्षीय नानी किडनी के रोग से ग्रस्त हैं। नियमित अंतराल के बाद उनकी डायलिसिस होती है। इसके लिए बीते एक सप्ताह में उन्हें लेकर एक दर्जन अस्पताल के चक्कर लगाए, लेकिन अस्पतालों में पहले कोविड रिपोर्ट मांग रहे हैं। रिपोर्ट होने पर ही डायलिसिस करने को बोला जा रहा है। मरीज की पीड़ा कोई भी अस्पताल सुनने को तैयार नहीं है। पटौदी निवासी रिनेश ने अपना दर्द सांझा करते हुए यह बात बताई। रोजाना दर्जनों ऐसे मरीज डायलिसिस के लिए एक अस्पताल से दूसरे में भटकने को मजबूर हो रहे हैं। निजी अस्पतालों की मनमानी के आगे इनमें से किसी का भी जोर नहीं चल रहा है।

विश्वभर में मेडिकल हब के तौर पर पहचान बना चुके गुरुग्राम में 200 से ज्यादा छोटे-बड़े अस्पताल हैं। इनमें कई सुपरस्पेश्लिटी अस्पताल भी हैं। इनमें से 30 फीसदी अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा है, लेकिन कोरोना काल में यह सुविधा बिगड़ने लगी है। जिससे सबसे ज्यादा दिक्कत कोविड पॉजिटिव मरीजों को हो रही है। उनका समय पर डायलिसिस नहीं हो पा रहा है। जिले के चुनिंदा बड़े अस्पतालों को छोड़कर अधिकांश निजी अस्पतालों में कोविड संक्रमित मरीजों की अलग से डायलिसिस की व्यवस्था नहीं की गई है। मरीजों की डायलिसिस समय पर हो सके, इसके लिए उनकी तीमारदार सब जगह हाथ पैर मार रहे हैं। सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल में संक्रमित मरीजों के लिए एक मशीन अलग से आरक्षित की गई है, लेकिन वह मरीजों की बड़ती संख्या के आगे नाकाफी साबित हो रही है।

रिपोर्ट निगेटिव होने पर ही डायलिसिस

फोर्टिस, मेदांता, मैक्स जैसे कुछ अन्य बड़े कॉरपोरेट अस्पतालों को छोड़कर अन्य निजी अस्पतालों में संक्रमितों की डायलिसिस के लिए इंतजाम नहीं हैं। अस्पतालों में जो डायलिसिस मशीनें लगी हैं, उनसे केवल नॉन कोविड मरीजों की ही डायलिसिस की जा रही है। डायलिसिस के लिए मरीजों से पहले कोविड जांच रिपोर्ट मांगी जा रही है। रिपोर्ट निगेटिव होने पर ही मरीज की डायलिसिस की जा रही है। वहीं जिन मरीजों की रिपोर्ट कोविड पॉजिटिव है, उनके परिजनों को किसी दूसरे अस्पताल में डायलिसिस कराने को बोला जा रहा है। जिससे मरीजों के साथ उनके परिजन भी परेशान हैं।

डायलिसिस के लिए वेटिंग

सेक्टर-10 नागरिक अस्पताल में आठ बेड का डायलिसिस यूनिट है। संक्रमित मरीजों के लिए यहां एक ही डायलिसिस मशीन आरक्षित रखी गई है। ऐसे में अस्पताल में आने वाले संक्रमित मरीजों को डायलिसिस कराने के लिए इंतजार करना पड़ता है। मरीजों को प्रतीक्षा सूची में नाम लिखवाना पड़ता है। एक दिन में दो या तीन संक्रमित मरीजों की ही डायलिसिस हो पा रही है। वहीं एक मरीज संक्रमितों के लिए आरक्षित हो जाने से नॉन कोविड मरीजों के लिए भी अब डायलिसिस का इंतजार बढ़ गया है। ऐसे में जिन मरीजों की हालत ज्यादा गंभीर है, केंद्र में उन्हें प्राथमिकता दी जा रही है।

सोशल मीडिया पर मदद की गुहार

डायलिसिस न होने से परेशान मरीजों के तीमारदारों की ओर से इसकी व्यवस्था कराने के लिए सरकार और प्रशासन से मदद की गुहार भी लगातार लगाई जा रही है। राधिका पराशर ने जिला उपायुक्त को किए ट्वीट में लिखा कि सेक्टर-51 स्थित निजी अस्पताल में भर्ती उनके 58 वर्षीय मधुमेह ग्रस्त और कोविड पॉजिटिव मरीज को डायलिसिस की जरूरत है, लेकिन अस्पताल उनके वहां संक्रमितों के लिए डायलिसिस की व्यवस्था न होने की बात कहकर डायलिसिस नहीं कर रहा है। उन्होंने उपायुक्त से उनकी डायलिसिस की कहीं तुरंत व्यवस्था कराने की अपील की है। वहीं निशांत सैन ने बताया कि उनके पिता क्रॉनिक बीमारियों से पीड़ित हैं। साथ ही उन्हें कोविड भी हुआ है। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही है, लेकिन किसी भी अस्पताल में उनके लिए आईसीयू में डायलिसिस वाला बेड नहीं मिल रहा है। अपने पिता के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय सहित मुख्यमंत्री मनोहर लाल और जिला उपायुक्त से भी मदद मांगी है।

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