साइप्रस यात्रा से तुर्किये को कूटनीतिक संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा से भारत और यूरोपीय संघ के बीच संबंध मजबूत होंगे। यह यात्रा तुर्किये के लिए भी एक कूटनीतिक संदेश है। साइप्रस, जो ईयू का सदस्य है, भारत के लिए महत्वपूर्ण है,...

मदन जैड़ा नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा जहां यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगी, वहीं इसमें पाकिस्तान के मित्र तुर्किये के लिए भी कूटनीतिक संदेश है। मध्य-पूर्व में तुर्किये के दक्षिण में बसे साइप्रस के साथ भारत के राजनयिक रिश्ते करीब 63 साल पुराने हैं। जिस प्रकार पाकिस्तान ने कश्मीर के एक हिस्से पर अनधिकृत कब्जा किया हुआ है, उसी प्रकार तुर्किये ने साइप्रस के वरोशा शहर को कब्जा रखा है। यहां पर तुर्किये के हजारों सैनिक तैनात हैं तथा तुर्किये ने द्वीप के इस हिस्से को तुर्क साइप्रस के रूप में स्वतंत्र देश की मान्यता दी हुई है।
हालांकि, संयुक्त राष्ट्र उसे नहीं मानता। 1974 में तुर्किये ने जब साइप्रस के इस हिस्से पर हमला किया तो संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना का नेतृत्व भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल दीवान प्रेम चंद ने किया था। उन्होंने इस आक्रमण को सीमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इससे भारत-साइप्रस के संबंध और गहरे हुए। प्रधानमंत्री मोदी को ऑपरेशन सिंदूर के चलते मई 13-17 के बीच तीन देशों क्रोशिया, नीदरलैंड और नार्वे की अपनी यात्रा स्थगित करनी पड़ी थी। अब इस यात्रा में उन्होंने क्रोशिया के साथ साइप्रस को भी शामिल किया है, जिसमें गहरी कूटनीति छिपी हुई है। जानकारों की मानें तो यह यात्रा तीन तरीके से महत्वपूर्ण है। जिस प्रकार ऑपरेशन सिंदूर में तुर्किये खुलकर पाकिस्तान के साथ आया है, ऐसे में उसके पड़ोसी साइप्रस को अब भारत और ज्यादा तरजीह देकर उसे कूटनीतिक संदेश देना चाहता है। दूसरे, साइप्रस यूरोपीय संघ (ईयू) का सदस्य है। एक जनवरी 2026 से वह ईयू की अध्यक्षता करेगा। ऐसे में जब भारत-ईयू के बीच मुक्त व्यापार समझौता महत्वपूर्ण चरण में है, तो उसे मुकाम तक पहुंचाने में साइप्रस की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर (आईएमईसी) के नजरिये से भी साइप्रस महत्वपूर्ण है, क्योंकि कॉरिडोर के रास्ते में साइप्रस या उसके करीब के क्षेत्र महत्वपूर्ण होने जा रहे हैं। साइप्रस संयुक्त राष्ट्र में सुधारों एवं भारत की स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भी भारत के साथ हैं। साथ ही वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी भारत का समर्थन करता है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों देश क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर समान रुख रखते हैं और संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रचनात्मक रूप से सहयोग करते हैं। साइप्रस ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के भीतर भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते के लिए भी अपना पूर्ण समर्थन दिया था। भारत ने भी साइप्रस के मुद्दे के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून तथा संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को समर्थन किया है। संयुक्त राष्ट्र तुर्क साइप्रस को साइप्रस में मिलाने और वहां से तुर्किये की सेना को हटाने का पक्षधर रहा है। प्रधानमंत्री अपनी यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर फिर से जोर दे सकते हैं ताकि तुर्किये को संदेश दिया जा सके। साइप्रस वैश्विक मामलों में भारत के योगदान और दक्षिण एशिया में इसकी प्रमुख और स्थिर भूमिका को पहचानता है और इसकी बहुत सराहना करता है। दुनियाभर में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भारत की भागीदारी को भी सराहता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि वह लाभार्थियों में से एक रहा है। भारत ने 1964 में इसके निर्माण के बाद से साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना (यूएनएफआईसीवाईपी) में सेवारत तीन सैन्य कमांडरों ने योगदान दिया है। इनमें लेफ्टिनेंट जनरल पीएस ज्ञानी, मेजर जनरल दीवान प्रेम चंद और जनरल केएस थिमय्या, जिनकी 1965 में साइप्रस में सेवा के दौरान मृत्यु भी हो गई थी। - 11 हजार से भी अधिक भारतीय साइप्रस में 11 हजार से भी अधिक भारतीय रहते हैं जिनमें पेशेवर और छात्र दोनों शामिल हैं। इनमें शिपिंग, आईटी, फिनटेक, खेत मजदूर, घरेलू कामगार और छात्र शामिल हैं। दोनों देशों के बीच सालाना द्विपक्षीय व्यापार 13.6 अरब डॉलर का है, जिसमें वृद्धि की अपार संभावनाएं हैं। साइप्रस भारत में शीर्ष 10 निवेशकों में से एक है। पिछले पांच सालों के दौरान साइप्रस से भारत में करीब 15 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया है।
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