ये तथाकथित NGO और सामाजिक कार्यकर्ता...; HC के आदेश में दखल देने की याचिका पर नाराज हुआ SC
अदालत ने कहा, ‘आपने इस बारे में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सामने भी अपील की थी। जहां इस पर विचार नहीं किया गया। फिर आपने इस अदालत का दरवाजा खटखटाया, इस पर विचार नहीं किया गया।’

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील की गई थी, जिसमें हाई कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के रासायनिक कचरे को प्रदेश के धार जिले में स्थित औद्योगिक शहर पीथमपुर में जलाए जाने का निर्देश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कचरे के सुरक्षित निपटारे के लिए हुई कानूनी लड़ाई में पहले ही काफी समय बीत चुका है और फिलहाल यह काम विशेषज्ञों की देखरेख में किया जा रहा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, 'हम कितने सालों से इस कचरे को हटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन इतने सालों से ये तथाकथित NGO (गैर सरकारी संगठन) और सामाजिक कार्यकर्ता... '
मामले की त्वरित सुनवाई को लेकर यह याचिका मध्य प्रदेश के एक सामाजिक कार्यकर्ता चिन्मय मिश्रा की तरफ से दायर की गई थी। जिसमें हाई कोर्ट के 27 मार्च को पारित उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें राज्य सरकार को भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में 1984 में हुए गैसकांड के बाद वहां बचे रासायनिक कचरे को पीथमपुर की एक फैक्ट्री में स्थित इंसिनरेटर में जलाने के लिए 72 दिन का समय दिया गया था।
कार्यकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चूंकि 72 दिन की अवधि 8 जून को खत्म हो रही है, इसलिए कार्यकर्ता के वकील ने मामले को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की। आंशिक न्यायालय कार्य दिवसों के दौरान बैठी जस्टिस संजय करोल और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, 'हम कितने सालों से इस कचरे को हटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन इतने सालों से ये तथाकथित NGO (गैर सरकारी संगठन) और सामाजिक कार्यकर्ता... उच्च न्यायालय मामले की निगरानी कर रहा है, और विशेषज्ञों की देखरेख में इसका निपटारा (भस्मीकरण) किया जा रहा है।'
जब कार्यकर्ता ने जोर देकर कहा कि यह मुद्दा सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा है और प्रतिकूल परिणामों की आशंका के चलते इसमें तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है, तो अदालत ने कहा, 'आपने इस बारे में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सामने भी अपील की थी। जहां इस पर विचार नहीं किया गया। फिर आपने इस अदालत का दरवाजा खटखटाया, इस पर विचार नहीं किया गया। अब आप छुट्टियों के बीच इस पर रोक चाहते हैं। हमें बहुत खेद है, लेकिन हम इस पर विचार नहीं करेंगे।'
उच्चतम न्यायालय में यह याचिका इंदौर निवासी चिन्मय मिश्रा द्वारा दायर की गई थी। इसमें दावा किया गया था कि पीथमपुर में कचरे को जलाने से उसके आसपास के गांवों में रहने वाले लोगों का जीवन और स्वास्थ्य अत्यधिक जोखिम में है। साथ ही मिश्रा की याचिका में यह भी बताया गया कि इंदौर शहर पीथमपुर से 30 किलोमीटर दूर है और गंभीर नदी इस शहर के बगल से बहती है तथा यशवंत सागर बांध को पानी उपलब्ध कराती है, जो इंदौर की 40 प्रतिशत आबादी को पेयजल उपलब्ध कराता है। हालांकि कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

बता दें कि भोपाल गैस त्रासदी, जिसे भोपाल गैस कांड भी कहा जाता है, यह दुर्घटना 2 और 3 दिसंबर, 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस की वजह से हुई थी, जिसमें करीब 5,295 लोगों की जान चली गई थी। हालांकि गैर सरकारी संगठनों का कहना है कि इस हादसे में करीब 15 हजार लोगों की जान गई थी। उसके बाद से ही यह फैक्ट्री बंद पड़ी थी और इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार जहरीला मलबा भी पिछले 40 सालों से वहीं पड़ा हुआ था।
हाई कोर्ट के जिस आदेश के खिलाफ याचिका लगाई गई थी, वह आदेश दिवंगत आलोक प्रताप सिंह द्वारा दायर याचिका पर आया था, जिसमें यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकलने वाले कचरे के निपटान की मांग की गई थी। राज्य सरकार ने HC को बताया कि कचरे को तीन चरणों में विशेषज्ञों की देखरेख में कम मात्रा में जलाया जाएगा। HC ने राज्य सरकार की दलील दर्ज की थी कि एक सप्ताह के भीतर जलाने का काम शुरू हो जाएगा और 72 दिनों में पूरा हो जाएगा।