भारत एआई के उपयोग में आगे निकला, पर विशेषज्ञता में फिलहाल पीछे
हाल की ‘ट्रेंड्स: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिपोर्ट’ में कहा गया है कि भारत ने चैटजीपीटी का सबसे अधिक उपयोग किया है, जिसमें इसका हिस्सा 13.5 प्रतिशत है। रिपोर्ट में एआई तकनीक के विकास के लिए भारत की...

नई दिल्ली। हाल ही में जारी ‘ट्रेंड्स: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रिपोर्ट में तेजी से उभरते एआई तकनीक और इसके तेज विस्तार का जिक्र किया गया है। इसमें भारत का भी जिक्र है। इसमें कहा गया है कि एआई को अपनाने और उपयोग की प्रवृत्ति में भारत काफी आगे है लेकिन विशेषज्ञता के मामले में कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। इसके अलावा श्रम बाजार पर प्रभाव और नौकरियों के अवसर भी भारत में बन सकते हैं। चैटजीपीटी के इस्तेमाल में अमेरिका को पछाड़ा रिपोर्ट के अनुसार, भारत चैटजीपीटी का इस्तेमाल करने वाला सबसे बड़ा देश हो गया है। चैटजीपीटी यूजर्स में इसका हिस्सा 13.5 प्रतिशत हो गया है।
यह अमेरिका (8.9 प्रतिशत) और इंडोनेशिया (5.7 प्रतिशत) से अधिक है। इसका कारण भारत के 88.6 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, जो ज्यादातर स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। चैटजीपीटी हिंदी सहित भारत की छह प्रमुख भाषाओं को सपोर्ट करता है, जिससे इसका उपयोग और बढ़ा। वहीं, भारत डीपसीक ऐप के उपयोगकर्ताओं में 6.9% हिस्सेदारी के साथ तीसरे नंबर पर है। पहले स्थान पर चीन है जहां 33.9 प्रतिशत और दूसरे स्थान पर रूस है जहां 9.2 प्रतिशत यूजर हैं। कंपनियों पर कीमतें कम करने का दवाब चैटजीपीटी, गूगल का जेमिनी और पर्प्लेक्सिटी जैसे बड़े एआई प्लेटफॉर्म मुफ्त में मूल सुविधाएं देते हैं, जिसके कारण भारत में इनका इस्तेमाल ज्यादा है। लेकिन इनके प्रीमियम संस्करण की कीमत करीब 20 डॉलर (लगभग 1600 रुपये) प्रति माह है। अधिक उन्नत संस्करणों की कीमत 100 से 250 डॉलर (लगभग 8000 से 20,000 रुपये) प्रति माह तक जाती है जो भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए महंगी है। यह मूल्य निर्धारण वैश्विक स्तर पर तय किया गया है और स्थानीय क्रय शक्ति को ध्यान में नहीं रखता। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए कम कीमतें जरूरी हैं। रिपोर्ट कहती है कि एआई बाजार में प्रतिस्पर्धा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जिससे कीमतों को कम करने का दबाव बढ़ रहा है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि भविष्य में कीमतें कम होंगी या नहीं। आईटी के बजाए एआई कौशल की मांग में उछाल रिपोर्ट के अनुसार, पारंपरिक आईटी नौकरियों की तुलना में एआई-केंद्रित नौकरियों की मांग तेजी से बढ़ी है। जनवरी 2018 से अप्रैल 2025 तक अमेरिका में एआई से जुड़ी नौकरियों की मांग 448% बढ़ी, जबकि बिना एआई वाली आईटी नौकरियों में नौ फीसदी की गिरावट आई है। 2022 से 2024 के बीच एआई से जुड़ी नई वैश्विक नौकरियों में 200% की वृद्धि हुई। जहां तक भारत का सवाल है तो यहां आईटी कंपनियों के लिए बड़े बदलाव का संकेत है, जो कम लागत पर तकनीकी सेवाएं देकर बढ़ी हैं। अब उन्हें अपने कर्मचारियों को एआई में प्रशिक्षित करना होगा। हाल ही कई कंपनियों ने इसके लिए निवेश भी शुरू किया है। अमेरिकी टेक कंपनियों का भारी भरकम निवेश भारतीय कंपनियां अपने कर्मचारियों को कौशल प्रदान कर रही हैं, वहीं अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियां भारी निवेश कर रही हैं। वर्ष 2024 में माइक्रोसॉफ्ट, अल्फाबेट, अमेजन, और मेटा एआई डाटा सेंटर में कुल 228 अरब डॉलर (लगभग 19 लाख करोड़ रुपये) खर्च किए, जो पिछले साल से 55% ज्यादा है। पिछले दस सालों में इन कंपनियों का पूंजीगत खर्च 21% की दर से बढ़ा है। इन कंपनियों ने 2024 में अपनी आय का 13% अनुसंधान और विकास पर खर्च किया, जो दस साल पहले 9% था। इनके पास 443 अरब डॉलर (लगभग 37 लाख करोड़ रुपये) हैं, जिसका इस्तेमाल वे आक्रमक निवेश करने में कर रही हैं। इसके उलट भारतीय कंपनियों के पास अभी इतनी वित्तीय ताकत नहीं है, जिसके कारण भारत में एआई को लेकर थोड़ी निराशा देखी जा रही है। मूलत: अमेरिका और चीन की दौड़ रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि एआई तकनीक की वैश्विक दौड़ में अमेरिका सबसे आगे है और उसके बाद चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है। चीन ने सरकारी योजनाओं के तहत अपने एआई मॉडल जैसे डीपसीक, अलीबाबा का क्वेन और बाइडू का एर्नी विकसित किया है, जो अब अमेरिकी मॉडल्स के करीब प्रदर्शन कर रहे हैं वो भी कम लागत पर। चीन में एआई अब रणनीतिक क्षेत्रों जैसे युद्धक्षेत्र लॉजिस्टिक्स और साइबर ऑपरेशंस में इस्तेमाल हो रहा है, जिससे अमेरिका चिंतित है। भारत भी एआई मॉडल विकसित करने में जुटा रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यदि कोई देश किसी विशेष एआई प्लेटफॉर्म को अपनाता है तो वह भविष्य में भी उसी पर निर्भर रह जाएगा। इसलिए भारत सहित अन्य देश अपनी कंप्यूटिंग क्षमता बढ़ा रहे हैं। भारत खुद का एआई मॉडल विकसित कर रहा है ताकि वैश्विक निर्भरता को कम कर सके। इसी कड़ी में भारत-जीपीटी और एरावत (एआई रिसर्च एनालिटिक्स एंड नॉलेज असिमलेशन प्लेटफॉर्म) एआई मॉडल पर काम चल रहा है। इसके अलावा अन्य देश भी अपना मॉडल विकसित करने में जुटे हैं।
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