स्कूलों में खेल-खेल में सुधारेंगे बच्चों की मानसिक सेहत
नई दिल्ली में, मानसिक स्वास्थ्य फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने स्कूलों में 'प्रोजेक्ट मेट' शुरू करने की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य बच्चों को खेल-खेल में मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना है। इसमें कक्षा 6, 7 और 8...

नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता। बच्चों की घटती एकाग्रता और किशोरावस्था में हो रहे मानसिक और शारीरिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए मेंटल हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया स्कूलों में खास प्रोजेक्ट मेट शुरू करने जा रहा है। इसका उद्देश्य बच्चों को खेल-खेल में मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना है।
एम्स दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता में मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. नंद कुमार ने मंगलवार को इस प्रोजेक्ट की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आज के समय में बच्चों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता लगातार घटती जा रही है। पहले इंसान 30 मिनट तक एकाग्रता के साथ ध्यान केंद्रित करने में सक्षम था। अब सात से नौ सेकंड भी एकाग्र होकर फोकस नहीं कर पाते। ऐसे में यह जरूरी है कि उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाए। हमारी कोशिश है कि जैविक और मानसिक विकास को एक साथ जोड़ा जाए, ताकि बच्चे खुद को बेहतर समझ सकें और मानसिक दबाव से बच सकें।
मेघालय में हो चुकी शुरुआत
डॉ. नंद कुमार ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की शुरुआत मेघालय के कुछ स्कूलों में की जा चुकी है। वहां इसके अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं। अब इसे सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों में शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसे पूरे देश के स्कूलों में लागू किया जाना चाहिए। प्रोजेक्ट के तहत कक्षा 6, 7 और 8 के छात्रों के लिए चार अलग-अलग वर्कशॉप आयोजित की जाएंगी। हर वर्कशॉप की अवधि दो घंटे की होगी।
पहली वर्कशॉप
इस वर्कशॉप की शुरुआत प्राणायाम को खेल की तरह पेश कर बच्चों को सांस पर ध्यान केंद्रित करने से होगी। इसे ब्रीदिंग के जरिए दिलचस्प बनाया गया है। साथ ही, बच्चों को यह भी बताया जाएगा कि किशोरावस्था में उनके दिमाग में क्या बदलाव होते हैं और कैसे इससे उनकी सोच और भावनाएं प्रभावित होती हैं।
दूसरी वर्कशॉप
इस सत्र में बच्चों को यह समझाया जाएगा कि अपने आप से और दूसरों से रिश्ता कैसा होना चाहिए। जैसे दोस्तों के साथ, माता-पिता और घरवालों के साथ उनके संबंध कैसे मजबूत बनाए जा सकते हैं।
तीसरी वर्कशॉप
इस वर्कशॉप में पाचन तंत्र और मस्तिष्क के संबंध को समझाया जाएगा। आंत को दूसरा मस्तिष्क कहा जाता है क्योंकि 90% सेरोटोनिन (हैप्पी हार्मोन) आंत में बनता है, जबकि केवल 10% मस्तिष्क में। इससे बच्चों को यह समझाया जाएगा कि अच्छा खानपान कैसे मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
चौथी वर्कशॉप
इस वर्कशॉप में अभिभावकों और परिजनों का हिस्सा महत्वपूर्ण होगा। इसमें बच्चे डिजिटल गैजेट या मोबाइल पर क्या देख रहें हैं इसके बारे में जागरूक किया जाएगा। डॉ. नंद कुमार ने उम्मीद जताई कि यह कार्यक्रम बच्चों की मानसिक सेहत सुधारने में अहम भूमिका निभाएगा।
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