यह है मीना बाजार की रौनक, दस दिन में बिक गए एक लाख बकरे
दिल्ली की जामा मस्जिद के पास मीना बाजार में बकरीद से 10 दिन पहले बकरा मेला सजता है। इस साल यहां एक लाख से ज्यादा बकरे बिक चुके हैं, जिससे कारोबारी खुश हैं। बकरों की कीमत नस्ल, आकार और सुंदरता के आधार...

नई दिल्ली, वरिष्ठ संवाददाता। दिल्ली की जामा मस्जिद के पास बसा मीना बाजार हर साल बकरीद से 10 दिन पहले गुलजार हो जाता है। इसकी वजह है यहां लगने वाला 'बकरा मेला'। इस बार यहां दस दिन के भीतर एक लाख से ज्यादा बकरे बिक गए। बड़ी संख्या में बकरों की बिक्री से कारोबारी काफी खुश हैं। जामा मस्जिद के आसपास यूं, तो मुगलकाल से बकरों की मंडी सज रही है, लेकिन अब यहां का कारोबार आसपास के कई राज्यों से जुड़ गया है। साल-दर-साल यहां आने वाले कारोबारियों और खरीदारों की संख्या बढ़ रही है। राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड समेत कई राज्यों से लोग इस बार बकरे बेचने दिल्ली पहुंचे।
बकरा मंडी के पूर्व प्रधान हनीफ चौधरी का कहना है कि दिल्ली के कई इलाकों में भले ही बकरा बाजार लगने लगे हो, लेकिन मीना बाजार के पास बकरीद से 10 दिन पहले लगने वाला बकरा मेला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि दिल्ली की सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक जीवन का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। बकरा बेचने वाले कारोबारियों ने बताया कि इस साल दिल्ली में बकरा बाजार जितना अच्छा रहा, उतना बीते 30 साल में कभी नहीं रहा। जितने भी बकरे लेकर आए थे, सब बिक गए। साढ़े तीन लाख में बिका 'मासूम' शुक्रवार को जामा मस्जिद के पास लगे बकरा मेले में अरबी नस्ल का बकरा मासूम साढ़े तीन लाख में बिका। इस बकरे के कान बेहद लंबे और खूबसूरती देखने लायक थी। खरीदार ने बताया कि बाजार में बकरे तो 20-25 हजार में भी मिल रहे थे, लेकिन उन्होंने इसकी खूबसूरती देखकर ही उसकी इतनी कीमत लगाई है। कुर्बानी के लिए सबसे खूबसूरत बकरे की तलाश कई दिन से कर रहे थे। आकार, नस्ल और सुंदरता से तय होती है कीमत करीब 30 साल से बकरा मंडी में काम करने वाले कारोबारी इरशाद ने बताया कि बकरों की कीमत उनकी नस्ल, आकार और सुंदरता से तय होती है। इसके पीछे मान्यता है कि अल्लाह को सबसे खूबसूरत चीज की कुर्बानी दी जानी चाहिए। इसीलिए कुर्बानी के लिए बाजार में सबसे खूबसूरत बकरे को तलाशते हैं। मेले में कुछ बकरे अपनी विशेषताओं के कारण खरीदारों का ध्यान आकर्षित करते हैं। अगर किसी बकरे की खाल पर 'अल्लाह' या 'मुहम्मद' के नाम की आकृतियां कुदरती तौर पर बन जाती हैं, तो उनकी कीमत 7 से ₹10 लाख तक पहुंच जाती है। उन्होंने बताया कि तोतापरी नस्ल का बकरा बेहद खूबसूरत होता है। इसी नस्ल के बकरे सबसे महंगे बिकते हैं। बाजार का इतिहास मीना बाजार का इतिहास मुगलकाल से जुड़ा है। इतिहासकार बताते हैं कि 18वीं शताब्दी में दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियां व्यापारियों, कारीगरों, कलाकारों और खाद्य विक्रेताओं से भरी रहती थीं। यह क्षेत्र सामाजिक जीवन का केंद्र हुआ करता था। लोग यहां बिरयानी, कबाब, कुल्फी और पान का आनंद लेने आते थे। आजादी के बाद यहां से व्यापारियों को हटाकर मीना बाजार को औपचारिक रूप से स्थापित किया गया था।
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