Supreme Court Rejects Delhi Waqf Board s Claim on Gurdwara Land in Shahdara गुरुद्वारे वाली जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने की मांग खारिज, Delhi Hindi News - Hindustan
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गुरुद्वारे वाली जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने की मांग खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया, जिसमें उसने शाहदरा में एक भूखंड को वक्फ संपत्ति घोषित करने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि उस भूमि पर पहले से ही एक गुरुद्वारा मौजूद है, और...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 4 June 2025 09:09 PM
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गुरुद्वारे वाली जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने की मांग खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें उसने पूर्वी दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक भूखंड को ‘वक्फ संपत्ति घोषित करने की मांग की थी। बोर्ड ने जिस जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित करने की मांग की थी, उस पर गुरुद्वारा बना हुआ है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वक्फ बोर्ड को खुद ही, उस जमीन पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए क्योंकि उस पर गुरुद्वारा बना है। जस्टिस संजय करोल और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने हाईकोर्ट के 15 साल पुराने फैसले के खिलाफ दिल्ली वक्फ बोर्ड की अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

मामले की सुनवाई शुरू होते ही, दिल्ली वक्फ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने पीठ से कहा कि निचली अदालतों ने फैसला दिया था कि उक्त जमीन पर पहले मस्जिद थी और अब वहां किसी तरह का गुरुद्वारा है। इस पर जस्टिस शर्मा ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा कि किसी तरह का नहीं बल्कि एक पूर्ण और प्रबंधित गुरुद्वारा है। उन्होंने कहा कि एक बार गुरुद्वारा बन गया है तो उसे गुरुद्वारा ही रहने दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि वहां पहले से ही एक धार्मिक संरचना (गुरुद्वारा) मौजूद है, इसलिए वक्फ बोर्ड को अपना दावा छोड़ने पर विचार करना चाहिए। जस्टिस शर्मा ने सुनवाई के दौरान जस्टिस करोल से कहा कि यह गुरुद्वारा आजादी के पहले का बना है। इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को बहाल रखते हुए दिल्ली वक्फ बोर्ड की अपील खारिज कर दी। यह है मामला सुप्रीम कोर्ट में दाखिल वाद के मुताबिक यह विवाद 1980 के दशक का है। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने प्रतिवादी हीरा सिंह के खिलाफ अदालत में मुकदमा दाखिल कर शाहदरा के ओल्डनपुर गांव में एक संपत्ति को मस्जिद की संपत्ति होने का दावा करते हुए, उस पर कब्जे के लिए मुकदमा दाखिल किया था। प्रतिवादी हीरा सिंह ने वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल वाद का विरोध किया। प्रतिवादी हीरा सिंह ने ट्रायल कोर्ट में दावा किया था कि उन्होंने संपत्ति के मालिक-मोहम्मद अहसान से 1953 में खरीदा था। उन्होंने अदालत को बताया था कि संपत्ति का इस्तेमाल गुरुद्वारा के रूप में किया जा रहा था, जिसका प्रबंधन गुरुद्वारा प्रबंध समिति करती है। इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद प्रतिवादी हीरा सिंह ने हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट ने 2010 में ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड यह साबित करने में विफल रहा कि संपत्ति ‘वक्फ संपत्ति थी।

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